Book Title: Hidayat Butparstiye Jain
Author(s): Shantivijay
Publisher: Pruthviraj Ratanlal Muta

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir २० हिदायत बुतपरस्तिये जैन जैनमुनिके कलेवरका अग्निसंस्कार अछा किया गया. विमान अछा बना था. कहिये ! यह अमुमोदन पुन्यका सबब है या नहीं? प्रकरण संग्रहका थोकडा जोकि पंडितराज पूज्यश्री (७) देवजीस्वामीके शिष्य पूज्यश्री लाधाजीस्वामीके पास शुद्ध करवाके श्रावक भगवानदासजी केवलदासजी साकीन सुरतने गुजराती प्रिंटिंग प्रेस बंबईमें छपवाया है, उसके पृष्ट (११७)पर लिखा है, मेरुके चारबन है. १ भद्रशालवन, २ नंदनवन, ३ सौमनसवन, ४ पांडुकबन, भद्रशालबन मेरुके चौतर्फ जमीनपर है, वह पूर्वपश्चिम बाइस बाइसहजार योजन लंबा और उत्तरदखन अढाइसो अढाइसो योजन चौडा है, उसमें एक पदमवेदिका जोकि चौतर्फ एकवनखंडसे घीरी हुई है. मेरुसे पूर्वकी तर्फ पचासयोजन वनमें जावे तो वहां एक सिद्धायतन है, वह पचास योजन लंबा, पचीसयोजन चौडा और छतीस योजन ऊंचा है, और उसमें अनेकथंभे लगे हुवे है. ऊस सिद्धायतनके तीनदरबजे पूरव दखन उत्तरमें बने हुवे है. वे दरवजे आठआठ योजनके ऊंचे और चारचार योजनके चौडे है. ऊस सिद्धायतनके बीचले विभागमें एक मणिमय पीठिका जोकि चार योजन लंबी चौडी और चार योजन महोटी रत्नमय बनी हुई है, उसपर एक देवछंदा आठ योजन लंबा चौडा और आठ योजनसे कुछ ज्यादह ऊंचा बना हुवा है, उसमे जिनप्रतिमा है, उसका बर्नन, देवछंदा, यावत् , धृपके कडछे वगेरा मौजूद है, इसीतरह चारो दिशामें चार सिद्धायतने जानना. देखिये ! इसमे सिद्धायतन, देवछंदा और जिनप्रतिमाका बयान मौजूद है, जैनमजहबमें अगर जिनमतिमा मंजुर न होती तो ऐसा बयान क्यों होता ? इससे सावीत हुवा जिनमतिमा जैनधर्ममें कदीमसे मानी जाती है, जिनप्रतिमाकी पूजा करना श्रावकोका कर्तव्य है, ऐसा उपदेश जैनमुनि देते हैं. जैनशास्त्रोमें जो बात For Private And Personal Use Only

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