Book Title: Ghantamantrakalpa Author(s): Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti View full book textPage 2
________________ यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र शास्त्रानुकूल ही है। "... यंत्र मंत्र संत्र अन शास्त्रानुकूल ही है। मंत्रो की शक्ति द्वारा ही हम पत्थर से बनी प्रतिमा को भगवान मानते हैं। प्रतिमा की पूजा अर्चना करके । लाभ उठाते हैं। यंत्र भी जैन शासन के मन शास्त्रों से हैं । यह भी एक धर्म ध्यान का wwwwwwwwwwwwwww तंत्र विद्या भी एक जैन आगम का हर अंग है । किसी प्रकार का रोग आदि हो जाने पर, नजर लग जाने पर तंत्र विद्या के प्रयोग से प्रत्यक्ष में लाभ ह होते देखा जाता है । औषधि शास्त्र भो तंत्र विद्या में ही आता हैं। अतः ओ मंत्र, यंत्र एवं तंत्र को नहीं मानते, वह हमारे विचार से ३ जैन शास्त्रों को हो नहीं मानते। जो यंत्र, मंत्र, तंत्र विद्या का विरोध करते हैं वे जैन आगम का ही विरोध करते हैं। जो जन प्रागम का विरोध करते हैं है यह जैन नहीं हो सकते । जो जैन शास्त्रों को नहीं मानते उन्होनें अभी सम्यकदर्शन को भी प्राप्त नहीं किया है। ऐसे व्यक्तियों का कल्याण अभी हमारी भावना है कि ऐसे व्यक्तियों को भी ऐसी बुद्धि प्राप्त हो कि वह किसी प्रकार से जैन शासन के मूल प्रागम शास्त्रों पर अपनी प्रास्था जमा कर अपना कल्याण करें। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmitPage Navigation
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