Book Title: Hidayat Butparstiye Jain
Author(s): Shantivijay
Publisher: Pruthviraj Ratanlal Muta
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[सिद्धचके महात्मपर उमदा लावनी . ]
जगतमें नवपद जयकारी - पूजतां रोग टले भारी, प्रथमपद तीरथपति राजे - दोष अष्टादशको त्यागे, आठ प्रातिहारज छाजे - जग्तप्रभु गुण बारे राजे,
अष्ट कर्मदल जीतके - सकल रिद्धि थई आय, सिद्ध अनंत नमुं बीजेपद एक समय शिव जाय, गट भयो निजस्वरूप भारी - जग्तमें नवपद जयकारी. १ सूरिपद में गोयम केशी - ओपमा चंद सूरज जैसी, ऊधार्यो राजा परदेशी - एक भवमांही शिव लेसी,
चोथेपद पाठक नमुं श्रुतधारी ऊवझाय, सर्वसाधु पंचमपदमांही- धन धन्नो अणगार, वखाण्यो वीरप्रभु भारी - जगत में नवपद जयकारी. द्रव्य खटकी सरधा आवे - समसंवेगादिक पावे, बिना ये ज्ञान नही किरिया - ज्ञानदर्शनथी सब तरिया, ज्ञानपदारथ सातमें - पदमें आतमराम,
रमता रहे अध्यातममांही- निजपद साधे काम, देखता वस्तु जगतसारी - पूजतां रोग टले भारी. योगनी महिमा बहु जानी - चक्रधर छोडी सब नारी, यति दशधर्मकरी सोहे - मुनि श्रावक सब मन मोहे, कर्म निकाचित काटवा - तपकुठार करधार, नवमापद जो करे क्षमासु-कर्म मूलकट जाय, भजो नवपद जगसुखकारी-जगतमें नवपद जयकारी. ४ အစာအာဟာ»
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