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२४ हिदायत बुतपरस्तिये जैन.
१३ रायपसेणीमूत्र. २९ दशाश्रुतस्कंधसूत्र. १४ जीवाभिगममूत्र. ३० वरत्कल्पमूत्र. १५ प्रज्ञापनासूत्र. ३१ व्यवहारमूत्र. १६ चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र. ३२ आवश्यकमूत्र.
ए वतीसमूत्र स्थानकवासी मजहबक लोग मानते है, इनमें जो छविशमें नंबरपर नंदीमत्र कहा है, उसमे पैतालिस आगम वगेरा चौदह हजार प्रकीर्णकशास्त्र मानना लिखे, ऊनको नहीं मानना इसकी क्या वजह है ? स्थानकवासी मजहबके लोग कहा करते है, हम तीर्थंकर गणधरोके वचनको मंजूर रखते है. बतलावे! फिर प्रज्ञापनासूत्र और दशवैकालिकमूत्र जो ऊपर वतीससूत्रोकी गिनतीमें (१५) और (२५)में नंवरपर गिनाये गये है, तीर्थंकर गणधरोके बनाये हुवे नही, आचार्योंके बनाये हुवे है, इनकों क्यौं मंजुर रखे गये. मुनि कुंदनमलजी इसका जवाब देवे, अगर कहा जाय नंदीसूत्रमें इनके नाम दर्ज है, इसलिये मंजुर रखे है, तो दुसरे सूत्रोके नामभी नंदीमत्रमें दर्ज है, उनको क्यों नहीं मानते ? तीर्थकर महावीरस्वामी के बाद (९८०) वर्सके पीछे जब देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण जैनाचार्यने सब जैनाचार्योंकी सलाहसे जैनपुस्तक ताडपत्रपर लिखे, तब दशवकालिक और प्रज्ञापनासूत्रके नाम दर्ज किये है. ___मूर्तिपूजा धर्मी शख्शोकों एतकात बढानेवाली चीज है, जहां जिनमंदिर बने रहेंगें वहां तरकी धर्मकी बनी रहेगी, जिनमंदिर बनवानेवाला श्रावक बारहमे देवलोककी गति हासिल करे, ऐसा महा निशीथसूत्रमें पाठ है, अगर कोई इस दलिलकों पेंश करेकि बतीसमूत्रकी गिनतीमें महा निशीथसूत्र नही गिना है, जवावमें मालुम हो, वतीसमूत्रकी गिनतीमें नंदीसूत्र माना गया है, और ऊस नंदीसूत्रमें महा निशीथसूत्रका नाम दर्ज है, इससे साबीत हुवा
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