Book Title: Girnar Geetganga
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirthvikas Samiti

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Page 324
________________ - - १०१ वीतरागगिरि कर्म रेणु दूरे करे, रैवत भक्ति समीर; वीतरागगिरि भणे, मुक्त बनी रहे स्थिर. १०२ चिंतामणीगिरि भाव चिंतामणि गिरि दिये, गुणरत्नो क्रोडा क्रोड; ईच्छित सर्व शिघ्र फळे, भेटवा मन धरे दोड. ||१०३ अतुलगिरि अनंत कल्याणको थकी, मेरु सम गिरि अतुल; अन्य गिरि तुलना नहीं, भाखे ऋषभ अमूल. १०४ महावैद्यगिरि भव रोग पीडतो मने, जन्मजरा मृत्य दुःख; गुण योगे रोग वारजो, महावैद्यगिरि दीपे सुख. १०५ पावनगिरि । . त्रस स्थावर गिरि खोळे, कर्म मळथी अपवित्र; "मा" बाळने पुनित करे, तिम पावनगिरि करे हित. १०६ अचळगिरि विकल्याणक परमाणुओ, काळ असंख्य अविचळ; रत्नत्रयी अविचळदीये, अचळगिरि परिबळ. |१०७ लब्धिगिरि अनंत लब्धि इहां उपनी, गणधर मुनि महंत; आत्म लब्धिगिरि नमो, भावे भजो भगवंत. |१०८ सौभाग्यगिरि अकसो आठ शिखर महीं, सौभाग्यशाळी गिरि शंग; विकल्याणक इण गिरि, रहे प्रतिकाळ उत्तंग. गुणकेटला गिरि तणा, गाइ शकुं मति मंद; बृहस्पति न गणी शके, गुणवंतगिरि अमंद. श्री गिरनारजी महातीर्थना शास्त्राधारे छ आराना छ नामो जोवामां आवे छे, परंतु तीर्थभक्ति माटे तेना विविध गुणानुसार आ १०८ नामो तथा दुहानी रचना करवामां आवेल छे. ३१५

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