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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
सङ्ग्रहमां नोंधाया छे. पण्डितजी माने छे के कदाच पूर्वपरम्पराना कारणे आवा शब्दो नोंधाया होय तो पण तेवा शब्दोथी नकामं ग्रन्थनुं कद वधे छे. देशीशब्दसङ्ग्रह :
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आ शब्दसङ्ग्रह आचार्य हेमचन्द्र रचित सिद्धहेम व्याकरणनो अक भाग छे. आ व्याकरणना आठ अध्याय छे तेमां प्रथम ओकथी सात अध्यायो मुख्यत्वे संस्कृतभाषाने वर्णवे छे. छेल्ला आठमा अध्यायमां पांच प्राकृतभाषाओनां व्याकरणने समजावेल छे. आठमा अध्यायना चार पादोमांथी त्रण पूरा पादो अने चोथा पादना २५९ सूत्रो प्राकृतभाषाना व्याकरणने वर्णववामां रोकायेला छे. चोथा पादना आ पछीना सूत्रोमांथी सूत्र २६० थी २८६ सुधीना २७ सूत्रो शौरसेनी भाषानुं व्याकरण, २८७ थी ३०२ सुधीनां १६ सूत्रोमां मागधीभाषानुं, ३०३ थी ३२८ सुधीनां २६ सूत्रोमां पैशाची अने चूलिकापैशाचीनुं तथा सूत्र ३२९ थी ४४८ सुधीनां ११९ सूत्रोमां अपभ्रंशभाषानुं व्याकरण वर्णवेल छे. आम, आ ग्रन्थमां अपभ्रंश भाषाना व्याकरणवर्णननां सूत्रोमां अन्य प्राकृतभाषाओना वर्णननी सरखामणीओ सौथी वधारे सूत्रो अपायां छे. आ देशीशब्दसङ्ग्रहना शब्दोने आ अपभ्रंश भाषा साथे विशेष पणे सम्बन्ध छे. आ प्रकारना शब्दो प्राचीन परम्पराथी देशी, देश्य अने देशज शब्दो तरीके ओळखाता आव्या छे. भारतीय प्राचीन व्याकरणपरम्परामां भाषाना साहित्यिक स्वरूपने वर्णवातुं हतुं. समाजमां शिष्ट गणातो वर्ग जे भाषास्वरूपमां वाक्-व्यवहार करतो होय ते भाषानां वर्णनो, व्याकरणो अपातां हतां अने ते भाषाना सन्दर्भमां व्याकरणो रचातां हतां. बीजी रीते कहीओ तो भाषानी संरचना दर्शाववाना बदले भाषाना शिष्टमान्य स्वरूपनी जाळवणी पर भार मूकातो हतो. आ पछीथी समाजमां शिष्टवर्गनुं वर्चस्व होय छे तेने लीधे तेनी भाषानुं पण वर्चस्व स्थपातुं चाल्युं अने तेवा साहित्यस्वरूप सिवायनां भाषास्वरूपो भ्रष्ट गणावा लाग्यां. भाषाविज्ञाननी दृष्टि भाषाना विविधरूपे बोलातां स्वरूपोमां कोईपण स्वरूप भ्रष्ट नथी, हा ते जुदुं जरूर होइ शके छे.
सम्पादक पण्डितजीओ आ वात स्पष्टरूपे समजावी छे. तेओ जणावे छे के अपभ्रंश शब्दनो अर्थ 'भ्रष्ट' थाय छे ते खरुं, परन्तु भाषाना सन्दर्भमां तेनो अर्थ मात्र जुदां उच्चारणोवाकुं स्वरूप समजवानो छे. आवां जुदा जुदां