Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 6
________________ ४ सोसायटी के पेइन ( सरक्षक ) बने । सन १९५६ में अर्थों को भी कार्य संचालन का अनुमान हो एतर्थ आप निच हुए, किन्तु अव समय तक सोसायटी के प्रत्येक कार्य के लिये आप सलाह देते रहे और वह समान का गौरव था कि आप जैसे कुशल एव विचक्षण सलाहकार मिले | दानके प्रवाह को शुभ मार्गमै नहाने का आप का प्रयास अत्यंत अनुकरणीय रहा । और मद्रास के जैन समाजने वैदकीय राहत क्षेत्रमें "जैन मेडिकल रिलीफ सोसायटी " स्थापित की - जिसके तचापमानमे कई डीसपेंसरिया और एक प्रसूतिगृह चल रहा है । आप उसकी कार्य कारिणी के पदाधिकारी व सदस्य रहे । इतनाही नही आपने अपने व्यापार क्षेत्रको नहीं भूला ओर सैदापेट (भूदान) शुद्ध आयुर्वेदिक औषधलय - जिनेश्वर औषधालय खोला जिसके साथ भागे जा कर अपनी पत्नी के नामपर राममुरजनाई गेलडा प्रभूतिगृह भी खोला । एतदर्थ आपने अपने द्वितीय पुत्र स्व. नेमीचदजी की इच्छा के अनुसार अलग ट्रस्ट बना दिया है । आपने अपनी जन्मभूमि कुचेरा के लिये भी कुछ करने के विचार से वहा पर भी छात्रालय शुरू १९४२ मे करवाया और उसके मारम्भकाल से आपकी ओर से २५० मासिक सहायता उसे दी जा रही है जो अन भी चालू है । तदुपरात ताराचंद गेलडा टस्ट भी आपने कायम किया जिससे कई उदीय मान जैन समाज के विद्यार्थिओं की आशाओ को प्रोत्साहन दिया गया और दिया जा रहा है । उनके अदम्य उत्साह और जोश के साथ उनके दृढ मनोबल का परिचय न दिया जावे तो उनका व्यक्तित्व अधूरा रहेगा । वे अपने आप आगे वढने वाले थे । बहुत ही छोटी उम्र मे उन्हों ने व्यापार किया और ताराचंद गेलडा एन्ड सन्स, टीची ज्वेलरीज एव महेन्द्र स्टोर्स आदि व्यापारिक फर्म चले | सामान्य पूजीसे लेकर वे लाखोपति वने । सामान्य शिक्षा ज्ञान के बाद भी चार भाषा की जानकारी और प्रपल व्यापारिक ज्ञान आपकी विशेषता थी । आजीवन खादीनत, हाथवटी का पीसा हुआ धान और गायका दूध-घी कठिन व्रत वे आजीवन निभाते रहे। समान सुधारणा भी आपने कई मकार से की।

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