Book Title: Hitopadesh Author(s): Prabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri Publisher: Sanmarg Prakashan View full book textPage 7
________________ प्रकाशकीय उकेलवानी आगवी सूझ-बूझना कारणे लहीयानी - लिप्यंतर करनार वि. नी रही गयेली अशुद्धिओनुं शुद्धिकरण करी अमने हितोपदेश ग्रंथरत्ननी प्रत मोकली आपी, ते सर्वे पाठोनी शुद्धि आ प्रकाशनमां थई गये छे. तेथी आ प्रकाशन सर्वांगे विशेष सुंदर थवा पाम्युं छे, ते बदल अमे पूज्यश्रीनो उपकार मानीए छी अने पूज्यश्रीना खूब ऋणी छीए. ६ संस्कृत-प्राकृत आकार ग्रंथोना प्रकाशनमां आ रीते एकी साधे त्रण त्रण जुदी जुदी साईझमां प्रकाशन आ नवतर प्रयोग प्राय: पहेलो वहेलो ज छे अने श्रुतप्रेमीओ एथी जरूर लाभान्वित थशे, एवो विश्वास छे. अचिंत्यचिंतामणि श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथ परमात्मानी असीम कृपा परमतारक जैनशासनशिरताज, तपागच्छाधिराज संघसन्मार्गदर्शक संघस्थविर पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा आदि पूज्योनी अविरत अमीदृष्टिथी अमो आवा श्रुतप्रकाशनना कार्यमां आगळ ने आगळ वधता रहीए ए ज कामना. Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only सन्मार्ग प्रकाशन www.jainelibrary.orgPage Navigation
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