Book Title: Girnar Geetganga
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirthvikas Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 316
________________ २७ दृष्टिदायक गिरि २८ २९ स्फटीक जिम छे उजळो, निरंजन निराकार; शुद्धतम इण गिरि करे; दीसे अंजन आकार. विश्रामगिरि इण क्षेत्रे दान तप करे, क्रोड गणुं फळ पाम; अनंत ऋषि निर्मलपणुं, लहेशो गिरि विश्राम. ३१ पंचमगिरि | ३२ ३३ | ३४ मिथ्यादृष्टि भमता भवे, पामे गिरि शरण; सुदृष्टि लहे पंथें रही, दृष्टिदायक चरण. इन्द्रगिरि पडिमा भरावी सुरवरे, पूजा करे त्रिकाळ; चैत्यद्वारे रक्षा करे, इन्द्र थई रखेवाळ. निरंजनगिरि | ३५ स्पर्शो पंचम शिखरे, शिवगामी नेमि चरण; वरदत्त गणधर पूजो, पामो चरण शरण. भवच्छेदकगिरि भावनिर्वेद करी मुनिवरो, अनशन तपे तपंत; भवच्छेदकगिरि वंदता, अजरामर पद लहंत. आश्रयगिरि द्रव्यभाव शत्रुहणे, आपे मन वांछित; गिरिवरो आश्रय लहे, विश्व बने आश्रित. स्वर्गगिरि देवो वास करे जिहां, करवा जनम पवित्र; जाणे स्वर्ग वस्युतिहा, तिणे स्वर्गगिरि सिद्ध. समत्वगिरि समत्वगुण विलसी रह्यो, महागिरि कणे कण; स्मरण दर्शन स्पर्शने, दीये अनुभव मण. 306

Loading...

Page Navigation
1 ... 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334