Book Title: Girnar Geetganga
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirthvikas Samiti

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Page 314
________________ योगेन्द्रगिरि मन वच काया योगने, जीत्या जे गिरि माही; तिण कारण योगी तणो, इन्द्र कहायो ज्यांही. सनातनगिरि गिरि तणा गुणने कहे, तीर्थंकर भगवंत; सनातनगिरि मानथी, शिव लहे जीव अनंत. सुरभिगिरि दुर्गंधा नारी इणगिरि, गजपद कुंडे स्नान; बनी सुगंधी देहडी सुरभिगिरिने प्रणाम. उदयगिरि उदय लहे शुभ कर्मनो, अशुभनो थाये जिहां छेद; ओह गिरिना ध्यानथी, अंते लहे अवेद. १२ । तापसगिरि तापस पण शिव सुख लहे, अहवो जेहनो प्रभाव; अष्ट कर्मनो क्षय करी, पामे आत्म स्वभाव. आलंबनगिरि आलंबन आपी रह्यो, सिद्धिसदन सोपान; जे जे जीवडा तेह भजे, झट पामे शिवस्थान. १४ परमगिरि गिरिवरोमां परमता, पामी जेह सौभाग्य; आनंद आपे सहु जीवने, दूर करी दुर्भाग्य. श्रीगिरि . श्री गिरि छे अक अहवो प्रिय वस्तुमां अजोड; भविक जीव झंखे घj, वरवा शिववधू कोड. . . सप्तशिखरगिरि · सातराज पहोंचाडवा, जे धरे सप्त शिखर; स्वगुण महेल प्रवेशवा, जे करे मोटुं विवर. - - १५ 304

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