Book Title: Gunsthan Praveshika
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ ४४ गुणस्थान- प्रवेशिका ६८. प्रश्न : स्पर्धक किसे कहते हैं ? उत्तर : एक-एक अविभागी प्रतिच्छेद से अधिक वर्गों के समूहरूप वर्गणाएँ जहाँ तक उपलब्ध हों, उन वर्गणाओं के समूह को स्पर्धक कहते हैं। • अनेक प्रकार की अनुभागशक्ति से युक्त कार्माणवर्गणाओं को अर्थात् कर्मसमूह को स्पर्धक कहते हैं। सर्वघाति प्रकृति में संपूर्ण स्पर्धक सर्वघाति ही होते हैं, उसमें देशघाति स्पर्धक नियम से नहीं होते। इस कारण से सर्वघाति प्रकृति में कर्म का क्षयोपशम घटित नहीं होता। उदाहरणार्थ ह्न केवलज्ञानावरण कर्म । देशघाति प्रकृति में स्पर्धक, सर्वघाति तथा देशघाति दोनों प्रकार के होते हैं। इस कारण से देशघाति कर्मों के उदय काल में कर्म का क्षयोपशम घटित होता है और जीव के ज्ञानादि अनुजीवी गुण की पर्याय प्रगट होती है। उदाहरणार्थ ह्न मतिज्ञानावरणादि देशघाति कर्म । · ६९. प्रश्न : पूर्वस्पर्धक किसे कहते हैं ? उत्तर : अनिवृत्तिकरण नामक नौवें गुणस्थान के पूर्व पाये जानेवाले स्पर्धकों को पूर्वस्पर्धक कहते हैं। ७०. प्रश्न : अपूर्वस्पर्धक किसे कहते हैं ? उत्तर : अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के परिणामों के निमित्त से अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को अपूर्वस्पर्धक कहते हैं। ७१. प्रश्न : कृष्टि (अनुकृष्टि) किसे कहते हैं ? उत्तर : कर्मों के अनुभाग का क्रम से हीन-हीन होने को कृष्टि अथवा अनुकृष्टि कहते हैं । अर्थात् अनुभाग का कृष होना - घटना, सो कृष्टि है । यह कृष्टि अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के परिणामों के निमित्त से होती है। ७२. प्रश्न: बादरकृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर : अपूर्वस्पर्धक से भी विशेष अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को बादरकृष्टि कहते हैं। अर्थात् संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ का अनुभाग घटना स्थूल खंड होना, सो बादरकृष्टि है। महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ७३. प्रश्न : सूक्ष्मकृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर : बादरकृष्टि से भी विशेष अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को सूक्ष्मकृष्टि कहते हैं। ७४. प्रश्न: अनुकृष्टिरचना किसे कहते हैं ? उत्तर : ऊपर-नीचे के परिणामों में अनुकर्षण अर्थात् क्रम से हीनहीन होने को दिखानेवाली रचना विशेष को अनुकृष्टि रचना कहते हैं। ७५. प्रश्न : मार्गणा किसे कहते हैं और उसके कितने भेद हैं? उत्तर : किन्हीं विशिष्ट पर्यायों अर्थात् भावों के आधार पर जीवों के अन्वेषण अर्थात् खोज को मार्गणा कहते हैं। उसके चौदह भेद हैं ह्र गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार । • मार्गणा प्रकरण में विवक्षित भाव का सद्भाव - असद्भाव दोनों अपेक्षित होते हैं। ७६. प्रश्न : सम्यक्त्वमार्गणा किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं? उत्तर : सम्यग्दर्शन / श्रद्धागुण की मुख्यता से जीवों के अन्वेषण को सम्यक्त्व - मार्गणा कहते हैं। उसके छह भेद हैं। मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, औपशमिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकसम्यक्त्व और क्षायिकसम्यक्त्व। (प्रथम तीन भेदों का स्वरूप तत्संबंधी गुणस्थानरूप ही है; अतः गुणस्थान अध्याय में देखिये ।) " सम्यक्त्व के तो भेद तीन ही हैं। तथा सम्यक्त्व के अभावरूप मिथ्यात्व है। दोनों का मिश्रभाव सो मिश्र हैं। सम्यक्त्व का घातक भाव सो सासादन है। इसप्रकार सम्यक्त्वमार्गणा से जीव का विचार करने पर छह भेद कहे हैं।" ह्न मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ : ३३७ ७७. प्रश्न: औपशमिकसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : निज शुद्धात्म सन्मुख पुरुषार्थी जीव के पांच, छह या सात प्रकृतियों (दर्शनमोहनीय तीन, अनंतानुबंधी चतुष्क) के उपशम के समय में

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