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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
इति रत्नावलिनामा देशीशब्दानां सङ्ग्रहः एषः ।
व्याकरणलेशशेषः रचितः श्रीहेमचन्द्रमुनिपतिना ॥
आ गाथा स्पष्टपणे जणावे छे तेम व्याकरणशेष आ देश्य शब्दोनो रयणावली नामे पण ओळखातो आ सङ्ग्रह श्री हेमचन्द्रमुनिपतिले रच्यो छे. आ गाथाथी जणाय छे के शब्दोना सङ्ग्रहकारे ग्रन्थनुं पूरुं नाम 'रत्नावलिदेशीशब्दसङ्ग्रह' राख्युं छे. आ सङ्ग्रहनो विशेष करीने 'देशीनाममाला' नाम स्वीकारीने अभ्यासो थाय छे तेमां, संस्कृतमां माला पदान्तवाळा अनेक प्रसिद्ध कोशो रचाया छे तेनी असर तळे आम थयुं होवा, कल्पी शकाय. सम्पादके अहीं सङ्ग्रहकारे उपर आपेला दीर्घनामने टुंकावीने 'देशीशब्दसङ्ग्रह' नाम आ सङ्ग्रह माटे राख्युं छे.
ग्रन्थनी मूळ गाथाओ ७८३ छे अने उदाहरणगाथाओ ६२२ छे. आना सम्पादनकार्यमा सम्पादके जे बे पोथीओनो उपयोग को छे तेमांनी ओक, पाटणनी पोथी वि.सं. १६६६ ना वर्षमां लखायेली छे अने बीजी पूनानी पोथी वि.सं. १६५८ना वर्षमां राजनगरमां लखायेली छे. कृतिना सङ्ग्रहकार :
___ उपर नोंधेली ७८३मी गाथामां कृतिना रचयिता 'श्रीहेमचन्द्रमुनिपति' छे तेम स्पष्ट उल्लेख छे. आ उल्लेखथी आ सङ्ग्रहना रचनार के कर्ता 'हेमचन्द्राचार्य' छे ते निर्विवाद छे. आम होवा छतां ग्रन्थना सम्पादक पण्डितजी आ सिवायरॉ, ग्रन्थ- बीजुं नाम होवानो निर्देश आपतुं प्रमाण रजू करीने ग्रन्थकर्ता अन्य कोई होवानो सम्भव ऊभो करे छे.
___आ अंगे पण्डितजी नोंधे छे (प्रस्तावना, पृ. ९) के सङ्ग्रहनी ७८३मी गाथामां 'रइओ सिरिहेमचन्द्रमुणिवइणा' पाठ छे ते मुनिपतिओ रचना करी छे तेम दर्शावे छे, परन्तु बीजी पूना वाळी हस्तप्रतमां आ माटे पाठ मळे छे ते 'सिरिहेमचंदमुणिवयणा'. वयणा शब्दथी मुनिना 'वचनथी' अवो अर्थ आपे छे. आथी अम अर्थ करवाने कारण मळे छे के हेमचन्द्रमुनिनी आज्ञाथी अन्य कोइअ आ ग्रन्थनी रचना करी होय ! पण्डितजी आ वातने पुष्ट करे तेवू प्रमाण पण आ ग्रन्थमाथी शोधीने रजू करे छे. आ माटे ग्रन्थनी ६१२मी