Book Title: Hitopadesh
Author(s): Prabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 16
________________ जैनसंघने मळेलो दिव्यप्रकाश : हितोपदेश श्रीअभयदेवसूरिना शिष्य आ. श्रीदेवभद्रसूरिना शिष्य तरीके ओळखाव्या छे. जे वात केटली असंगत छे ते आगळ वांचवाथी समजाशे. आम स्खलना थवानो हेतु ए जणाय छे के - दरेके अथवा प्रथम लखनार व्यक्तिए सटीक प्रतनुं छेल्लु पत्र जोयुं हशे. छेल्ला पत्रमा टीकाकारनी प्रशस्ति छे. टीकाकार पू. आ. श्रीपरमानंदसूरि म. हितोपदेश ग्रंथना कर्ता पू. आ. श्रीप्रभानंदसूरि म. ना गुरुभाई हता. एथी टीका तथा प्रशस्ति जोवाने कारणे आ प्रकारनो भ्रम थयो होय ते संभवित छे. __ हकीकतमां आ ग्रंथना रचयिता पू. आ. श्रीप्रभानंदसूरि महाराज छे, जे नीचेनी बे गाथा जोवाथी स्पष्ट थाय छे. इय अभयदेवमुणिवइ-विणेयसिरिदेवभद्दसूरीण । अनिउणमइहिं सीसेहिं, सिरिपभाणंदसूरीहिं ।।५२२।। उवजीविऊण जिणमय-महत्थ-सत्थत्थ-सत्थ-सारलवे । सपरेसि हिओ एसो, हिओवएसो विणिम्मविओ ।।५२३।। टीकाकार पू. आ. श्रीपरमानंदसूरि महाराज टीकाना अंतमां तथा प्रशस्तिमां जणावे छे के - १- नवाङ्गवृत्तिकारसन्तानीय-श्रीरुद्रपल्लीय-श्रीमदभयदेवसूरिपट्टप्रतिष्ठित-श्रीमद्-देवभद्रसूरिशिष्यावतंस-श्रीप्रभानन्दाचार्यसोदर्यपण्डित-श्रीपरमानन्दविरचिते हितोपदेशामृतविवरणे सर्वविरत्याख्यचतुर्थमूलद्वारं समाप्तमिति भद्रम् । तत्समाप्तौ समाप्तमिदं हितोपदेशामृतविवरणमिति। नवांगवृत्तिकार आ. श्रीअभयदेवसूरि महाराजोनी परंपरामां थयेला श्रीरुद्रपल्लीयगच्छना आ. श्रीअभयदेवसूरि महाराजना पट्ट उपर स्थापित करायेला आ. श्रीदेवभद्रसूरि महाराजाना शिष्योमां शिरोमणि आचार्य श्रीप्रभानंदसूरि महाराजना बांधव पंडित श्रीपरमानंदसूरि विरचित श्रीहितोपदेशामृत नामनी टीकामां सर्वविरति नामनुं चोथु मूळद्वार पूरुं थयु. आ रीते हितोपदेशामृत नामनुं विवरण पूरुं थयुं." टीकाकारनी प्रशस्ति : चान्द्रे कुलेऽस्मिन्नमलश्चरित्रैः; प्रभुर्बभूवाभयदेवसूरिः । नवाङ्गवृत्तिछलतो यदीय-मद्यापि जागर्ति यश:शरीरम् ।।१।। "चांद्रकुळमां चारित्रगुणथी निर्मळ एवा श्रीअभयदेवसूरि नामना आचार्यदेव थया. जेओश्रीनो यशोदेह नवांगीवृत्तिनी रचनाना योगे आजे पण जगतमा विद्यमान छे. तस्मान्मुनीन्दुर्जिनवल्लभोऽथ, तथा प्रथामाप निजैर्गुणोधैः । विपश्चितां संयमिनां च वर्ग, धुरीणता तस्य यथाऽधुनापि ।।२।। "तेओश्रीनी परंपरामां थयेला आ. श्रीजिनवल्लभसूरि महाराज पोताना गुणसमुदायथी ते रीते विश्वमां Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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