Book Title: Gunsthan Praveshika
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 18
________________ महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर गुणस्थान-प्रवेशिका २२. प्रश्न : बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के मोह-राग-द्वेषरूप परिणामों का निमित्त पाकर कार्माण वर्गणाओं का आत्मप्रदेशों के साथ होनेवाले विशिष्ट परस्पर एकक्षेत्रावगाहरूप संबंध को बंध कहते हैं। २३. प्रश्न : बंध के कितने भेद होते हैं ? उत्तर : बंध के चार भेद होते हैं ह्र १) प्रकृति बंध २) प्रदेश बंध ३) स्थिति बंध ४) अनुभाग बंध। २४. प्रश्न : प्रकृति बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रकृति अर्थात् स्वभाव जैसे ह्र नीम का स्वभाव कडुआ, गुड़ का स्वभाव मीठा होता है, उसीप्रकार कर्मों के अपने-अपने स्वभाव को प्रकृति बंध कहते हैं। कर्मरूप परिणमित होनेयोग्य पुद्गलों का ज्ञानावरणादिमूल प्रकृतिरूप तथा उसके भेद-उत्तरप्रकृतिरूप परिणमन होने का नाम प्रकृति बंध है। २५. प्रश्न : प्रदेश बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के साथ प्रति समय जितने पुद्गल परमाणु कर्मरूप परिणमन करते हैं, उनके प्रमाण अर्थात् संख्या को प्रदेश बंध कहते हैं। २६. प्रश्न : स्थिति बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञानावरणादि कर्मरूप परिणमित पुद्गल स्कंधों का आत्मा के साथ एकक्षेत्रावगाहस्थितिरूप कालावधि के बंधन को स्थिति बंध कहते हैं। २७. प्रश्न : अनुभाग बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञानावरणादि कर्मों के रस विशेष को अथवा फल प्रदान करने की शक्ति विशेष को अनुभाग बंध कहते हैं। २८. प्रश्न : सत्त्व अथवा सत्ता किसे कहते हैं ? उत्तर : अनेक समयों में बंधे हुए कर्मों का विवक्षित काल तक जीव के प्रदेशों के साथ अस्तित्व होने का नाम सत्त्व अथवा सत्ता है। २९. प्रश्न : उदय किसे कहते हैं ? उत्तर : कर्म की स्थिति पूरी होते ही कर्म के फल देने को उदय कहते हैं। ३०. प्रश्न : उदीरणा किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के परिणामों के निमित्त से कर्म की स्थिति पूरी हुए बिना ही कर्म के उदय में आकर फल देने को उदीरणा कहते हैं। . जीव के परिणामों के निमित्त से कर्म के उदयावली के बाहर के निषेकों का उदयावली के निषेकों में आ मिलना उदीरणा है। • जिस कर्म का उदयकाल नहीं था, उस कर्म के उदयकाल में आने को उदीरणा कहते हैं। • अकालपाक को उदीरणा कहते हैं। ३१. प्रश्न : उत्कर्षण किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के परिणामों का निमित्त पाकर कर्म के स्थिति-अनुभाग के बढ़ने को उत्कर्षण कहते हैं। ३२. प्रश्न : अपकर्षण किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के परिणामों का निमित्त पाकर कर्म के स्थिति-अनुभाग के घटने को अपकर्षण कहते हैं। ३३. प्रश्न : संक्रमण किसे कहते हैं ? उत्तर : विवक्षित कर्म प्रकृतियों के परमाणुओं का सजातीय अन्य प्रकृतिरूप परिणमन होने को संक्रमण कहते हैं। जैसे ह्र विशुद्ध परिणामों के निमित्त से पूर्वबद्ध असाता वेदनीय प्रकृति के परमाणुओं का साता वेदनीयरूप तथा संक्लेश परिणामों से साता वेदनीय के परमाणुओं का असाता वेदनीयरूप परिणमन होना। . इसमें भी इतनी विशेषता है कि १. मूल प्रकृतियों में परस्पर संक्रमण नहीं होता। २. चारों आयुओं में आपस में संक्रमण नहीं होता। ३. मोहनीय का उत्तरभेद-दर्शनमोहनीय का चारित्रमोहनीय में संक्रमण नहीं होता। ४. दर्शनमोहनीय के भेदों में एवं चारित्रमोहनीयकर्म के भेदों में परस्पर संक्रमण होता है।

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