Book Title: Hemchandracharya no Deshi Shabdasangraha Ek Parichaya Author(s): Shantibhai Acharya Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 9
________________ डिसेम्बर २०१० गाथानी बीजी पंक्तिमांना 'भ्रमरे रसाउ - रोलंबा' पदने टांकीने पण्डितजी जणावे छे के मुनि हेमचन्द्र रोलम्ब शब्दनो भमरो अर्थ आपीने 'रोलंब' ने देश्य शब्द तरीके नोंधे छे. पछी आनी वृत्तिमां सङ्ग्रहकार नोंधे छे के ' रोलम्बशब्दं संस्कृतेऽपि केचिद् गतानुगतिकतया प्रयुञ्जते' अर्थात् गतानुगतिक प्रवाहने अनुसरी, केटलाक कोशकारो रोलम्ब शब्दने संस्कृत भाषामां पण प्रयोजे छे. आनो अर्थ से थाय के अहीं आवा शब्दसङ्ग्रहकर्ताओ गतानुगतिकपणे चालनारा छे. आ उल्लेखना सन्दर्भमां ज्यारे जे ग्रन्थनी रचना अने टीका पोते ज करेली छे तेवा अभिधानचिन्तामणि नामना ग्रन्थमां रोलम्ब शब्दने संस्कृत शब्द तरीके स्वीकार ( काण्ड ३, श्लोक २७०) करेलो छे अने ' अली रोलम्बो द्विरेफः' ओम भ्रमरना पर्यायरूपे उल्लेख कर्यो छे तेना प्रमाण आपीने पण्डितजी जणावे छे के आनाथी तो सग्रहकार पोतेज गतानुगतिक ठरे छे ! तेमणे प्रश्न कर्यो छे के आचार्य पोते ज पोता पर गतानुगतिकतानो आक्षेप करे खरा ? अर्थात् पोते न करे ते तेमने अभिप्रेत छे. जो आम होय तो आ ग्रन्थ आचार्यना कहेवाथी अन्य कोइओ रच्यो होवानो सम्भव ऊभो थाय छे अने पूनावाळी हस्तप्रतना 'मुनिना वचनथी' रचाइ होवाना निर्देशने टेको मळे छे. पण्डितजी आ बाबतमां संशोधन कराय अने सत्वरे आनो निर्णय थाय तेम इच्छे छे. पण्डितजीनी आ इच्छापूर्ण थाय ओवी ईश्वरने अमारी प्रार्थना छे. सङ्ग्रहकार विषेनी पण्डितजीनी टिप्पणी : ८९ आ ग्रन्थना रचयिताने भावांजलि आपतां पण्डितजी जणावे छे के ग्रन्थ रचनार गमे ते होय, पण ते संस्कृत, प्राकृत अने देशी प्राकृत भाषाओनो असाधारण अभ्यासी छे. तेणे अनेक देशीसङ्ग्रहो तपास्या छे अने से जुदाजुदा सङ्ग्रहोना सङ्ग्रहकारोना विविध मतोनी चकासणी कर्या पछीथी आ सङ्ग्रहमां तेओना मत टांक्या छे. आनी पुष्टि माटे सम्पादक पण्डितजीओ सूचवेली ७१८ अने ७२३ क्रमांकनी गाथाओ जोइओ. गाथा ७१८नी वृत्तिमां, गाथामांना सराहअ शब्दनी चर्चा करतां सङ्ग्रहकार हेमचन्द्राचार्य नोंधे छे के आ शब्दनो 'सर्प' अर्थ छे तेनो समानार्थी शब्द पयलाय जणावीने अभिमानचिह्न नामनो सङ्ग्रहकार आ बन्ने शब्दो पर्यायवाची होवानुं लखे छे. आम होवा छतां पाठोदूखल नामना सङ्ग्रहकार तेनी गाथामांPage Navigation
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