Book Title: Hidayat Butparstiye Jain
Author(s): Shantivijay
Publisher: Pruthviraj Ratanlal Muta

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन जाव सोहम्मोकप्पो गोयमा असुरकुमारा देवा इत्यादि नणथ्थ अरिहंतवा अरिहंत चेहयाणिवा अणगारे भावि. अप्पणो निस्साए उढं उप्पयंति जावसोहम्मो कप्पो. तीर्थकर महावीरस्वामीसे गौतमगणधरने सवाल किया किअसुरकुमारदेवता आस्मानमें जावे तो कहांतक जावे ? जवावमें तीर्थकर महावीरस्वामीने फरमाया कि असुरकुमारदेवता आस्मानमें सौधर्म देवलोकतक जावे, और जाते वख्त अरिहंतका सरणा लेकर जासकता है, अरिहंतकी प्रतिमाका या भावितआत्मा अणगारका सरणा लेकर जासकता है, देखिये ! यहां चैत्यशब्दका माईना अरिहंतकी प्रतिमा है या नहीं? साबीत हुवा चैत्यशब्दका माईना जिनप्रतिमा है. फिर मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें लिखते है-जैसे घरके घोडे घरके चौकमें कुदाये तो इसमें क्या बड़ी बात करी, हम शांतिविजयजीकी बहादुरी जब समजते कि-जैसी चैत्यशब्दके बारेमें हैमकोशकी साक्षी दिइ वैसे चैत्यशब्दके बारेमें श्रीजैनके प्राचीन असली सिद्धांतोकी साक्षी देते. (जवाव.) शांतिविजयजीने जैनके प्राचीन और असलीसिद्धांत भगवतीमत्रके मूलपाठकी साक्षी ऊपर देदिइ, उसमे देखलो ! चन्यशब्दका माईना जिनप्रतिमा है या नहीं ? किताव सनम परस्तिये नमभी जंघाचारणमुनिके बयानमें भगवतीसूत्रका पाठ देकर चैत्यशब्दका माईना जिनप्रतिमा बतलाचुका हूं, शांतिविजयजीने घरके घोडे घरम नही कुदाये है. बल्कि ! किताव सनम परस्तिये जैन बनाकर छपवा दिइ है, जिसकों आज करीव चार वर्स होगये, और छपवानेवालोंने शहर बशहर भेज दिइ है. पढनेवालोने पढ़ी होगी. For Private And Personal Use Only

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