Book Title: Hemchandracharya no Deshi Shabdasangraha Ek Parichaya
Author(s): Shantibhai Acharya
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० हेमचन्द्राचार्यनो देशी शब्दसङ्ग्रहः एक परिचय डॉ. शान्तिभाई आचार्य ८१ अहीं गुजरातना सुवर्णकाळ अवो सोलंकीयुगमां पोतानी बहुमुखी प्रतिभाथी राजकीय, सामाजिक अने धार्मिक क्षेत्रोने प्रभावित करीने गुजरातनी अस्मिताना द्रष्टा कलिकालसर्वज्ञनुं बिरुद प्राप्त करनार हेमचन्द्राचार्य रचित अने पण्डित बेचरदासजी सम्पादित देशीशब्दसग्रह पुस्तकनो परिचय कराववानो उपक्रम छे. महान जैनाचार्य हेमचन्द्रसूरिथी गुजरातनो विद्वद्वर्ग भाग्येज अज्ञात होय, एम छतां तेमना सङ्ग्रहनी वात करवानी होई, भूमिकारूपे तेमना जीवननी झांखीरूप वात करीने पुस्तकनी वातमां जवानुं योग्य गण्युं छे. हेमचन्द्राचार्य : जीवनझांखी हेमचन्द्राचार्यनां जीवनचरित्रो संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती वगेरे अनेक भारतीय भाषाओमां लखायां छे, उपरान्त जर्मनीना विद्वान डॉ. ब्युलरे जर्मनभाषामां पण आचार्यश्रीनुं जीवन चरित्र आलेख्युं छे. तेमनां विविध जीवनचरित्रो परथी जणाय छे के तेमनो जन्म सौराष्ट्रना धंधूका नामना गाममां संवत ११४५ (ई.स. १०८९) ना कार्तकमासनी पूनमे थयो हतो. प्रभाचन्द्रना मूळ संस्कृतभाषामां रचायेला प्रभावकचरितग्रन्थमांनी हकीकत मुजब धंधूकामां चाच अने पाहिनीदेवी नामनुं श्रावकदम्पती रहेतुं हतुं. तेओना मळता विविध उल्लेखो ओम मानवानो प्रेरे छे के श्राविका पाहिनीदेवीमां खूब ज धार्मिक श्रद्धा, भक्तिभाव अने मानवता जेवा सद्गुणो प्रबळ हता. आथी पाहिनीदेवी, साधु देवचन्द्रसूरिनी वन्दना करवा वारंवार जतां. एक दिवस, पाहिनीदेवीओ अ गुरुदेवने अलौकिक तेजोमय मणि भेट धर्यो होवानुं पोताने स्वप्नदर्शन थयानी वात, नित्यनी वन्दना करीने, गुरुजीने करी. गुरुने स्वप्ननी आ वात, कोई महान सत्यनी आगाही रूप जणाई. आथी तेमणे पाहिनीदेवीने जणाव्यं के भविष्यमां ते गुजरातने पोताना तेजथी उजाळे तेवा महान तेजोमय मणिनी धर्मशासनने भेट आपशे अने थोडा वखतमां आ भावि भेट पाहिनीदेवीनी कुखे चंगदेव नामे जन्मी घरमा आनन्द छवाई गयो. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ समय व्यतीत थतो जाय छे तेमां अक दिवस आशरे पांच-छ वरसना थयेला पुत्र चंगने लईने पाहिनीदेवी गुरुवन्दना करवा देवचन्द्रसूरि पासे उपाश्रयमां आवी. दरमियानमां बाळक चंग तेनी पासेथी क्यारे जतो रह्यो तेनी तेने खबर न रही. चंगदेवने शोधवा माता आमतेम जुओ छे तो, तेणे चंगदेवने आचार्य देवचन्द्रसूरिजीना आसन पर बेठेलो जोयो ! आ जोईने माताना हृदयमां शा भावो थया हशे ते आपणे जाणता नथी, परन्तु आ दृश्य जोईने देवचन्द्रसूरिजीओ तेने पूर्वना स्वप्ननी वातनी याद अपावीने धर्मासन पर बेठेला आ तेजमूर्ति बाळक तरफ आंगळी चींधीने पाहिनीने जणाव्यु के तेनो आ बाळक योगी थवा सर्जायेलो छे. चंगदेवने धर्मशासनने अर्पण करी देवा गुरुदेवे पाहिनीने समजावी. पाहिनीनो जीव धर्मपरायण हतो तेनी साथोसाथ तेनामां बाह्य धर्मलक्षणो करतां साचा धर्मनी ऊंडी सूझ हशे तेम जणाय छे. धर्ममां दृढ श्रद्धा धरावनारी माता पाहिनीओ, अडग मन करी,धर्मशासनना रक्षण-संवर्धन अर्थे देवचन्द्रसूरिजीना चरणोमां मूकी दीधो ! चंगदेवने साथे लईने गुरु महाराज, आजनुं खम्भात जे ते वखते समृद्ध स्तम्भतीर्थ नगरी नामे ओळखातुं अत्यंत जाहोजलालीवाळु नगर हतुं त्यां विहार करी गया. त्यां आवीने देवचन्द्रसूरिजीओ आ बाळकने दण्डनायक उदयनने सोंप्यो. __ आ तरफ व्यापार-सफरमांथी घरे पाछा आवीने पिता चाचे पत्नी पासेथी चंगदेवनी वात जाणी. तरत ज स्तम्भतीर्थ दण्डनायक उदयन पासे जई पोताना बाळकनी मागणी करी. उदयने, आ बाळक ओक युगदृष्टा ओवो महान पुरुष थवा सर्जायेलो छे ते विषेनी अनेक दलीलो द्वारा पिता चाचने समजावतां, आखरे तेनो स्वीकार करीने पुत्र चंगदेवने धर्मशासन अर्थे गुरु देवचन्द्रसूरिने सोंपी दीधो. गुजरातनी ऊभी थयेली अस्मितानी पाछळ आवा त्यागनी अनेक जाणीती-अजाणी आख्यायिकाओ पडेली छे ! चंगदेवमांथी सोमचन्द्र : ___चंगदेव, गुरु देवचन्द्रसूरि पासे खम्भातमां रह्यो. पछीथी तेनी दीक्षानो उत्सव उजवायो. तेनी दीक्षा क्यां थई छे ते बाबतमां मतैक्य नथी. एक मत अनुसार दीक्षा महोत्सव मारवाडना नागोरमां उजवायो हतो. बीजी बाजु, प्रभाचन्द्रनो प्रभावक चरित ग्रन्थ, आ महोत्सव उदयन Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० मन्त्रीए स्तम्भतीर्थमां राख्यो हतो तेम जणावीने नोंधे छे के गुरु महाराजे चंगदेवने दीक्षा आपीने तेनुं नाम 'सोमचन्द्र आप्युं हतुं . पछीथी ते पोतानी २१ वर्षनी उमरे आचार्यपद प्राप्त करे छे त्यां सुधीना आशरे १६ वर्षना गाळानी तेमना जीवनविषयक कोइज माहिती मळती नथी. ओवो सम्भव नकारी न शकाय के आवी माहिती, हजी अप्रगट ओवी असंख्य हस्तलिखित पोथीओ ग्रन्थभण्डारोमां प्रकाशननी राह जोती पडी रही छे तेमां क्यांक दटायेली होय ! बीजुं, तेमना अनेक प्रकाशित ग्रन्थो छे तेमां पण आवी माहिती छुटी छवाई वेरायेली पण पडी होय ! खोज छे अभ्यासी अने खांखतिया धूळधोयानी, परन्तु हवे पं. सुखलालजी, मुनि जिनविजयजी, पण्डित बेचरदासजी, पण्डित मालवणियाजी अने डॉ. भायाणीना मार्ग पर चालनारने क्यां शोधवा ? केम शोधवा ? आवा धूळधोयाओना अभावे भावि गुजरातना संस्कार अने भाषा-साहित्यजगत पर घेरो प्रभाव मूकी जनारा एक महामानवना जीवनना घणाभागना अधिकृत वृत्तान्तथी आपणे अनभिज्ञ रह्या छीओ. ८३ आचार्य पद मेळवतां पूर्वे आ महामानव थवा सर्जायेला सोमचन्द्रे केवी रीते प्रवृत्ति करी हशे ? तेमनी दैनिक प्रवृत्ति केवी हशे ? शा शा विषयोनो अभ्यास कइकइ पद्धति कर्यो हशे ? तेमना सहपाठीओ कोणकोण अने केवाकेवा हशे ? तेमनी जिज्ञासावृत्तिने कयाकया मुनिमहाराजो अने सूरीश्वरोओ कइकइ रीते उद्दीप्त करीने केवीकेवी रीते तृप्त करी हशे ? आ बधी बाबतो विषे आ गाळानी कशी ज अधिकृत माहिती आपणने मळती नथी. आथी ओम मन वाळवुं रहे छे के तेमणे व्याकरण, शब्दकोश, काव्य, तत्त्वज्ञान, इतिहास वगेरे अनेक विषयोना हेमचन्द्राचार्य तरीके ग्रन्थो लख्या तेनी पूर्वतैयारीमां आ वर्षोमां सखत परिश्रम कर्यो हशे ! आना परिपाकरूपे गुरुदेव देवचन्द्रसूरिओ सोमचन्द्रने आचार्यपद पर स्थापवा निश्चय कर्यो होय तेम बने. सोमचन्द्र आचार्यपद : सोमचन्द्रने गुरुदेव आचार्यपदे स्थापे छे ते वि.सं. ११६६ (ई.स. १११०)ना वैशाखमासनी सुद त्रीज ओटले के अखात्रीजनो दिवस हतो. आ दिवसे देवचन्द्रसूरिओ, मङ्गलवाद्योना रेलाता सूरोनी वच्चे सोमचन्द्रने कानमां सूरिमन्त्र संभळावीने, मध्याह्न समये पोतानी कन्था ओढाडीने पोतानुं आचार्यपद Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ सोंपी दीधुं. २१ वर्षनी उमरना सोमचन्द्र हवे आचार्य हेमचन्द्रसूरि बन्या. आ महोत्सवमां आटली नानी उमरमां आचार्यपदने शोभावता पोताना पुत्रने मातापाहिनी आंखमां हर्षाश्रु साथे अने पोते पोतानी आंखना रतनने धर्मशासनने सोंपवाना वर्षो पहेलानां पोताना निर्णयना आत्मसन्तोष साथे, मौक्तिक शा बिन्दुओना थरमांथी धुंधळो धुंधळो जोइ रही हती. माताना मुखेथी शब्दो सर्या, 'आचार्य सूरिजी, आ श्राविकाने आप आपना जैन शासनमा समावी लो ! अने हेमचन्द्राचार्ये पाहिनीने साध्वीओना वर्गमां महत्तरापदे स्थाप्यां. ___ स्तम्भतीर्थमां रह्या रह्या हेमचन्द्राचार्ये अणहिलपुर पाटणनी कीर्तिगाथा सांभळी हती. पाटणमां ओ काळे सोलंकीकुळनो प्रतापी राजवी सिद्धराज जयसिंह राज्यकर्ता हतो. आ राजवीना समयमां पाटण राजकीय, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक वगेरे प्रवृत्तिओथी धमधमतुं हतुं अने तेनी सौरभ चोमेर फेलायेली हती. पाटणनो आ सुवर्णयुग चालतो हतो. आवा समयमां हेमचन्द्राचार्य ज्यारे विहार करता आवीने रह्या हशे त्यारे तेमने स्तम्भतीर्थमां सांभळेली पाटणनी यशोगाथा पाटणने अनुभवे जोईने स्वल्प जणाइ हशे. आचार्य हेमचन्द्र पाटणमां क्यारे आवीने स्थिर थया तेनी कोई अधिकृत तारीख नोंधायेली मळती नथी. आ माटे विविध सन्दर्भो पर आधार राखीने ओ तवारीखने अटकळे ज स्थापवी पडे छे, तेओना पाटण आववा माटेना अने त्यां वस्या होवाना विविध सन्दर्भो जोवा मळे छे, तेमांना केटलाक नीचे मुजब छे. १. स्तम्भतीर्थ हता त्यारे पाटणनी कीर्तिगाथा सांभळीने तेनाथी आकर्षाईने आचार्य आवीने स्थिर थया होय. २. पाटणनी राजसभामां विद्वानोना शास्त्रार्थ थता ते जाणीने आवा विद्याजगतमां बेसवानी तेमने अभिलाषा थई होय. ३. डॉ. ब्युलरना जणाव्या मुजब प्रभावक चरित्रना ओक आडकतरा उल्लेखथी कुमुदचन्द्र अने पाटणना जैनाचार्य देवसूरिना शास्त्रार्थ प्रसङ्गे आचार्यश्रीनी हाजरी सूचित थवी. ४. साहित्यप्रिय राजवी सिद्धराजे आचार्यनी विद्वत्तानी कीर्ति सांभळीने तेमने राजसभाओमा आववा निमंत्र्या होय. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० गमेते कारणथी राजा सिद्धराज अने आचार्य हेमचन्द्रनो मेळाप थयो होय, परन्तु अटलुं निश्चितपणे कही शकाय के गुजरातनी अस्मिताना सन्दर्भ आ मेळाप अत्यन्त लाभप्रद नीवड्यो. मेळापना फळरूपे हेमचन्द्राचार्यनी प्रसादीरूप मळेलु ‘सिद्धहेमचन्द्र शब्दानुशासन'नामनुं व्याकरण आचार्यनी ओक महान कृति छे. पछीथी तो आचार्ये गुजरातने गौरव अपावनारा अनेक ग्रन्थोनी रचना करी. आमांना केटलाक महत्त्वना ग्रन्थो नीचे मुजब छे. १. व्याश्रय (संस्कृतभाषामां) आ ग्रन्थ सोलंकीकालना राजवीओनी कीर्तिगाथा जेवो छे. तेमां वीस सर्गोनी रचना छे. सोलंकीवंशनी सत्तानो पायो नाखनार राजवी मूळराज सोलंकीथी मांडीने, जेमना शासनकाळना पोते साक्षी रह्या छे तेवा महाप्रतापी सिद्धराज अने कुमारपाळ ए बन्ने सुधीनो राज्यकाळ, कीर्तिगाथा साथे व्याकरणने गुंथीने आवी विशिष्ट रीते वर्णव्यो छे. व्याश्रयना जैतिहासिक मूल्यनी बाबतमा मतैक्य नथी, ते नोंधq जोइओ. २. कुमारपालचरित (व्याश्रय, प्राकृतभाषामां) आ व्याश्रय, प्राकृतभाषामां आठ सर्गो वाळु छे. तेमां राजा कुमारपाळना जीवनना विकासने वणी लेती कथा आपवामां आवी छे. सिद्धहम छेल्ला अध्याय प्राकृतव्याकरणनां उदाहरणोने आ कीर्तिगाथामां वणी लेवायां छे. ३. योगशास्त्र आमां सामान्यजनने उपयोगी थई शके तेवी शैलीमां योगशास्त्रने समजाव्युं छे. राजा कुमारपाल माटे खास लखेला आ पुस्तकमां मानवमनने अभ्यासविषय बनाव्यो छे. १. अभिधानचिन्तामणिनाममाला संस्कृत भाषाना 'अमरकोश' प्रकारनो आ शब्दकोश छे. आमां ओक अर्थना अनेक शब्दो आपवामां आव्या छे. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ २. अनेकार्थसङ्ग्रह आ सङ्ग्रहमां ओक शब्दना अनेक अर्थो आप्या होई, तेने अनेकार्थसङ्ग्रह नाम अपायुं छे. ३. देशीनाममाला आमां लोकव्यवहारमां प्रचलित अनेक शब्दोनो सङ्ग्रह थयेलो छे. ४. निघण्टुकोष आमां वैदकने लगता शब्दोनो सङ्ग्रह छे. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आ ग्रन्थमां शीर्षक बतावे छे तेम कुल त्रेसठ महामानवोनां जीवनचरित्रो अपायां छे. अहीं आपेला महामानवोमां तीर्थंकरो, वासुदेवो, प्रतिवासुदेवो वगेरेनो समावेश थाय छे. आमां अनेक आख्यानो अपायां छे. उपरांत तेमां कुमारपाळ विषेनी केटलीक विगत मळती होवाथी तेनुं आंशिक रीते ऐतिहासिक मूल्य होवानुं पण गणावी शकाय हेमचन्द्राचार्यनी कवित्वशक्ति पण आ ग्रन्थमां जोवा मळे छे. अहीं तेमना मुख्य मुख्य ग्रन्थोनी नामावलि ज आपी छे, केमके हेमचन्द्राचार्यना जीवनचरित्रनुं निरूपण करवानो आ लेखनो हेतु नथी. आचार्यना रचेला श्लोकोनी संख्या विषे भारे अतिशयोक्तिओ थयेली छे ते प्रत्ये मुनिश्री जिनविजयजी अने मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराजे ध्यान (जुओ, हेमचन्द्राचार्य, त्रीजी आवृत्ति १९८२, पृ. १५० - १५१, श्री धूमकेतुनुं सम्पादन) दोरेलुं छे. अमारा हेमचन्द्राचार्यना खूब ज सीमित अक्षर परिचयथी ओम लागे छे के तेमना समस्त साहित्यनु संस्कृत - प्राकृतना ऊंडा अभ्यासी अने निष्ठावान तथा साम्प्रदायिकताथी पर ओवा विद्वान द्वारा परामर्शन कराव्या बाद, अ महामानवने आजना सन्दर्भमां मूलवता प्रकाशननी ताती जरूर छे. आचार्यश्रीना जीवननी, आ लेखना सन्दर्भमां जरूरी छे तेटला पूरती झांखी कर्या बाद, हवे तेमना, युनिवर्सिटी ग्रन्थनिर्माण बोर्ड, अमदावाद, १९७४, द्वारा प्रकाशित, अने पण्डित बेचरदास जीवराज दोशी सम्पादित देशीशब्दसङ्ग्रहनो परिचय करीओ. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० देशीशब्दसङ्ग्रह : विद्वान सम्पादकश्री प्रस्तावनामां प्रथम तो पुस्तकना शीर्षकनी प्रामाणिकता अंगे शङ्का उठावीने नाम अंगेनी दलील करता जणावे छे के, १. आ ग्रन्थनी गाथा ७८३ ग्रन्थनुं नाम 'देशीशब्दसङ्ग्रह' होवानुं जणावे छे. आ पुस्तकना पृष्ठ ४३६ पर आ गाथानी चर्चा करतां, पण्डितजी जणावे छे के ‘सिद्धहेम शब्दानुशासन' नामे आ ग्रन्थ 'मुनिश्री हेमचन्द्राचार्ये, राजा सिद्धराज सोलंकीनी प्रेरणाथी लख्यो छे. (जुओ, 'पूरक टिप्पणो' पृ. ३) व्याकरणग्रन्थना आ नामना आरम्भना सिद्धहेम शब्दमां पूर्वार्ध सिद्ध-शब्द सोलंकी राजा सिद्धराज माटे अने पछीनो 'हेम' शब्द लेखके पोताना नाम (हेमचन्द्राचार्य)नी टूंकी संज्ञारूप वापर्यो छे. लेखक आ वात आठमा अध्यायना अन्ते आपेला पुष्पिका श्लोकमां स्पष्टपणे जणावे छे. ८७ पण्डितजीओ संस्कृत - प्राकृत- अपभ्रंशना अनेक प्रकाशनो आप्यां छे तेमां हेमचन्द्रना आ ‘देशीशब्दसङ्ग्रह' नुं कार्य शिरमोर समान गणावी शकाय तेवुं छे. पण्डितजी आ सम्पादनकार्य करवामां जे शारीरिक-मानसिक श्रम उठावता हता ते जोइने आ लेखके तेमना चरणोमां माथुं नमाव्युं हतुं. ओ वखते ओक आंख तो लगभग गयेली हती, आथी बाकीनी ओक आंखना सहारे ज थयेलुं आ कार्य छे ! सिद्धहेमनी रचनामां सत्ता अने विद्वत्ताना सुमेऴ वडे लोकहित सधायुं छे तेम आ कार्यमां पण बन्युं छे. गुजरात युनिवर्सिटीना तत्कालीन कुलपति स्व. ईश्वरभाई पटेलनी लोकहितनी खेवना अने दीर्घ दृष्टि विद्वत्तानो सुमेऴ साध्यो न होत तो गुजरात आ महामूली भेटथी वंचित रह्युं होत. हवे आपणे पण्डितजीओ करेला आ कष्टसाध्य कार्यनी थोडी विगतमां उतरीओ. कृतिनुं नाम : आचार्य हेमचन्द्राचार्यनी आ कृतिना, रयणावली, देशीसद्दसडगहो (देशी शब्दसङ्ग्रह) अने देशीनाममाला अवां त्रण नामो मळे छे. नाम पर प्रकाश पाडती ग्रन्थनी ७८३मी गाथा नीचे मुजब (पृ. ४३६) छे : Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ इति रत्नावलिनामा देशीशब्दानां सङ्ग्रहः एषः । व्याकरणलेशशेषः रचितः श्रीहेमचन्द्रमुनिपतिना ॥ आ गाथा स्पष्टपणे जणावे छे तेम व्याकरणशेष आ देश्य शब्दोनो रयणावली नामे पण ओळखातो आ सङ्ग्रह श्री हेमचन्द्रमुनिपतिले रच्यो छे. आ गाथाथी जणाय छे के शब्दोना सङ्ग्रहकारे ग्रन्थनुं पूरुं नाम 'रत्नावलिदेशीशब्दसङ्ग्रह' राख्युं छे. आ सङ्ग्रहनो विशेष करीने 'देशीनाममाला' नाम स्वीकारीने अभ्यासो थाय छे तेमां, संस्कृतमां माला पदान्तवाळा अनेक प्रसिद्ध कोशो रचाया छे तेनी असर तळे आम थयुं होवा, कल्पी शकाय. सम्पादके अहीं सङ्ग्रहकारे उपर आपेला दीर्घनामने टुंकावीने 'देशीशब्दसङ्ग्रह' नाम आ सङ्ग्रह माटे राख्युं छे. ग्रन्थनी मूळ गाथाओ ७८३ छे अने उदाहरणगाथाओ ६२२ छे. आना सम्पादनकार्यमा सम्पादके जे बे पोथीओनो उपयोग को छे तेमांनी ओक, पाटणनी पोथी वि.सं. १६६६ ना वर्षमां लखायेली छे अने बीजी पूनानी पोथी वि.सं. १६५८ना वर्षमां राजनगरमां लखायेली छे. कृतिना सङ्ग्रहकार : ___ उपर नोंधेली ७८३मी गाथामां कृतिना रचयिता 'श्रीहेमचन्द्रमुनिपति' छे तेम स्पष्ट उल्लेख छे. आ उल्लेखथी आ सङ्ग्रहना रचनार के कर्ता 'हेमचन्द्राचार्य' छे ते निर्विवाद छे. आम होवा छतां ग्रन्थना सम्पादक पण्डितजी आ सिवायरॉ, ग्रन्थ- बीजुं नाम होवानो निर्देश आपतुं प्रमाण रजू करीने ग्रन्थकर्ता अन्य कोई होवानो सम्भव ऊभो करे छे. ___आ अंगे पण्डितजी नोंधे छे (प्रस्तावना, पृ. ९) के सङ्ग्रहनी ७८३मी गाथामां 'रइओ सिरिहेमचन्द्रमुणिवइणा' पाठ छे ते मुनिपतिओ रचना करी छे तेम दर्शावे छे, परन्तु बीजी पूना वाळी हस्तप्रतमां आ माटे पाठ मळे छे ते 'सिरिहेमचंदमुणिवयणा'. वयणा शब्दथी मुनिना 'वचनथी' अवो अर्थ आपे छे. आथी अम अर्थ करवाने कारण मळे छे के हेमचन्द्रमुनिनी आज्ञाथी अन्य कोइअ आ ग्रन्थनी रचना करी होय ! पण्डितजी आ वातने पुष्ट करे तेवू प्रमाण पण आ ग्रन्थमाथी शोधीने रजू करे छे. आ माटे ग्रन्थनी ६१२मी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० गाथानी बीजी पंक्तिमांना 'भ्रमरे रसाउ - रोलंबा' पदने टांकीने पण्डितजी जणावे छे के मुनि हेमचन्द्र रोलम्ब शब्दनो भमरो अर्थ आपीने 'रोलंब' ने देश्य शब्द तरीके नोंधे छे. पछी आनी वृत्तिमां सङ्ग्रहकार नोंधे छे के ' रोलम्बशब्दं संस्कृतेऽपि केचिद् गतानुगतिकतया प्रयुञ्जते' अर्थात् गतानुगतिक प्रवाहने अनुसरी, केटलाक कोशकारो रोलम्ब शब्दने संस्कृत भाषामां पण प्रयोजे छे. आनो अर्थ से थाय के अहीं आवा शब्दसङ्ग्रहकर्ताओ गतानुगतिकपणे चालनारा छे. आ उल्लेखना सन्दर्भमां ज्यारे जे ग्रन्थनी रचना अने टीका पोते ज करेली छे तेवा अभिधानचिन्तामणि नामना ग्रन्थमां रोलम्ब शब्दने संस्कृत शब्द तरीके स्वीकार ( काण्ड ३, श्लोक २७०) करेलो छे अने ' अली रोलम्बो द्विरेफः' ओम भ्रमरना पर्यायरूपे उल्लेख कर्यो छे तेना प्रमाण आपीने पण्डितजी जणावे छे के आनाथी तो सग्रहकार पोतेज गतानुगतिक ठरे छे ! तेमणे प्रश्न कर्यो छे के आचार्य पोते ज पोता पर गतानुगतिकतानो आक्षेप करे खरा ? अर्थात् पोते न करे ते तेमने अभिप्रेत छे. जो आम होय तो आ ग्रन्थ आचार्यना कहेवाथी अन्य कोइओ रच्यो होवानो सम्भव ऊभो थाय छे अने पूनावाळी हस्तप्रतना 'मुनिना वचनथी' रचाइ होवाना निर्देशने टेको मळे छे. पण्डितजी आ बाबतमां संशोधन कराय अने सत्वरे आनो निर्णय थाय तेम इच्छे छे. पण्डितजीनी आ इच्छापूर्ण थाय ओवी ईश्वरने अमारी प्रार्थना छे. सङ्ग्रहकार विषेनी पण्डितजीनी टिप्पणी : ८९ आ ग्रन्थना रचयिताने भावांजलि आपतां पण्डितजी जणावे छे के ग्रन्थ रचनार गमे ते होय, पण ते संस्कृत, प्राकृत अने देशी प्राकृत भाषाओनो असाधारण अभ्यासी छे. तेणे अनेक देशीसङ्ग्रहो तपास्या छे अने से जुदाजुदा सङ्ग्रहोना सङ्ग्रहकारोना विविध मतोनी चकासणी कर्या पछीथी आ सङ्ग्रहमां तेओना मत टांक्या छे. आनी पुष्टि माटे सम्पादक पण्डितजीओ सूचवेली ७१८ अने ७२३ क्रमांकनी गाथाओ जोइओ. गाथा ७१८नी वृत्तिमां, गाथामांना सराहअ शब्दनी चर्चा करतां सङ्ग्रहकार हेमचन्द्राचार्य नोंधे छे के आ शब्दनो 'सर्प' अर्थ छे तेनो समानार्थी शब्द पयलाय जणावीने अभिमानचिह्न नामनो सङ्ग्रहकार आ बन्ने शब्दो पर्यायवाची होवानुं लखे छे. आम होवा छतां पाठोदूखल नामना सङ्ग्रहकार तेनी गाथामां Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ वपरायेला पयलाय शब्दनो अर्थ 'कामदेवना बाणो वडे हणायेली' ओवो करे छे ते बराबर नथी, केमके प्राचीन देशीसङ्ग्रहोमां पयलाय शब्द 'सर्प' अर्थने सूचित करतो वपरायो छे. आनी पुष्टि माटे सङ्ग्रहकारे अभिमानचिह्न नामना सङ्ग्रहकारे पण आ शब्द 'सर्प'ना अर्थमां वापर्यो छे ते दर्शावती उदाहरणगाथा (५७४) पण आपी छे. ९० आवुं ज बने छे समुच्छणी शब्दना अर्थनी बाबतमां. अक सङ्ग्रहकार वहुआरिय शब्द जे 'वहु' अर्थनो सूचक छे तेनो समानार्थी समुच्छ्णी शब्दने गणावे छे तेमां व अने ब वर्ण-वाचना भूल होवानुं मानी आचार्यश्री नोंधे छे के ते शब्द 'बहुआरिय' छे अने तेनो अर्थ 'सावरणी' छे. आम 'सावरणी'ने बदले नोंधायेलो ‘वहु’ अर्थ बराबर नहीं होवानुं हेमचन्द्राचार्ये स्पष्ट करी बताव्युं छे. तेओ- 'सावरणी' अर्थनी पुष्टि माटे बीजा अनेक देशीसङ्ग्रहकारोनां उदाहरणो पण टांके छे. आवी वाचनानी भूलो करनाराओने लिपिभ्रष्ट कहीने हेमचन्द्राचार्ये उमेरे छे के देशीशब्दसङ्ग्रहोमां आवुं आवुं तो घणुंबधुं छे, परन्तु आम बीजाना दोष काढवा ते उचित नहीं होवा छतां, अभ्यासीओने अर्थ मेळववामां मुश्केली न पडे ते माटे तेमणे आ लख्युं छे. आ ग्रन्थमां तेमणे अनेक मतो नोंध्या छे तेमांथी जे मत योग्य जणातो होय तेने स्वीकारवामां संकोच अनुभव्यो नथी. तेमणे खुल्ला मनथी ओम पण जणाव्युं छे के आवा विवादग्रस्त शब्दोना विषयमां देशीशब्दोना ज्ञाता पण्डितोनो निर्णय आखरी प्रमाणरूप गणाय. सङ्ग्रह अंगे सम्पादकनी चर्चा : आ सङ्ग्रह अंगे सम्पादक पण्डितजी जणावे छे के आखोय ग्रन्थ बराबर अनुक्रमथी गोठवायेलो छे. आचार्य हेमचन्द्रजीना आ ग्रन्थ पूर्वे, व्यवस्थित क्रम साथे रचायेलो आवो कोई ग्रन्थ हतो नहीं. अभ्यासीओने शब्द शोधवामां मुश्केली न पडे तेनो ख्याल राखीने आचार्यश्री ओ आ ग्रन्थ रच्यो छे. आमां शब्दो आपवानी साथसाथ अ शब्दोना व्यवहार वपराशने समजावती उदाहरणगाथाओ आपी होवाथी शब्दनो आवो प्रयोग अर्थनी स्पष्टतामां उपयोगी बने छे. ओकार्थी अने अनेकार्थी शब्दो आमां अपाया छे. मूळग्रन्थनी गाथाओ प्राकृतभाषामां छे अने तेना परनी वृत्ति आचार्य श्री ओ पोते ज रचीने संस्कृतभाषामां Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० आपी छे. ग्रन्थ रचायाना काळमां शब्दना उच्चारण अने अर्थनो निर्णय करवा माटे आजे उपलब्ध छे ते तुलनात्मक पद्धति अस्तित्वमां न हती. आ माटे बहुधा पूर्वपरम्परानो आधार लेवामां आवतो हतो. सम्पादक पण्डितजी नोंधे छे के सङ्ग्रहकारे चुक्कड अने बोक्कड अवा बे शब्दो ‘बोकडा' माटे नोंध्या छे तेने सरखाववा माटे नव्यभाषा गुजरातीमां प्रचलित 'बोकडो' शब्दनी तुलनानी सवलत होत तो सङ्ग्रहकारे चुक्कड शब्द न आप्यो होत. आ सङ्ग्रहमां ब अने व बंनेने बदले च लखायानां घणां दृष्टान्तो छे ते तरफ पण्डितजी आ ग्रन्थना अभ्यासीओनुं ध्यान दोरे छे.१ । बीजुं, पण्डितजी जणावे छे तेम मूळ गाथाओमां धातुओनो सङ्ग्रह नथी कर्यो ते ठीक ज थयुं छे, परन्तु वृत्तिमां धातुओनो सङ्ग्रह कर्यो छे त्यां पण तेम नहीं करतां, धातुओने - व्याकरणमा आप्या होवाथी अहीं तेनुं पुनरावर्तन कर्यु नथी तेवू लखी दईने ग्रन्थY कद घटाडी शकायुं होत. सङ्ग्रहकारे संस्कृतशब्दोने मळता आवता होय तेवा घणाबधा शब्दोने देश्यशब्दो तरीके नोंध्या छे. उ.त. सङ्ग्रहकार आचार्यश्री जणावे छेके 'परिरम्भ' अर्थनो 'अवॉड' धातु, पूर्वसूरिओओ व्याकरणमां नहीं नोंघेल होवाथी पोते पण तेनुं अनुसरण करीने धातुने व्याकरणमां नोंघेल नथी.. सम्पादक पण्डितजी जणावे छे के जो आ रीते ज पूर्वसूरिओने अनुसरवा, होय तो पछी आवो अनुक्रमयुक्त देशीसङ्ग्रह शा माटे बनाव्यो? पूर्वसूरिओमांथी कोईओ आवो सङ्ग्रह क्या बनाव्यो छे ? देश्य शब्दो घणा प्राचीनकाळथी पारम्परिक रीते उतरी आवता शब्दो छे. आजे आवा शब्दोमां मूळधातु अने प्रत्ययने घणुंखरूं शोधी शकाता होता नथी ते खरं, पण जो तुलना करीने आवा शब्दोनां मूळनी आगाही करी शकाती होय तो करवी जोइओ तेम सम्पादकश्री पण्डितजी- कहेवू छे. उदाहरण आपतां ते कहे छेके ६७५ मी गाथामां 'राहु'ना पर्यायरूपे आपेलो विहुंडुअ शब्द संस्कृत शब्द विधुन्तुद साथे अर्थनी बाबतमां बराबर समानतावाळो छे. ध्वनिरूपे बदली गयेलो आ शब्द संस्कृत शब्दना मूळनो छे. आ प्रकारना घणा शब्दो आ १. वास्तवमां ब नो व ने तेनो च थवो ए लेखनदोष समजीने बुक्कड पाठ ज मान्य राखवो जोईए. सं. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ सङ्ग्रहमां नोंधाया छे. पण्डितजी माने छे के कदाच पूर्वपरम्पराना कारणे आवा शब्दो नोंधाया होय तो पण तेवा शब्दोथी नकामं ग्रन्थनुं कद वधे छे. देशीशब्दसङ्ग्रह : ९२ आ शब्दसङ्ग्रह आचार्य हेमचन्द्र रचित सिद्धहेम व्याकरणनो अक भाग छे. आ व्याकरणना आठ अध्याय छे तेमां प्रथम ओकथी सात अध्यायो मुख्यत्वे संस्कृतभाषाने वर्णवे छे. छेल्ला आठमा अध्यायमां पांच प्राकृतभाषाओनां व्याकरणने समजावेल छे. आठमा अध्यायना चार पादोमांथी त्रण पूरा पादो अने चोथा पादना २५९ सूत्रो प्राकृतभाषाना व्याकरणने वर्णववामां रोकायेला छे. चोथा पादना आ पछीना सूत्रोमांथी सूत्र २६० थी २८६ सुधीना २७ सूत्रो शौरसेनी भाषानुं व्याकरण, २८७ थी ३०२ सुधीनां १६ सूत्रोमां मागधीभाषानुं, ३०३ थी ३२८ सुधीनां २६ सूत्रोमां पैशाची अने चूलिकापैशाचीनुं तथा सूत्र ३२९ थी ४४८ सुधीनां ११९ सूत्रोमां अपभ्रंशभाषानुं व्याकरण वर्णवेल छे. आम, आ ग्रन्थमां अपभ्रंश भाषाना व्याकरणवर्णननां सूत्रोमां अन्य प्राकृतभाषाओना वर्णननी सरखामणीओ सौथी वधारे सूत्रो अपायां छे. आ देशीशब्दसङ्ग्रहना शब्दोने आ अपभ्रंश भाषा साथे विशेष पणे सम्बन्ध छे. आ प्रकारना शब्दो प्राचीन परम्पराथी देशी, देश्य अने देशज शब्दो तरीके ओळखाता आव्या छे. भारतीय प्राचीन व्याकरणपरम्परामां भाषाना साहित्यिक स्वरूपने वर्णवातुं हतुं. समाजमां शिष्ट गणातो वर्ग जे भाषास्वरूपमां वाक्-व्यवहार करतो होय ते भाषानां वर्णनो, व्याकरणो अपातां हतां अने ते भाषाना सन्दर्भमां व्याकरणो रचातां हतां. बीजी रीते कहीओ तो भाषानी संरचना दर्शाववाना बदले भाषाना शिष्टमान्य स्वरूपनी जाळवणी पर भार मूकातो हतो. आ पछीथी समाजमां शिष्टवर्गनुं वर्चस्व होय छे तेने लीधे तेनी भाषानुं पण वर्चस्व स्थपातुं चाल्युं अने तेवा साहित्यस्वरूप सिवायनां भाषास्वरूपो भ्रष्ट गणावा लाग्यां. भाषाविज्ञाननी दृष्टि भाषाना विविधरूपे बोलातां स्वरूपोमां कोईपण स्वरूप भ्रष्ट नथी, हा ते जुदुं जरूर होइ शके छे. सम्पादक पण्डितजीओ आ वात स्पष्टरूपे समजावी छे. तेओ जणावे छे के अपभ्रंश शब्दनो अर्थ 'भ्रष्ट' थाय छे ते खरुं, परन्तु भाषाना सन्दर्भमां तेनो अर्थ मात्र जुदां उच्चारणोवाकुं स्वरूप समजवानो छे. आवां जुदा जुदां Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० उच्चारणोमां अमुक शुद्ध अने बीजां अशुद्ध से मान्यता भूल भरेली छे. आनुं दृष्टान्त आपीने जणावे छे के केटलाक लोको 'गयो हतो' ओम बोले, केटलाक 'गयो तो' अने बीजा केटलाक 'ग्यो तो' बोले, ते सहु गुजराती बोलनारा ज छे. आमां ओक उच्चारण - शुद्ध अने बीजुं भ्रष्ट तेवुं नथी. तेमां जुदापणुं जरूर छे. तेओ उमेरे छे के 'सिद्धहेम'ना अध्यायमां आपेला आ अपभ्रंश भाषाना व्याकरणथी अगियारमा - बारमा - सैकानी लोकमां प्रचलित भाषा पर प्रकाश पाडे छे. वळी ओ भाषानुं स्वरूप योग्य रीते समजाय ते माटे आचार्य श्री ओ पद्यमां अनेक उदाहरणगाथाओ आपी छे. आ उदाहरणोमां मूळ विषे जाणकारी प्राप्त थती नथी, परन्तु आ पद्योमांनां केटलांक परम्पराथी चाल्या आवतां अने केटलांक लोकसाहित्यमा प्रचलित होय तेवुं बनी शके. उपरान्त सङ्ग्राहकना पोते रचेलां पण केटलांक होय तेवा सम्भवने नकारी शकाय नहीं. ९३ हेमचन्द्राचार्यना आ व्याकरण पूर्वे रचायेलां बीजां अनेक व्याकरणो, गमे ते कारणोसर देश्य शब्दोनी व्युत्पत्ति दर्शावतां नथी. हेमचन्द्राचार्य पण आ परम्पराने अनुसर्या होवानुं पण्डितजी जणावे छे. सङ्ग्रहकार आचार्यश्री अनादिकाळथी चाली आवती भाषाने देशी प्राकृतभाषा तरीके ओळखावीने उमेरे छे के आ देशी प्राकृतभाषाना शब्दोना मूळधातुअंश अने प्रत्ययअंशने सहेलाईथी ओळखी शकाता होता नथी. आ वातने समजाववा माटे सम्पादक पण्डितजी, पोताना नानपणमां सणोसरामां सांभळेला दुदण, हिलोला अने घोहो ओ त्रण शब्दो दृष्टान्तरूपे नोंधे छे. आमांना प्रथम शब्दनो अर्थ ‘ऋतुवगरनां वादळां थयेलो, न गमे तेवो दिवस', बीजानो 'आनन्द के मजा' अर्थ अने त्रीजानो 'हजी पूरुं न देखाय तेवुं झांखुं सवार' आवा आ त्रणेना अर्थो छे. पछी पण्डितजीओ आ त्रणे शब्दोनां मूळ अनुक्रमे दुर्दिन, हल्लोल अने गोस शब्दोमां जोयां. अहीं कहेवा दो के हालारमां अमे आजे पण 'हिलोळा' शब्द आ अर्थमां वापरीओ छीओ. सम्पादक जणावे छे के आ सङ्ग्रहना शब्दो पण आ प्रकारना अतिशय जूना होइ, विरूप बनी गया छे. आवा बधा शब्दो देशी शब्दो कहेवाया. सम्पादकश्रीना जणाववा मुजब संस्कृत अने प्राकृत साहित्यनी जेम Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ देशीप्राकृत साहित्य पण प्रतिष्ठित हतुं. एक जैन आचार्ये पोताना भाष्यमां पादलिप्तसूरि लिखित तरङ्गवती नामना आख्यायिका ग्रन्थनो उल्लेख कर्यो छे ते ग्रन्थ देशीप्राकृतमां रचायेलो होवानुं कहेवाय छे. आ सिवाय बीजुं देशीप्राकृत साहित्य पण हशे तेवुं अनुमान अने देशीशब्दसङ्ग्रहोना उल्लेखो मळे छे ते परथी बांधी शकाय. उ. त. आचार्य हेमचन्द्र पोताना सङ्ग्रहनी वृत्तिमां जुदाजुदा सङ्ग्रहकारोना केटलाक नीचे मुजबनां नामो आपे छे : ९४ १. द्रोण, २. अवन्तीसुन्दरी, ३. अभिमानचिह्न, ४. शीलाङ्क, ५. धन पाळ, ६. सातवाहन, ७. गोपाल, ८. देवराज ( गोकुलप्रकरणनो कर्ता), ९. पाठोदूखल. आटला बधा देशी शब्दसङ्ग्रहो थया होय तेमांथी सूचन मळे छे के ओक काळे देशी प्राकृत साहित्यनो प्रचार, देशमां सारा प्रमाणमां हशे. पण्डितजी नोंधे छे के (१) द्रोण अने (४) शीलाङ्क नामना जैनाचार्यो थइ गया छे, परन्तु तेओ अहीं निर्देशेल देश्य शब्दसमूहोना रचयिता हशे के केम ते अंगे कशुं ज निश्चितपणे कही शकाय तेम नथी. तेवुं ज (२) अवन्तीसुन्दरीनो उल्लेख ११मा सैकामां थयेल कवि धनपाळनी नानी बहेन सुन्दरीने सूचित करे छे के केम ते विषे कही शकाय नहीं. (५) धनपाऴ तिलकमञ्जरी आख्यायिकान रचयिता छे तेनो निर्देश होवानुं जणाय छे. ग्रन्थनी रचना विषे : प्राचीन ग्रन्थकर्ताओ ग्रन्थना आरम्भरूप मङ्गलाचरणमां इष्टदेवनुं स्मरण करीने ग्रन्थना विषय वस्तुनो निर्देश करता हता, ते परिपाटी स्वीकारीने आचार्य हेमचन्द्र पण चाल्या छे. तेओए आ ग्रन्थनुं विषयवस्तु देशी शब्दोनो सङ्ग्रह छे ते शरुआतमां मूळ बीजी गाथामां स्पष्ट कर्तुं छे. आ विषय वस्तुने अर्थात् देशी शब्दो आपेला छे तेने समजवा माटे आ ग्रन्थ छे. बीजी रीते कहेतां, आ ग्रन्थ आपेला शब्दोने समजवानुं साधन छे. प्राकृत व्याकरणोमां प्राकृतभाषाना तत्सम तद्भव अने देश्य अवा त्रण प्रकारो पाडवामां आवे छे. तत्सम अटले संस्कृतना जेवा ( अहीं तत् ओटले संस्कृतभाषा समजवानी छे.) संस्कृत द्वारा व्युत्पन्न थई शक्या होय ते तद्भव अने जे शब्दोनो प्रकृति अर्थात् मूळ अमुक अंश अने प्रत्ययनो भेद करी Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० शकातो न होय ते देश्य शब्दो छे. सम्पादक, वीर, नीर, संसार वगेरे शब्दो पहेला प्रकारना, घट-घड, पठ-पढ वगेरे बीजा प्रकारना अने ओरल्ली (लांबो मधुर स्वर), इल्ली (सिंह) वगेरेने त्रीजा प्रकारना शब्दोनां दृष्टान्तो तरीके धे छे. विविध शास्त्रोमां वस्तुना स्वरूपनो निर्णय करवा माटे वर्ण्य वस्तुनुं लक्षण बांधवामां आवतुं होय छे. आनाथी विषयवस्तुने समजवामां सुविधा थती होय छे. आचार्य श्रीओ आ परिपाटी स्वीकारीने पोताना आ ग्रन्थना स्वरूप निर्णय जणावतां कह्युं छे के प्राकृतभाषाना ओक विशेष भागरूपे आदिकाळी चाली आवती भाषा ते देश्य के देशी प्राकृत. आम देश्य प्राकृत अ प्राकृतभाषानो ज अक विशेष प्रकार छे. ९५ हेमचन्द्राचार्ये आ सङ्ग्रहमां देशी शब्दोनी व्यवस्थित क्रमवाळी गोठवणी आपी छे. आ पूर्वेना देश्य शब्दसङ्ग्रहना कोइ पण ग्रन्थमां आवी क्रमवाळी शब्द गोठवणी मळती नथी. आ व्यवस्थाथी अभ्यासीओने शब्द शोधवामां सुविधा थाय छे. बीजुं आवा शब्दोना व्यवहार समजाववा माटे व्यापक रीते उदाहरणगाथाओ आपवामां आवी होवाथी, जे ते शब्दना प्रयोग विशे स्पष्टता थाय छे. लेखनपद्धति : प्राकृतभाषामां लेखन रचना अंगेना केटलाक मुद्दाओ नीचे मुजब छे : १. ऋ, ऋ, लृ, लृ, औ, औ ना लिपिचिह्नवाळा स्वरोनो वपराश नथी. २. तालव्य श अने मूर्धन्य ष ना बदले मात्र दन्त्य स वपराय छे. ३. आदिस्थानमां कोइपण शब्दमां य वपरातो नथी होतो. आ सङ्ग्रहमां आचार्ये आ लेखनपद्धति स्वीकारी छे अने ते मुजब नीचे प्रमाणेना आठ वर्ग पाडीने वस्तु संकलना करी छे. वर्गक्रम मूळगाथाक्रम (अने) मां समाता स्वर- व्यञ्जनो आदिमां स्वरवाळा शब्दो ५- १७४ १७५-२८६ आदिमां क वाळा शब्दो २८७-३४८ आदिमां च वाळा शब्दो प्रथम ब जो Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ चोथो पांचमो छठ्ठो सामो आठमो अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ आदिमां ट वाळा शब्दो आदिमां त वाळा शब्दो आदिमां प वाळा शब्दो आदिमां र, ल, व वाळा शब्दो आदिमां स अने ह वाळा शब्दो ३४९-३९९ ४००-४६२ ४६३-६१० ६११-७०६ ७०७-७८२ वळी, गाथा ३मां आचार्य श्रीओ जणाव्युं छेके सिद्धहेमव्याकरणमां सिद्ध नथी कर्या तेवा अने संस्कृत कोशोमां प्रसिद्ध न होय तेवा शब्दो आ सङ्ग्रहमां स्वीकारेल छे. आ उपरान्त संस्कृत कोशोमां न होय, परन्तु गौणी, लक्षणा वगेरे शक्ति द्वारा, अर्थदृष्टि साधी शकाय तेवा शब्दो आ सङ्ग्रहमां नथी तेनुं सहेज सूचन मळे छे. आ आठ वर्गोमां सङ्ग्रहकारे कक्कावारी मुजब अनुक्रमे शब्दोनी गोठवणी करी छे. उ.त. प्राकृतमां अ थी ओ सुधीना आठ स्वरोनो वपराश छे तेथी स्वरोना प्रथम वर्गमां आ क्रमे शब्दो आप्या छे. तेवी ज रीते बधा वर्गो विषे कक्कावारी प्रमाणेनो क्रम आप्यो छे. आवा क्रममां पण शब्दोमां स्वरनी संख्यानी दृष्टिअ पेटाक्रमनी गोठवणी करी छे. देश्य प्राकृतमां अक स्वरवाळा शब्दो व्यवहारमां नहीं होवाथी, आमां बे स्वरथी मांडीने छ स्वरवाळा शब्दोनो क्रम आप्यो छे. अर्थना दृष्टिकोणथी जोतां, प्रथम अकार्थी शब्दोनो व्यवहार समजाववा माटे जे ते शब्दनो जेमां उपयोग थयो होय तेवी उदाहरणगाथा आपी छे. अनेकार्थी शब्दोनी आवी गाथाओ आपवाथी वधारे गूंचवण थवानी तेम मानीने ते बाबतमां उदाहरणगाथाओ आपवामां आवी नथी तेवुं सङ्ग्रहकारनुं कहेवुं छे. आवा शब्दोनी बाबतमां प्रवर्तता विविध मतोना आचार्य श्री अनेक उल्लेखो कर्या छे अने ग्राह्य लागे तेवा मतोनो आदर पण कर्यो छे. ग्रन्थना सम्पादक अने सम्पादन : आ ग्रन्थना सम्पादक स्व. बेचरदास जीवराज दोशी, परन्तु आ नाम करतां विद्याजगतमां पण्डित बेचरदास के मात्र पण्डितजी नाम विशेष जाणीतुं छे, आ ग्रन्थ प्रसिद्ध थयो ई.स. १८७४मां. तेमणे पोतानी सही 'बेचरदास' अटली करीने ता. १६ - २ - ७५ना रोज आ लखनारने भेट मोकली आप्यो हतो Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० तेनुं ऋण चुकववानी ३५ वर्ष बाद आ लेख द्वारा तक ऊभी थई. आवी तक ऊभी करवामां माध्यम बननारा पू.जैनाचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजीनो आभार मानीने स्व. पण्डितजी विषे आ सन्दर्भे नोंध रजू करुं छु. ई.स. १९७० पछीना त्रण-चार वर्षोमां आ पुस्तकनुं लेखन कार्य अने पछीथी प्रूफरिडिंग चालतुं हतुं ते समग्र समयगाळानो आ लेखक साक्षी छे. ८० वर्ष वटाव्या पछी पण्डितजीओ जे धगश अने त्वराथी काम उपाडीने पूरुं कर्यु तेमां आ कार्य करवानी तेमनी प्रबळ इच्छाए भाग भजव्यो छे. लगभग ओक आंखथी प्रुफ तपासता पण्डितजी नवजात शिशुने वहालथी जाळवती मातानी जेम साचवीने तेमांना झीणाझीणा अक्षरोने साव आंख नजीक लावीने निहाळता ते दृश्य आ लेखकनी सामे, आ लखती वखते उपसी आवे छे ! पण्डितजीनो जन्म माता ओतमबाईना मौखिक हवाला मुजब वि.सं. १९४६ना पोष वद अमासनी राते, (ई.स. गणीओ तो १८९०मां) वळा (आजना वल्लभीपुर)मां. नानपणमां ज पितानुं छत्र गुमाव्यु होई, माता ओतमबाई खूब ज मुश्केलीओ वेठीने तेमनो उछेर को हतो. मातानी मुश्केलीमा तरुणवयना बेचरदास मशालीदाळ थाळीमां लइ वेचीने अने धोकडामांथी ऊडी गयेला रु नां पमडां वीणी वीणीने तेमांथी दस-वीस पैसा मेळवीने माने मददरूप थता. बाळक बेचरदासे वळानी शाळामां छ गुजरातीनो अभ्यास पूरो को त्यां सुधीमां गाम वळा अने मोसाळना गाम सणोसरा, ओ बे गामनी बहार क्यांय गया न हता. तेओ १२-१३ वर्षनी उंमरे मांडळ गामनी धर्मविजयजी महाराजनी पाठशाळामां संस्कृत भणवा गया त्यां सुधी तेमणे रेलगाडी जोयेली न हती. आथी, त्यां सुधी गाडीमांना डब्बाओ विशेनो ख्याल तेमना मनमां घासतेलना डब्बाओनो आवतो ! पाठशाळामां ज्यारे 'चन्द्रमा' उच्चारण करवानुं आवे त्यां पण्डितजी 'संदरमा' उच्चारण वारंवार करता ते माटे तेमने 'घरभेगा करी देवानो' ठपको सांभळवो पडेलो. आगमोना वांचन अने समजणे बेचरदासमां जब्बर परिवर्तन आण्यु. रातना बे वागे उठीने छानाछाना आगमो-वांचतां, बेचरदास घणीवार रडी पडता. आगमोमांनां भगवान महावीरनां वचनोओ ओवो सद्भाव जन्माव्यो के तेना अध्ययन विना जीवन निरर्थक जेवू लागवा मांड्युं. तेमने अम पण जणावा Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ लाग्युं के श्रावकोमा आनी समज अपाय तो तेओना वर्तनमां पण शुद्धता आवे. आ विचारे बेचरदासना मन पर ओवो कबजो जमाव्यो के पोते भूखे मरीने पण आ आगमोना अनुवादो करवा ! परिणामे गुजरातने भगवान महावीरनां वचनो माणवानी भेट मळी. ___ आ पछीथी बेचरदासजी गूजरात विद्यापीठमां सन्मतितर्कनुं काम पण्डित सुखलालजी करी रह्या हता तेमनी साथे जोडाया. (आ गाळामां विद्यापीठना जीवनव्यवहारनी थोडी विगत पण्डितजी तथा अजवाळीबानी रुबरु मुलाकात द्वारा आ लेखके नोंधी छे). विद्यापीठमां आठेक वर्ष थया हशे त्यां दांडीकूच आवी. आ समयगाळामां पण्डितजी राष्ट्रीयताना रंगे रंगाया. हस्तलिखित 'नवजीवन' चलाव्यु. थोडा समयमां पकडातां 'विसापुर'नी जेलमां धकेलाया. त्यां नवेक महिना बाद छुट्या. ब्रिटीश हकुमत हेठळना प्रदेशमा प्रवेशवानी मनाई हती. क्यां जq ? आ पांचेक वर्षना गाळानुं स्मरण करतां, पण्डितजी गळगळा थई जता. खूब रझळपाट आ गाळाओ कराव्यो हतो. रझळपाट पछी अमदावाद पाछा आव्या. विद्यापीठ तो छोड्युं हतुं. हवे शुं करवू ? ओवामां मुम्बई युनिवर्सिटी, ठक्कर वसनजी माधवजी व्याख्यान माटेनुं निमन्त्रण मळता पण्डितजी जणावे छे तेम ईश्वरी मदद आवी मळी ! आ समयना पण्डितजीना उद्गारो भारे मर्मस्पर्शी छे. तेओ लखे छे, 'क्यां वळामां जीनमां पूमडां वीणतो हुं अने क्यां युनिवर्सिटीना हॉलमां गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति विषे व्याख्यान आपतो हुँ ? घणीवार ओम लागे छे के आ बे हुं ओक नथी, पण घणा ज जुदाजुदा छे. तेम छतांय ओ बने हुं मां हुं पोते सळंग परोवायेलो छु, अनुं भान थाय छे त्यारे मने आनन्द थाय छे, धन्यता लागे छे अने अेक प्रकारनो सन्तोष थाय छे.' (प्रबुद्धजीवन, १-१-५५, पृ. २०३). आ पछीथी अमदावादनी विविध शैक्षणिक संस्थाओमां काम कर्या बाद निवृत्त जीवनकाळमां तेओओ ८१ वर्षनी उंमरे देश्यशब्दसङ्ग्रह- कार्य उपाडीने, पूरे कर्यु हतुं. पण्डितजी ११-१०-८२ना रोज ९२ वर्षनी उंमरे स्वर्गवास पाम्या हता. आ सम्पादननी विशेषता : ___आ पूर्वे देशीशब्दसङ्ग्रहनी, बे मुम्बइथी प्रसिद्ध थयेली अने अक Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २०१० कोलकत्ताथी प्रकाशित ओम त्रण आवृत्तिओ बहार पडी चूकी छे. आमां कोलकतानी आवृत्तिमां उपयोगी पाठान्तरो लेवाया होवानुं जणाय छे, परन्तु मुम्बइनी बन्ने आवृत्तिओ तो आवो विचार कर्या विना ज पाठान्तरोथी भरपूर थयेली छे. आ सम्पादनमां उपयोगी पाठान्तरो ज लेवायां छे. आनी पुष्टिमां उदाहरण आपतां, पण्डितजी जणावे छे के आ त्रणे आवृत्तिमां गाथा ४९३ मां 'बालमयकाण्डम्' पाठ छपायो छे. आनो उदाहरणगाथाथी 'दडाने गूंथे छे' तेवो अर्थ बेसे छे. परन्तु 'काण्डम् 'नो दडो अर्थ क्यांये थतो होवानुं जाण्युं नथी. पछीथी झीणवटथी आ अंगे तपास चलावतां, मुम्बइनी पूनावाळी आवृत्तिमां ‘काण्डुकम्’ पाठ जोवामां आव्यो. आनुं समर्थन करतो 'कण्डुक’'पाठ पाटणवाळी आवृत्तिमां मळी आवतां, सम्पादके अहीं 'दडा'ना अर्थनो 'कन्दुक' पाठ स्वीकार्यो छे. सम्पादकनो आ उल्लेख पाछळ अटलो ज हेतु रहेलो छेके आ कार्य अत्यन्त कठिन अने धीरज मांगी लेतुं होवाथी आवां सम्पादनोमां झीणवट भरी चोकसाई अत्यन्त जरूरी बनी रहे छे. ९९ आ सम्पादननी बीजी केटलीक विशेषताओमां, गुजराती भाषामां अनुवाद अपायो छे ते पहेली विशेषता आ सम्पादनमां पहेली ज वार उदाहरणगाथाओ गुजरातीमां अनूदित थइने प्रसिद्ध थयेली छे. आनी बीजी विशेषता ओ छे के अहीं जे तुलनात्मक टिप्पणो अपायां छे ते पण पहेलवहेलां ज प्रकाशित थाय छे. आ उपरान्त ग्रन्थनी पाछळ सम्पादनमां व्युत्पत्तिनी नोंधो आपवामां आवी छे. आ नोंधोमां आपेला घणा शब्दो विविध कोशोमां नोंधायेला मळी आवे छे. आ जोतां देश्य शब्दोनो घणो मोटो भाग व्युत्पन्न शब्दो जेवो जणाय छे. सम्पादक पण्डितजीने लागे छे के विद्वानोओ आ अंगे विचार करवो घटे. आनी साथोसाथ अहीं उपयोगमां लीधेला ग्रन्थोनां नामो अने तेवां पुस्तकोना संकेतो आपवामां आव्यां छे. ग्रन्थना अभ्यासनी उपयोगिता : अहीं सङ्गृहित थयेला देशीशब्दो विविध भाषाओना जूना वपराशना शब्दोनी जाण करावशे, जेनाथी शब्दभंडोळमांना केटलाक शब्दोना अर्थ समजवामां मदद मळशे. मूळगाथाओ अने वृत्तिमां आवता केटलाक उल्लेखो केटलाक भौगोलिक Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ स्थानोने निश्चित करवामां मददरूप थई शके. आनुं उदाहरण आपतां पण्डितजी जणावे छे के गाथा २१०, ५४२ अने ७७२ वडे सातवाहनमां बीजां नामो अनुक्रमे कुंतल, पूस अने हाल होवानुं जाणवा मळे छे. सम्पादनमां आ प्रकारनां बीजां अनेक उदाहरणो अपायां छे. १०० आम, आवो अभ्यास सामाजिक क्षेत्रनी माहितीमां पण केटलो बधो उपयोगी नीवडी शके तेनां अनेक दृष्टान्तो पण्डितजीए आप्यां छे. आमांना केटलांक जोइओ : वहुमास नवी परणेली स्त्रीनो रतिक्रीडापरायण पति जे मासमां घरनी बहार न जाय ते महिनो. जेमां संतावानुं होय छे तेवी एक रमत. ओलुंकी उड्डियाहरण - ऊंचो कूदको मारीने छरीनी धार पर राखवामां आवेला फूलने पगनी आंगळियोथी जेमां उपाडी लेवामां आवे तेवुं ओक नृत्य. केटलाक रिवाजो गाथा १४५ थी स्त्रीना शरीरने सूतरना दोरा वडे मापीने ते दोराने दिशाओमां फेंकी देवामां आवे छे ओवो उल्लेख छे. कोइक स्थाने आवो कोइ आचार प्रचलित होवानो निर्देश सूचित थतो होय तेम सम्पादक माने छे. धम्मअ गाथा ४६२मां चण्डीदेवीने जेनुं बलिदान आपवामां आवे छे ते पुरुष सेवा अर्थमां आ शब्द वपरायो छे. हिंचिअ के हिंविअ - ओक पग ऊंचो करीने बाळक जे क्रियामां कूदे छे ते क्रिया. सम्पादक जणावे छे के वर्तमानमां आ क्रिया लंगडी नामे ओळखाय छे. गाथा ३२मांना आ शब्दथी महामहिनानी पूनममां दिवसे शेरडीने दातण करता होय तेम लोको चूसे छे तेवा रिवाजनुं सूचन मळे छे. आ रीते आ सङ्ग्रहमां अनेक आवा शब्दो मळे छे जे द्वारा उत्सवो, रिवाजो, सामाजिक प्रथाओ, विविध रमतो वगेरेनी जाणकारी प्राप्त थई शके. इक्षुकदन्तपवनक्षण Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर 2010 101 अहीं तो मात्र आ बाबत तरफ ध्यान दोरवा पुरतां आटलां दृष्टान्तो आप्यां छे. छेवटे, तेमणे रचेला मुख्य मुख्य ग्रन्थोना नामाभिधान साथेनो तेमने अंजलिरूप श्लोक छे (धूमकेतु, 1982, पृ. 166) तेनी 'बद्धं येन न केन केन विधिना मोहः कृतो दूरतः' आ छेल्ली पंक्ति नोंधीने, आ महामानवने अंजलिरूप आ लेख पूरो करुं छु. C/o. 1, B, कामधेनु एपार्टमेन्ट, ___ सुदामा शेरी, जामनगर-८