Book Title: Gunsthan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ २ सासादन सासादन गुणस्थान का वर्णन करने की प्रतिज्ञा (दोहा) प्रथम गुनथान यह, मिथ्यामत अभिधान | करूँ अलप' वरनन अबै, सासादन गुनथान ॥ १९ ॥ अर्थ – यह पहले मिथ्यात्व गुणस्थान का स्वरूप कहा । अब संक्षेप से सासादन गुणस्थान का कथन करते हैं ।। १९ ।। सासादन गुणस्थान का स्वरूप (सवैया इकतीसा ) जैसैं कोऊ छुधित पुरुष खाइ खीर खांड, वौन करे पीछे कौ लगार स्वाद पावै है । तैसैं चढ़ि चौथे पाँच कै छट्टे गुनथान, काहू उपसमी कौ कषाय उदै आवै है | ताही समै तहाँ सौं गिरै प्रधान दसा त्यागी, मिथ्यात अवस्था को अधोमुख है धावै है । एक सवा छ आवली प्रवांन रहै, सोई सासादन गुनथानक कहावै है ||२०|| शब्दार्थ :- खाँड = शक्कर । वौन = वमन । प्रधान = ऊँचा । अधोमुख = नीचे । आवली असंख्यात समयों की एक आवली होती है। अर्थ :- जिसप्रकार कोई भूखा मनुष्य शक्कर मिली हुई खीर खावे और वमन होने के बाद उसका किंचित् मात्र स्वाद लेता रहे; उसीप्रकार चौथे, पाँचवें, छठवें गुणस्थान तक चढ़े हुए किसी उपशमी सम्यक्त्वी को कषाय का उदय होता है तो उसी समय वहाँ से मिथ्यात्व में गिरता है । उस गिरती हुई दशा में एक समय और अधिक से अधिक छह आवली काल तक जो सम्यक्त्व का किंचित् स्वाद (अव्यक्त मिथ्यात्व का) मिलता है, वह सासादन गुणस्थान है । विशेष :- यहाँ अनन्तानुबंधी कषाय चौकड़ी में से किसी एक कषाय का उदय रहता है ।। २० । ... १. "अलपरूप अब वरणवौ" ऐसा भी पाठ है। (7) मिश्र तीसरा गुणस्थान कहने की प्रतिज्ञा (दोहा) सासादन गुनथान यह, भयौ समापत बीय । मिश्रनाम गुनथान अब, वरनन करूँ तृतीय ॥ २१ ॥ शब्दार्थ - बीय ( बीजो' ) = दूसरा । अर्थ यह दूसरे सासादन गुणस्थान का स्वरूप समाप्त हुआ। अब तीसरे मिश्र गुणस्थान का वर्णन करते हैं ।। २१ ।। तृतीय गुणस्थान का स्वरूप (सवैया इकतीसा) उपसमी समकिती कै तौ सादि मिथ्यामती, दुनिक मिश्रित मिथ्यात आई है है । अनंतानुबंध चौकरी कौ उदै नाहि जामैं, मिथ्यात समै प्रकृति मिथ्यात न रहै है ।। जहाँ सहन सत्यासत्यरूप समकाल, ग्यानभाव मिथ्याभाव मिश्र धारा बहै है । याकी थिति अंतर मुहूरत उभयरूप, ऐसौ मिश्र गुनथान आचारज कहे है || २२ || अर्थ :- आचार्य कहते हैं कि उपशम सम्यग्दृष्टि अथवा सादि मिथ्यादृष्टि जीव को यदि मिश्र मिथ्यात्व नामक कर्मप्रकृति का उदय हो पड़े और अनन्तानुबंधी की चौकड़ी तथा मिथ्यात्व मोहनीय और सम्यक्त्व मोहनीय इन छह प्रकृतियों का उदय न हो, वहाँ एकसाथ सत्यासत्य श्रद्धानरूप ज्ञान और मिथ्यात्वमिश्रित भाव रहते हैं, वह मिश्र गुणस्थान है। इसका काल अंतमुहूर्त है। भावार्थ :- यहाँ गुड़ मिश्रित दही के स्वाद के समान सत्यासत्य मिश्रित भाव रहते हैं ।। २२ ।। १. यह शब्द गुजराती भाषा का है। ...

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