Book Title: Gunsthan Praveshika
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 49
________________ पात्रता __'जो जीव निश्चय की उपासना करने को कटिबद्ध हुआ है, उसकी १.परिणति में पहले की अपेक्षा वैराग्य की अत्यन्त वृद्धि होती जाती है। 2. उसे दोषों का भय होता है। 3. अकषायस्वभाव को साधने में तत्पर हुआ, वहाँ 4. उसके कषाय शांत होने लगते हैं / 5. उसकी कोई प्रवृत्ति या आचरण ऐसे नहीं होते कि रागादि का पोषण करें। पहले रागादि की मन्दता थी उसके बदले अब रागादि की तीव्रता हो तो वह स्वभाव की साधना के समीप आया है ऐसा कैसे कहा जाये? 6. अकेला ज्ञान-ज्ञान करता रहे किन्तु ज्ञान के साथ रागकी मन्दता होनी चाहिये, 7. धर्मात्मा के प्रति विनय-बहुमान-भक्ति-नम्रता-कोमलता होना चाहिये, 8. अन्य साधर्मियों के प्रति अन्तर में वात्सल्य होना चाहिये, वैराग्य होना चाहिये, 9. शास्त्राभ्यास आदि का प्रयत्न होना चाहिये...इस प्रकार चारों ओर के सभी पक्षों से पात्रता लाना चाहिये; तभी यथार्थ परिणमता है। वास्तव में, साक्षात् समागम की बलिहारी है; सत्संग में तथा संत-धर्मात्मा की छत्रछाया में रहकर उनके पवित्र जीवन को दृष्टि समक्ष ध्येयरूप रखकर, चारों ओर से सर्वप्रकार उद्यम करके अपनी पात्रता को पुष्ट करना चाहिये। -वचनामृत सार, पृष्ठ-११-१२ प्रस्तुत संस्करण की कीमत कम करनेवाले दातारों की सूची 1. श्रीमती शारदा जैन, भिण्ड 1,100.00 2. श्री मोतीलालजी शाह, मुम्बई 1,001.00 3. श्री चुन्नीलालजी जैन, इटावा 1,000.00 4. श्रीमती पुष्पलता जैन (जीजीबाई) 501.00 ध.प. अजितकुमारजी जैन, छिन्दवाड़ा 5. स्व. श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज 501.00 6. श्री भगवानदासजी जैन, सीकर 500.00 कुल राशि : 4,603.00

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