Book Title: Gyanarnava Prakaranam Gyanbindu Prakaranam Savivaranam
Author(s): Yashovijay Gani
Publisher: Gulabchandra Devchandra

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रकाशकीय ॥ १॥ /www.ketatirth.org प्रारंभ ऐंकार पद (सरस्वती बीजक ) थी थाय छे तेम आ ग्रंथमां देखातुं होवाथी आ ग्रन्थ तेओश्रीनो ज छे ते निःसंदेह छे. अर्णव-समुद्र जेम घणा तरंगोथी विभूषित होय के तेम आ ज्ञानार्णवमां पण ग्रंथकार भगवंते अनेक तरंगोनी रचना करी छे, जो के आज ज्ञानार्णव नामनो एक ग्रंथ दिगम्बरीय साहित्यमा शुभचंद्राचायें रचेलो विद्यमान छे अने ते मुद्रित पण छे, परंतु तेमां कलिकालसर्वज्ञ भगवंत श्रीहेम चंद्रसूरिजीनिर्मित योगशास्त्रना प्रकाशोनी जेम मुख्यतया योगस्वरूप विगेरेनुं निरूपण होवाथी तेने योगार्णव- योगप्रदीप-ध्यानशास्त्र विगेरे नामोथी ओळखाववामां आव्यो छे, ज्यारे आ श्री ज्ञानार्णव प्रकरणनुं ग्रन्थान्तर्गत अभिधेयने अनुसरतुं ज निःशंक यथार्थ नाम राखवामां आन्युं छे. प्रस्तुत ग्रन्थकारे एक ज्ञानबिन्दु नामनुं प्रकरण पण रच्युं छे, जे आ साथै संयुक्त छे तेमां सामान्यतः चार ज्ञानोनुं निरूपण करी मुख्यत्वे केवळ ज्ञान केवळदर्शनना विषयमां सम्मति गाथाओना अनुसारे अभेदपक्षनुं समर्थन कर्या बाद नयभेदथी विचारो आपतां शासनप्रभावक धुरंधर श्री सिद्धसेन दिवाकरजी, श्रीमल्लवादिजी, श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणजी ए त्रणेय प्रभावक आचार्य भगवंतोना विचारोनो समन्वय क्यों छे. आ ज्ञानार्णवमां पांचय ज्ञानोनो यथार्थ तस्वरूप केवळ अमृत प्रवाहज भरेलो छे. आ ज्ञानार्णव ग्रंथनुं अगाध गांभीर्य माहात्म्य यथार्थ वर्णवनुं ते विशाल अटवीनो पगथी चाली पार लेवा इच्छता पांगळा माणसनी जेम अमो पामरनी बुद्धिने अगोचर छे. आ ग्रंथनुं अगाध अर्थ गांभीर्य स्वरूप जाणी पोतेज स्वोपज्ञ विवरण रच्युं छे. परम खेदनो विषय तो एटलो ज के आ ग्रंथ वचमां वचमां तेमज अंतभागनां त्रुटितरूपे उपलब्ध थयो छे. साधे परम हर्ष स्थान ए के के हजु पण भव्यजीवोना परमभाग्योदये शासनस्तंभ समा पूर्वना महापुरुषोए रचेला जगदुपकारक शासन For Private And Personal Use Only Acharya Shal Kalassagarsun Gyanmandir निवेदनम् !! ॥ १ ॥

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