Book Title: Girnar Geetganga
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirthvikas Samiti

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Page 330
________________ परमात्मा भक्तिना अंते संकल्प हे परमात्मा... हे वीतरागदेव... हे देवाधिदेव... मारा जीवे अनंता भवमां करेला दुष्कृत्यो तेमज चालु भवमां करेला | दुष्कृत्योनी निंदा कर छं. भविष्यमां दुष्कृत्य माराथी न थाय तेवी आपने प्रार्थना करु छु. हे परमात्मा ! मारा जीवे अनंता भवमां करेला सुकृत्यो तेमज चालु भवमां करेला सुकृत्योनी अनुमोदना कर छं. भविष्यमां सुकृत्य करवानुं चालु रहे तेवी आपने प्रार्थना कर छु. हे परमात्मा...! सुकृत्य करनार व्यक्तिओमां अग्रगण्य श्री अरिहंतदेव, सिद्ध भगवंतो, | आचार्य भगवंतो, उपाध्याय भगवंतो, साधु भगवंतो, महाश्रावक एवा देशविरतिधर सम्यग्द्दष्टि आत्माओ, सम्यग्द्दष्टि देवो तथा मनुष्योना त्रणे काळना सुकृत्योनी आपनी समक्ष अनुमोदना कर छु. हे परमात्मा...! मारे कोइनीय साथे वैर नथी, कोई मारी साथे वैर राखे नहि. दरेक जीवोने हुं भावपूर्वक खमावुं छं. दरेक जीवो मनें भावपूर्वक खमावे. हे परमात्मा ! देवोनी पासे ज वैक्रिय लब्धि होय छे तेवी लब्धि मने आपो जेना कारणे भूतकाळमां जे कोई तीर्थंकरो थई गया, भविष्यकाळमां जे कोई तीर्थंकरो थवांना अने वर्तमानकाळमां जे कोई तीर्थंकरो विचरी रह्या होय ते दरेक तीर्थंकरोमां एक-एक तीर्थंकरना अनंता अनंत जिनालयो बनावं. तेमां अनंती - अनंत प्रतिमाओ भरावं. दरेक प्रतिमा समक्ष मार एक-एक स्वरुप मूकी अष्टप्रकारी पूजा तेमज स्नात्र पूजा वगेरे उत्कृष्ट कोटीनी भक्ति भावना करूं. तेमज वर्तमानकाळमां त्रणे लोकमां ज्यां ज्यां जिन प्रतिमा होय ते दरेक ૩૨૧

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