Book Title: Gunsthan Praveshika
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 21
________________ ४० गुणस्थान-प्रवेशिका परिणाम में निमित्त होनेवाले कर्म को मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म कहते हैं। ५२. प्रश्न : सम्यग्मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रक्षालित क्षीणाक्षीण मदशक्तिवाले कोदों के समान मिश्र श्रद्धान में निमित्त होनेवाले कर्म को सम्यग्मिथ्यात्व अर्थात् मिश्र दर्शनमोहनीय कर्म कहते हैं। ५३. प्रश्न : सम्यक्प्रकृति दर्शनमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में चल, मल, अगाढ़ दोषों के उत्पन्न होने में निमित्त होनेवाले कर्म को सम्यक्प्रकृति दर्शनमोहनीय कर्म कहते हैं। ५४. प्रश्न : चारित्रमोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक राग-द्वेष की निवृत्तिमय आत्मस्थिरतारूप चारित्र की अप्रगटता में निमित्त होनेवाले कर्म को चारित्रमोहनीय कर्म कहते हैं। ५५. प्रश्न : चारित्रमोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो भेद हैं ह्न कषाय और नोकषाय । कषाय के सोलह भेद हैं ह्र अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ; अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ; प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ; संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ । नोकषाय के नौ भेद हैं ह्र हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद । (ये ९ नोकषायें अनंतानुबंधी आदि चार भेदरूप भी होती हैं अर्थात् इनका उदय उन क्रोधादि के साथ यथासम्भव होता है । खुलासा के लिए भावदीपिका पृष्ठ ४९ से ७० कषायभाव अंतराधिकार पढ़ें।) ५६. प्रश्न : कषाय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : अमर्याद/विस्तृत संसाररूपी कर्मक्षेत्र को जोतकर आत्मस्वभाव से विपरीत, लौकिक सुख और दुःख आदि अनेक प्रकार के धान्य के उत्पादक, जीव के विकारी परिणामों को कषाय कहते हैं। • आत्मा को दु:खी करनेवाले, आकुलित करनेवाले, कसनेवाले महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर __४१ परिणामों को कषाय कहते हैं। इन ही परिणामों के समय पूर्वबद्ध कर्मों का जो उदय निमित्त होता है; उसे ही कषाय कर्म कहते हैं। . इन कषाय परिणामों के समय स्वयं कर्मरूप परिणमित नवीन कार्माणवर्गणाओं को कषाय कर्म कहते हैं। ५७. प्रश्न : नोकषाय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : नो = ईषत्, किंचित्, अल्प । किंचित् कषाय कर्म को नोकषाय कर्म कहते हैं। ५८. प्रश्न : अनंतानुबंधी कषाय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जो कर्म, आत्मा के स्वरूपाचरणचारित्र परिणाम को घातते हैं; उन्हें अनन्तानुबंधी कषाय कर्म कहते हैं। आत्मा अनंत + अनुबंधी = अनंतानुबंधी। अनंत = संसार अर्थात् मिथ्यात्व परिणाम । अनु = साथ-साथ । बंधी = बंधनेवाली। • मिथ्यात्व परिणाम के साथ-साथ बंधनेवाली कषाय को अनंतानुबंधी कषाय कर्म कहते हैं। जो कषाय अनंत द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भावों से अनुबंध करे सम्बन्ध जोड़े, उसे अनन्तानुबन्धी कषाय कहते हैं। जैसे ह्र अन्याय, अनीति व अविवेकपूर्वक राज्यविरुद्ध, लोकविरुद्ध व धर्मविरुद्ध अमर्यादितरूप से होनेवाले जीव के कषाय भाव। • यह कषाय सम्यक्त्व और चारित्र दोनों के घात में निमित्त होती है। ५९. प्रश्न : अप्रत्याख्यानावरण कषाय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : अप्रत्याख्यान + आवरण = अप्रत्याख्यानावरण। अ = किंचित्, ईषत् । प्रत्याख्यान - त्याग अर्थात् किंचित् त्याग अर्थात् देशचारित्र, संयमासंयम । द्रव्यव्रत अर्थात् बुद्धिपूर्वक शुभोपयोगरूप बाह्य व्रतों का ग्रहण । भावव्रत/चारित्र अर्थात् दो कषाय चौकड़ी के अभाव से व्यक्त होनेवाली वीतरागता । जैसे ह्नन्याय, नीति व विवेकपूर्वक राज्यादि के अविरुद्ध मर्यादापूर्वक होनेवाले जीव के अकषायभाव ।

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