Book Title: Gaudi Parshwanath Tirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 2
________________ २६४ 1 श्री गौड़ी पाश्वनाथ तीर्थ का नाम गौड़ी पार्श्वनाथ हो गया । फिर यह प्रतिमा पाटन में लाई गई और मुसलमानी आक्रमणों के समय सुरक्षा के लिए जमीन में गाड़ दी गई । सम्वत् १४३२ में पाटन के सूबेदार हसनखां की की घुड़शाला में यह प्रतिमा प्रगट हुई और उसकी बीबी उसकी पूजा करने लगी। एक दिन स्वप्न में उसे ऐसी अावाज सूनाई दी कि नगर "पारकर" का सेठ मेधा यहाँ आयेगा. उसे उस प्रतिमा को दे देना । उसके आगे का वृत्तान्त उपरोक्त स्तवन के आधार से आगे दिया जा रहा है । सम्वत् १४३२ में पाटन से राधनपुर होते हए यह प्रतिमा नगर “पारकर" में मेधाशाह द्वारा पहुंची और १२ वर्ष बाद मेघाशाह को स्वप्न हुआ और उसके अनुसार जिस निर्जन स्थान में यह स्थापित की गई वह गौड़ीपुर नाम से विख्यात हुआ । इसी तरह सं० १४४४ में गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ स्थापित हया । उसकी प्रसिद्धि १७ वीं शताब्दी से ही अधिक हुई मालूम देती है। - नगर “पारकर" मारवाड़ से सिंध जाते हुए मार्ग में पड़ता है । जंगल या छोटे से गांव में गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ था। पाकिस्तान होने के पहले तक वहां के सम्बन्ध में जानकारी मिलती राष्ट्रभाषा प्रचार सभा के सिंध एवं राजस्थान में प्रचारक श्री दौलतरामजी कुछ वर्ष पूर्व बीकानेर पाये थे तो उन्होंने बतलाया था कि वे भी कुछ वर्ष पूर्व वहां गये थे। आस पास में जैनों की बस्ती विशेष रूप न होने के कारण उधर कई वर्षों से उस तीर्थ के सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं हो रही है अतः गौड़ी पार्श्वनाथ की प्रतिमा और मन्दिर की अब क्या स्थिति है उसकी जानकारी, जिस किसी भी व्यक्ति को हो, प्रकाश में लाने का अनुरोध किया जाता है। ५०० वर्षों तक जो इतना प्रसिद्ध तीर्थ रहा है उसके विषय में कुछ भी खोज नहीं किया जाना बहुत ही अखरता है । गौड़ी-पार्श्वनाथ-उत्पत्ति सर्वप्रथम सरस्वती को नमस्कार कर कवि गौड़ी पार्श्वनाथजी की स्तवना उत्पत्ति कहने का संकल्प करता है। पार्श्व प्रभु की जीवनी का संक्षिप्त उल्लेख कर कवि बताता है कि पाटण में गौड़ीपार्श्वनाथजी की तीन प्रतिमाएं निर्माण कर भूमि-गृह में रखी गई थी। तुर्क ने एक प्रतिमा लेकर अपने कमरे में जमीन के अन्दर गाड़ दी और स्वयं उस पर शय्या बिछाकर शयन करने लगा। एक दिन स्वप्न में यक्षराज ने कहा कि प्रतिमा को घर से निकालो अन्यथा मैं तुम्हें मारुगा । देखो 'पारकर' नगर से मेघाशाह यहां आवेगा और तुम्हें ५०० टके दे देगा। तुम उसे प्रतिमा दे देना। किसी के सामने यह बात न कहना तो तुम्हारी उन्नति होगी। " 'पारकर' देश में भूदेसर नामक नगर था । वहां परमारवंशीय राजा "खंगार" राज्य करता था। वहां १४५२ बड़े व्यापारी निवास करते थे। उन व्यापारियों में प्रधान काजलशाह था जिसका दरबार में भी अच्छा मान था । काजलशाह की बहिन का विवाह मेघाशाह से हुआ था । एक दिन दोनों साले बहनोई ने विचार किया कि व्यापार के निमित्त द्रव्य लेकर गुजरात जाना चाहिये। मेघाशाह ने गुजरात जाने के लिये अच्छे शकुन लेकर प्रस्थान किया। ऊंटों की कतार लेकर बाजार में आया तो कन्या, फल, छाब लेकर पाती हुई मालिन वेदपाठी व्यास, वृषभ-सांड, दधि, नीलकंठ इत्यादि अनेक शुभ शकुन मिले । अनुक्रम से पाटण में पहुंचकर कतार को उतारा । रात को सोये हुए मेघा सेठ को यक्ष राज ने स्वप्न में कहा-तुम्हें एक तुर्क पार्श्वनाथ-भगवान की प्रतिमा देगा। तुम ५००) टका नगद देकर प्रतिमा को ले लेना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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