Book Title: Hitopadesh
Author(s): Prabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 10
________________ जैनसंघने मळेलो दिव्यप्रकाश : हितोपदेश छे, तेनी पण अनुमोदना करुं छं. ते उपरांत सुश्रावक श्रीशांतिभाई शिवलाल शाहे पण खूब ज खंतपूर्वक आ ग्रंथनुं प्रुफसंशोधन कर्तुं छे. अमने प्राप्त थयेल बे हस्तप्रतोमां लहीयानी लखवामां रही गयेली अशुद्धि वगेरेना कारणे प्रेसकोपीमां पण अमुक अशुद्धिओ रही जवा पामेल तेना शुद्धिकरण माटे पं. श्रीअमृतभाइ पटेल पण सहायक बनेल छे. 'ग्रंथसंस्तवः' ए संस्कृत प्रस्तावनानुं प्रुफसंशोधन तपागच्छाधिराजना शिष्यरत्न विद्वान मुनिश्री प्रशमरतिविजयजी महाराजे करेल छे. प्रताकारे आ ग्रंथरत्न प्रकाशित थया पछी प्रकाशकीय लखाणमां जणाव्या मुजब आगमादि साहित्य संशोधक विद्वान प्रवर्तक पू. श्रीजंबूविजयजी महाराज साहेबे आ ग्रंथरत्ननी कुंभण मुकामे गत चातुर्मासमां एमना निश्रावर्ती साधु-साध्वीजी भगवंतोने वाचना आपेल अने ते वाचन समये आ ग्रंथरत्नमां लिप्यंतर वि. मां लिपि बराबर उकेलाई न होय तेना कारणे तेमज प्रुफ वाचनमां अशुद्धिओ कोई रही गई होय ते अशुद्धिओनुं हस्तादर्श साथे मेळवी शुद्धिकरण करी आपेल छे, तेथी पुस्तकाकारनुं आ प्रकाशन विशेष शुद्धिपूर्वकनुं सर्वांगे सुंदर थवा पाम्युं छे ते बदल ते ओश्री प्रत्ये खास कृतज्ञभाव व्यक्त करुं छं. आ रीते आ ग्रंथ संपादन - प्रकाशनमां सहायक थनार सौनी अंतरथी अनुमोदना करुं छं. 'हितोपदेश' ग्रंथरत्ननो परिचय : - आ ग्रंथरत्नना प्रारंभमां ग्रंथकार श्रीए मंगळाचरण करीने भव्यजीवोने जैनसिद्धांत सागरमांथी उद्धृत करेल हितोपदेशामृत आपवानी प्रतिज्ञाने जणावी हितकारक मार्ग दर्शावतां जणाव्युं छे के, १ सुविशुद्धसम्यक्त्व, २ - उत्तमगुणोनो संग्रह, ३- देशविरति अने ४ सर्वविरति, आ चार गुणोमां प्रबळ पुरुषार्थ करवो ए ज परम हितकारक मार्ग छे. - क्रमशः आ चारेय गुणोनुं विस्तारथी वर्णन करतां सम्यग्दर्शनगुणने पामवा माटे मिध्यात्वनी अनर्थकारकता वर्णवी तेनो त्याग करवानो अने सम्यग्दर्शनगुणने स्वीकारवानो उपदेश आप्यो छे. अधिकारी आत्मा ज सम्यक्त्व पामी शके. सम्यक्त्वना अधिकारी बनवा माटे तेर गुणोनी आवश्यकता उपर मूकीने ते ते गुणोनो नामोल्लेख कर्यो छे. ( गाथा - १२ थी १४ ) त्यार पछी गाथा - १५ थी २१मां सम्यक्त्वनुं लक्षण अने तेना महिमाने वर्णव्यो छे. ( गाथा - १५ थी २१) त्यार पछी सम्यक्त्वना पांच दोष, पांच लक्षण अने पांच भूषणनुं वर्णन कर्तुं छे. (गाथा- २३ थी २९ ) सम्यक्त्व रत्न पण गुणोनो समुदाय होय तो ज शोभी शके छे, तेथी ते माटेना आवश्यक अगियार गुणोनुं वर्णन विस्तारथी क्रमशः कर्तुं छे. (गाथा - ३०-४१) तेमां पहेला दानगुणमां अभयदान, अनुकंपादान, ज्ञानदान अने भक्तिदाननो समावेश करीने ज्ञानदानमां पांच ज्ञाननुं वर्णन कर्तुं छे. भक्तिदानमां जिनमंदिर आदि सातक्षेत्रोनुं विस्तारथी निरूपण कर्तुं छे; तेमां जिनमंदिरनां निर्माण माटे Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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