Book Title: Girnar Geetganga
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirthvikas Samiti

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Page 320
________________ ६४ उज्वलगिरि . इण गिरिनी उज्वलप्रभा, प्रसरे चिंहु दिशे ज्यांय; तिहा थकी तिमिर सहु, झटपट नासे त्यांय. आनंदगिरि आनंदना जिंहा समुह छे, अनंत जिननां जेह; तेह फरसी भवि लहे, रहेना फलेशनी रेह. तीर्थोत्तमगिरि ओ तीरथने भेटतां, सर्व तीरथ फललाध; ते तीर्थोत्तम प्रणमतां, सुख मले अव्याबाध. महेश्वरगिरि आणा महेश्वरगिरि तणी, त्रण लोके वर्ताय; अनंत कल्याणकनी जिंहा, आर्हन्त्य शक्ति समाय. ६८ · रम्यगिरि रम्यता ओ गिरि तणी, देखी मोर्खा मन; देवो अने विद्याधरो, आवे दोडी प्रसन्न. बोधिदायगिरि सदा काळ जे वरसतो, गिरि प्रभाव अमंद; बोधि बीज वपनकरे, बोधिदाय निर्मद. महोद्योतगिरि नेमीश्वरने गिरि श्यामलो, मन मोहे दिन रात; महोद्योत भीत करे, गुण पेखी सुख शात. अनुत्तरगिरि अरिहंत ध्यान परमाणुने, ग्रहे अर्हम् पद योग; साधे जे भवि ते लहे, अनुत्तर सुखनो योग. |७२ प्रशमगिरि प्रशमगुण जिंहा उपजे, फरसता जीवने ज्यां; तिणे कारण गिरि स्पर्शथी सुख पामो भवि त्यां. ६९ बाग ३११

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