Book Title: JAINA Convention 2003 07 Cincinnati OH
Author(s): Federation of JAINA
Publisher: USA Federation of JAINA

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Page 145
________________ जैन तीर्थ तीर्थ क्या है और तीथों के प्रति हमारा व्यवहार कैसा है Dr. Manohar Bhandari, M.D., Indore, India manoharbhandari@rediffmail.com तीर्थ शब्द भारतीय चिंतन परम्परा में बहुत पवित्र और बहुअर्थी शब्द है। सामान्यतया तीर्थ एक ऐसे पवित्र क्षेत्र को कहते हैं जहां नदी-तट पर या पर्वत पर किसी पुण्य पुरूष का निवास, समाधि-स्थल आदि हो या देवी-देवताओं का मंदिर हो । कहा गया है तीर्थनुसरणं शुभम् अर्थात् तीर्थ यात्रा सदैव शुभ फलदायक होती है। यही कारण है कि सभी संस्कृतियों, धर्मों और देशों में प्रतिदिन अनेक लोग तीर्थ यात्रा का पुण्य लाभ लेते हैं। जैन परम्परा में कहा गया है तारे सो तीर्थ अर्थात जहां आत्मा भवसागर से तर जाती है, वह स्थान तीर्थ है। हिन्दू धर्म कोश के अनुसार तीर्थ का एक अर्थ विद्या भी बताया गया है। जहाँ पर विचारधारा का गहन चिंतन-मनन किया जाता है वह स्थान तीर्थ है। अध्ययन और अनुसंधान में तत्पर लोग जिस जगह भी रहते हैं वह स्थान तीर्थ कहलाता है। इसी तरह गुरू को भी तीर्थ कहा गया है। मथुरा, काशी, हरिद्वार, श्रीरंगम, कांची, अयोध्या, सांदीपनि आदि तीर्थ ऐसे स्थान हैं जहाँ बैठकर ऋषि, विद्वान गृहस्थ तथा सन्यासी जिज्ञासुओं को पढ़ाया करते थे। पद्म पुराण में कहा गया है जो संसार - बंधन से छूटना चाहते हैं उन्हें पवित्र जल वाले तीर्थो में, जहाँ साधु महात्मा लोग रहते हैं, अवश्य जाना चाहिए। Jain Education International 2010_03 जैन संदर्भ में तीर्थ ऐसे स्थान हैं जहाँ केवल ज्ञान के पूर्व तीर्थकरों तथा साधु-साध्वियों ने धर्म साधना की हो। इन स्थानों की पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा की प्रचुरता (अधिकता ) के कारण बाद में भी हजारों-लाखों साधकों ने निर्वाण की स्थिति को प्राप्त किया है। शाश्वत - तीर्थ श्रीशत्रुजंर्य, श्रीशिखरजी एवं श्रीगिरनारजी ऐसे ही सघन ऊर्जा के महाकेन्द्र हैं। ये ऐसे स्थान हैं जहाँ मन सांसारिकता से स्वतः अलग हो अपनी स्वभावगत यानी नैसगिर्कता की तरफ उन्मुख होने की स्थिति में आ जाता है और आत्मा भी कलूषों से निर्लिप्त होने को आकुल-व्याकुल हो जाती है। क्या निर्जीव स्थान सजीव को प्रभावित करता है किसी भी तरह के काम को सफलतापूर्वक करने के लिए एक विशेष तरह का वातावरण (स्पेशल ऐटमॉस्फियर) का होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए शान्त वातावरण पढ़ाई के लिए अनुकूल होता है परन्तु श्मशान के शान्त एवं शोररहित वातावरण में पढ़ाई करना मुश्किल है। जबकि लायब्रेरी के वातावरण में मौजूद वाइब्रेशन प्रेरणा का काम करते हैं और विद्यार्थी का मन शीघ्र एकाग्र हो जाता है। जैन मंदिरों में घी आदि की बोली के समय निन्यानवें के फेर में पड़े व्यक्ति के मन में भी बोली लेने की प्रेरणा काम करने लगती है। प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि और रचनाकार प्राकृतिक स्थानों पर जाकर अपनी रचनाशीलता को एनर्जेटिक महसूस करते हैं। निश्चित तौर पर यह वातावरण का ही प्रभाव है। 143 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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