Book Title: Hidayat Butparstiye Jain
Author(s): Shantivijay
Publisher: Pruthviraj Ratanlal Muta

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir ६ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. जिनोने जैनकोश बनाया हो. मूर्तिपूजक जैनाचार्यकी साक्षी मंजुर नही, मूर्त्तिनिषेधक जैनाचार्यकी साक्षी दिइ नहीं, फिर जवाब क्या हुवा ? शांतिविजयजीने सनमपरस्तिये जैनमें ऐसा कोई लिखाण नही किया जिससे तीर्थंकरोंके फरमानको धक्का पहुचे, अगर ऐसा कोई लिखाण था तो बतलाना था, एकांतपक्ष भी नही पकड़ा, बल्कि ! चैत्य शब्दका माइना जिनमंदिर और जिनप्रतिमा है, ऐसा जैनशास्त्रो के पाठसे बतला दिया है, अगर कोई कहे कि चैत्यशब्दका माइना ज्ञान या साधु है तो उसका सबुत बतलावे, जैनागम में साधुकी जगह निग्गंथाण वा निरगंधावा साहुवा साहुणीवा भिखुवा भिखुणीवा ऐसा पाठ लिखा है, मगर चैत्यं वा चैत्यानि वा एसा पाठ नही लिखा, तीर्थकर रिषभदेव महाराज के चौराशी हजार साधुये ऐसा लिखा मगर चौराशी हजार चैत्यथे ऐसा नहीं लिखा, इसीतरह तीर्थंकर महावीर स्वामीके चौदह हजार साधु कहे, मगर चौदह हजार चैत्यथे ऐसा नही कहा, अगर चैत्यशब्दका माइना ज्ञान है ऐसा कहे तो taraa ज्ञानकी जगह चैत्यन्द्र क्यों नही कहा ? नंदीसूत्रमे नाणं पंचविहं पन्नतं, ऐसा पाठ कहा, मगर चेइयं पंचविहं पनतं ऐसा पाठ नहीं कहा, जहांजहां ज्ञानी मुनियोका लेख आता है महनाणी पाणी ओहिनाणी मण रज बनाणी केवलनाणी ऐसा पाठ है, मगर किसीजगह मतिचैत्यी श्रुतचैत्यी अवधिचैत्य ऐसा पाठ नही आता, जैनशास्त्रोंमें कई जगह बयान है अमुक जैनमुनिको अवधि ज्ञान पैदा हुवा, अमुक जैनमुनिकों केवलज्ञान पैदा हुवा, मगर ऐसा पाठ नही आता कि- अवधिचैत्य या केवलचैन्य पैदा हुवा, इसलिये कहा जाता है चैत्यशब्दका माइना ज्ञान नही. [ भगवतीसूत्र पाठ है. ] किं निस्साए भंते असुरकुमारा देवा उढं उपायंति, For Private And Personal Use Only

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