Book Title: Gunsthan Author(s): Yashpal Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 9
________________ अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान समयसारनाटक-गर्भित गुणस्थान (३) सम्यक्त्व के चिह्न (दोहा) आपा परिचै निज विषै, उपजै नहिं संदेह। सहज प्रपंच रहित दसा, समकित लच्छन एह ।।२९।। अर्थ :- अपने में ही आत्मस्वरूप का परिचय पाता है, कभी सन्देह नहीं उपजता और छल-कपट रहित वैराग्यभाव रहता है, यही सम्यग्दर्शन का चिह्न है।।२९।। (४) सम्यग्दर्शन के आठ गुण (दोहा) करुना वच्छल सुजनता, आतम निंदा पाठ। समता भगति विरागता, धरमराग गुन आठ ||३०|| अर्थ :- करुणा, मैत्री, सज्जनता, स्वलघुता, समता, श्रद्धा, उदासीनता और धर्मानुराग - ये सम्यक्त्व के आठ गुण हैं ।।३० ।। (५) सम्यक्त्व के पाँच भूषण (दोहा) चित्त प्रभावना भावयुत, हेय उपादै वानि । धीरज हरख प्रवीनता, भूषन पंच बखानि ||३१ ।। अर्थ :- १. जैनधर्म की प्रभावना करने का अभिप्राय, २. हेयउपादेय का विवेक, ३. धीरज, ४. सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का हर्ष और ५. तत्त्व-विचार में चतुराई - ये पाँच सम्यग्दर्शन के भूषण हैं ।।३१ ।। (६) सम्यग्दर्शन, पच्चीस दोष वर्जित होता है (दोहा) अष्ट महामद अष्ट मल, षट आयतन विशेष । तीन मूढ़ता संजुगत, दोष पचीसौं एष ||३२।। अर्थ :- आठ मद, आठ मल, छह अनायतन और तीन मूढ़ता - ये सब मिलाकर पच्चीस दोष हैं ।।३२।।। आठ महामद के नाम (दोहा) जाति लाभ कुल रूप तप, बल विद्या अधिकार। इनको गर्व जु कीजिये, यह मद अष्ट प्रकार||३३|| अर्थ :- जाति, धन, कुल, रूप, तप, बल, विद्या और अधिकार - इनका गर्व करना, यह आठ प्रकार का महामद है ।।३३ ।। आठ मलों के नाम (चौपाई) आसंका अस्थिरता वांछा। ममता द्रिष्टि दसा दुरगंछा ।। वच्छल रहित दोष पर भावै। चित्त प्रभावना मांहि न राखै||३४|| अर्थ :- १. जिन-वचन में सन्देह, २. आत्मस्वरूप से चिगना, ३. विषयों की अभिलाषा, ४. शरीरादि से ममत्व, ५. अशुचि में ग्लानि, ६. सहधर्मियों से द्वेष, ७. दूसरों की निंदा, ८. ज्ञान की वृद्धि आदि धर्मप्रभावनाओं में प्रमाद - ये आठ मल सम्यग्दर्शन को दूषित करते हैं ।।३४ ।। छह अनायतन (दोहा) कुगुरु कुदेव कुधर्म धर, कुगुरु कुदेव कुधर्म। इनकी करै सराहना, यह षडायतन कर्म ||३५ ।। अर्थ :- कुगुरु, कुदेव, कुधर्म के उपासकों और कुगुरु, कुदेव, कुधर्म की प्रशंसा करना - ये छह अनायतन हैं।।३५ ।। तीन मूढ़ता के नाम और पच्चीस दोषों का जोड़ (दोहा) देवमूढ़ गुरुमूढ़ता, धर्ममूढ़ता पोष। आठ आठ षट तीन मिलि, ए पचीस सब दोष ||३६ ।। अर्थ :- देवमूढ़ता अर्थात् सच्चे देव का स्वरूप नहीं जानना, गुरुमूढ़ता अर्थात् निर्ग्रन्थ मुनि का स्वरूप नहीं समझना और धर्ममूढ़ता अर्थात् जिनभाषित धर्म का स्वरूप नहीं समझना ये तीन मूढ़ता हैं। आठ मद, आठ मल, छह अनायतन तथा तीन मूढ़ता सब मिलाकर पच्चीष दोष हुए।।३६ ।। (७) पाँच कारणों से सम्यक्त्व का विनाश होता है (दोहा) ग्यान गर्व मति मंदता, निठुर वचन उदगार| रुद्रभाव आलस दसा, नास पंच परकार ||३७|| अर्थ :- ज्ञान का अभिमान, बुद्धि की हीनता, निर्दय वचनों का भाषण, क्रोध परिणाम और प्रमाद - ये पाँच सम्यक्त्व के घातक हैं।।३७ ।। १. ग्लानि (9)Page Navigation
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