Book Title: Gurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Author(s): Hariprasad G Shastri
Publisher: Jawahar Pustakalaya Mathura

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Page 11
________________ प्रकरण : ५ आलोच्य युग के जैन गुर्जर कवियों की कविता में कला-पक्ष २५३-२८६ भाषा २५५ छन्द और संगीत विधान २६७ अलंकार - विधान २७५ प्रतीक - विधान ર૭e प्रकरण - निष्कर्ष २८५ (२) ( (३) प्रकरण : ६ आलोच्य युग के जैन गूर्जर कवियों की कविता में प्रयुक्त विविध काव्यरूप २८७-३१६ (१) (विषय तथा छन्द की दृष्टि से ) रास, चौपाई अथवा चतुष्पदी, बेलि, चौढालिया, गजल, छन्द, नीसाणी, कुण्डलियां, छप्पय, दोहा, सवैया, पिंगल आदि । २७६ ( राग और नृत्य की दृष्टि से ) विवाहलो, मंगल, प्रमाती, रागमाला, बथावा, गहूली आदि । २६८ (धर्म-उपदेश आदि की दृष्टि से ) पूजा, सलोक, कलश, वंदना, स्तुति, स्तवन, स्तोत्र, गीत, सज्झाय, विनती, पद आदि । २६६ ( संख्या की दृष्टि से ) अष्टक, बीसी, चौवीसी, बत्तीसी, छत्तीसी, वावनी, वहोत्तरी, गतक आदि । ३०१ (५) (पर्व, ऋतु, मास आदि की दृष्टि से ) फाग, धमाल, होरी, बारहमासा, चौमासा आदि । ३०४ ( कथा-प्रवन्ध की दृष्टि से ) प्रबन्ध, चरित्र, संवाद, आख्यान, कथा, वार्ता आदि । ३०८ (विविध विषयों की दृष्टि से ) प्रवहण-वाहण, दीपिका, चन्द्राउला, चूनड़ी, सूखड़ी, आंतरा, दुवावत, नाममाला, दोधक, जकड़ी, हियाली. ध्रुपद, कुलक आदि । ३१२ (७)

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