Book Title: Gaudi Parshwanath Tirth Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 3
________________ भंवरलाल नाहटा, २६५] ____ मेघासेठ ने प्रातःकाल तुर्क को सहर्ष ५००) टका देकर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा ले ली। २० ऊंट रूई (कपास) खरीदकर उसके बीच प्रभु को विराजमान कर 'पारकर' नगर की ओर रवाना हुमा । जब वे राधनपुर आये तो कस्टम-आफिसर ने ऊंटों की गिनती में कमीबेशी की भूल होते देख पाश्चर्यपूर्वक पूछा । मेघा सेठ से पार्श्व प्रतिमा का स्वरूप ज्ञातकर दाणी लोग लौट गए। संघ प्रभु के दर्शन कर आनन्दित हुआ । अनुक्रम से पारकर पहुंचने पर श्री संघ ने भारी स्वागत किया । फिर सं० १४३२ मि० फाल्गुण सुदी २ शनिवार के दिन पार्श्वनाथ भगवान की स्थापना की गई। एक दिन काजलशाह ने मेघाशाह को पूछा कि आप मेरा द्रव्य लेकर गुजरात गये थे उसका हिसाब कीजिये। मेघा सेठ ने कहा ५००) टका तो भगवान के लिये दिये गये हैं। काजल सेठ ने कहा-इस पत्थर के लिए क्यों खर्च किया ? मेघा ने कहा :-हिसाब करें तब ५००) टका को मेरे हिसाब में भर लीजियेगा। ___ मेघाशाह की धर्मपत्नी का नाम मृगावती था । महिनो और मेहरा नामक दो पुत्र थे । मेघा नै धनराज को भी प्रतिदिन प्रभु की पूजा की प्रेरणा दी। इसके बाद एक दिन स्वप्न में यक्षराज ने मेघाशाह से कहा-कल प्रातःकाल यहां से चलना है। भावल चारण की बहली (रथ) और रायका देवानन्द के दो बैल मंगाकर प्रभु को विराजमान कर तुम स्वयं बहली हांकते हुए अकेले चलना । बांडा थल की ओर बहली हांकना। प्रातःकाल मेघाशाह ने यक्षराज के निर्देशानुसार बांडाथल की ओर प्रयाण किया । बांडाथल · को भयानक अटवी में मेघाशाह भूत-प्रेतादि से जब भयभीत हुआ तो यक्षराज ने उसे कहा निश्चिन्त रहो। __ जब बहली गौड़ीपुर गांव के पास आई तो एकाएक रुक गई। निर्जल और निर्जन स्थान में सेठ अकेला चिन्तातुर होकर सो गया । यक्षराज ने कहा-दक्षिण दिशा में जहां नीला छाण पड़ा हो वहां प्रखूट जल प्रवाही कुत्रा निकलेगा । पाषाण की खान निकलेगी। चावल के स्वस्तिक के स्थान में कुमा खुदवानो एवं सफेद आक के नीचे द्रव्य भंडार मिलेगा। सिरोही में शिल्पी मिलावरा रहता है जिसका शरीर रोगाकान्त है । तुम उसे यहां लाना और प्रभु के न्हवण जल से वह निरोग हो जायना । सेठ ने शुभ मुहूर्त में मन्दिर का काम प्रारम्भ किया। यक्ष के निर्देशानुसार जमीन खुदवाकर द्रव्य प्राप्त किया । गौड़ीपुर गांव बसाकर अपने सगे सम्बन्धियों को वहां बुला लिया। एक दिन काजल सेठ ने वहां आकर मेघा से कहा कि इस कार्य में आधा भाग हमारा है । मेघा ने कहा कि हमें आपके द्रव्य की आवश्यकता नहीं है । प्रभु कृपा से हमें द्रव्य की कोई कमी नहीं है। आप तो कहते थे कि पत्थर क्या काम का है ! काजल सेठ की दाल न गलने से वह ऋद्ध होकर लौट गया और मन में वह मेघा की घात सोचने लगा। उसने मन में सोचा कि पुत्री के व्याहोपलक्ष में सब न्यात को जिमाऊंगा और फिर अवसर पाकर मेघा का प्राण हरण कर स्वयं शक्तिशाली हो जाऊंगा। और फिर मन्दिर बनवाने का पूर्ण यश मुझे मिल जायगा । उसने पुत्री मांडा और मेघाशाह को भी निमंत्रित किया । मेघा के जिनालय बनवाने का काम जोर शोर से चल रहा था अतः उसने स्वयं न जाकर अपने परिवार को भेज दिया । मेघा के न आने पर काजल ने कहा कि मेघाशाह के बिना पाये कैसे काम च स्वयं गौड़ीपुर जाकर मेघा को लाने का निश्चय किया। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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