Book Title: Hitopadesh Author(s): Prabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri Publisher: Sanmarg Prakashan View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय आ टीका मूळकार प्रतिभासमुद्र पू. आ. श्रीप्रभानंदसूरीश्वरजी महाराजाना ज लघुबंधु पू. आ. श्रीपरमानंदसूरीश्वरजी महाराजाए रचेली छे. ___ प्रवचनप्रभावक पूज्य आचार्यदेव विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराजना सतत पुरुषार्थ अने प्रेरणाथी आ ग्रंथ भंडारमाथी बहार नीकळ्यो, प्रथम मात्र मूळगाथारूपे अने हवे 'टीका' साथे प्रकाशित थई रह्यो छे ते आनंदनो विषय छे. तेओश्रीना मार्गदर्शनमा रहीने तपागच्छाधिराज पूज्यपाद आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजानां साम्राज्यवर्ती अने प्रवर्तिनी पू. साध्वीजी श्रीरोहिताश्रीजी म. ना शिष्यरत्ना विदुषी पू. साध्वीजी श्रीचंदनबालाश्रीजी महाराजे छेल्ला बे वर्ष सुधी अथाक महेनत करी आ सटीक ग्रंथनुं विशिष्ट तुला अने टीप्पणीओ साथे सांगोपांग संपादनकार्य संपन्न करी श्रुतसेवा- उज्ज्वल उदाहरण रजू कयुं छे, ते खूब अनुमोदनीय छे. एज रीते आ ग्रन्थना प्रुफ-संशोधनादि कार्यमां अन्य श्रमणी भगवंतो अने श्रमणोपासकोनो पण स्तुत्य सहयोग सांपड्यो छे, तेमना पण अमे ऋणी छीए. मूल-टीका-कथा-तुला अने टिप्पणीओ साथे सर्वप्रथम प्रताकारे आ ग्रंथरत्ननुं संपादनकार्य थया पछी अमने विचार आव्यो के क्राउन-८ पेजी साइझमा पुस्तकाकारे पण ग्रंथ तैयार थशे तो उपयोगी थशे. तेथी फरी ए मुजब मूल-टीका-कथा-तुला अने टिप्पणीओ साथे सेटींग तथा प्रुफसंशोधन करी विदुषी पू. साध्वीजी श्रीचंदनबालाश्रीजी महाराजे श्रुतसेवा करेल छे. एनी फलश्रुति स्वरूपे पुस्तकाकारे पण आ ग्रंथ प्रकाशित थई रहेल छे तथा डेमी-१६ पेजी साइझमा पुस्तकाकारे वाचनमां सहायभूत बनी शके, ए उद्देशथी कथानको अने टीप्पणो विना मूल अने टीका साथे पण प्रकाशन तैयार थयुं छे. देव-गुरुनी कृपाथी तैयार थयेल आ अमूल्य नजराणुं आजे श्रुतप्रेमीओना करकमलमां मूकतां अमो हर्षानुभूति करी रह्या छीए. हितोपदेश ग्रंथरत्न प्रताकारे प्रकाशित थया पछी अनेक समुदायना महात्माओने ए प्रतनी नकलो मोकली ते सौ तरफथी खूब सुंदर प्रतिभाव सांपड्यो छे. 'साधनामार्गना विकासना पायाथी लईने सिद्धिमहेल सुधी पहोंचवा माटे अति उपयोगी आ ग्रंथ छे. आ ग्रंथरत्नमां संपूर्ण साधनामार्गने आवरी लीधो छे.' विशेष आनंदनी वात तो ए छे के, परमपूज्य परमविद्वद्वर्य आगमप्रज्ञ अनेक आगमग्रंथोना संशोधनकार प्रवर्तक पूज्य मुनिराजश्री जंबूविजयजी महाराज साहेबने आ ग्रंथरत्न मळता तेओश्रीए गत चातुर्मासना कुंभण मुकामे एमना निश्रावर्ती साधु-साध्वीजी भगवंतोने आ ग्रंथरत्ननुं वाचन कराव्युं अने साथे साथे अमारी पासेथी आ ग्रंथरत्ननी फोटोकोपी मंगावी अमे तेओश्रीने मोकली आपी. तेओश्रीनी हस्तप्रत Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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