Book Title: Gaudi Parshwanath Tirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 5
________________ भंवरलाल नाहटा, :. २६७] उतपत तेहनी उचरू, शास्त्र तरणी करू साख । मोटा गुण मोटा तणा, भाखै कविजन भाख ॥५।। ढाल-१ नदी यमुना के तीर उडै दोय पंखिया-ए देशी कासी देश मझार के नगरी वणारसी । तेह समोवड़ कोय नहीं लंका जसी ॥ राज करे तिहां राज के अश्वसेन नरपती । राणी वामा नाम के तेहनें दीपती ॥१॥ जनम्या पास कुमार के तेहनी राणीइ । उच्छव कीधो देव के इन्द्र इन्द्राणी ॥ जोवन परण्या प्रेम कन्या प्रभावती । नित नित नव नवा वेस करी नि देखावती ॥२॥ दीक्षा लेई वनवास रहना काउसग तिहां । ... उपसर्ग करवा मेघमाली आव्यो तिहाँ ॥ कष्ट देई नि तेह गयो ते देवता ।। पाम्यो केवलग्यान आवी सूरनर सेवता ॥ ३ ॥ वरस ते सो नो पा उषू भोगवि ऊपना । । जोत मांहि मली ज्योत इहां कांइ क रूपना ।। पाटण मांहि मूरत त्रणे पासनी । भरावी मइरा मांहि राखी कई मासनी ॥ ४ ॥ एक दिन प्रतिमा तेह गोडी नी लेई करी । पोताना प्रावास मितर के लेई धरी ।। खाड खणीने मांह घाली तुरके जिहां । सुई नित प्रति तेह सज्या वाली तिहां ।। ५ ।। एक दिन सूहणा मांहि आवीने इम कहै । तेण अवसर तुरक हीया मांहि सरदहै ।। नहीं तर मारीस मरडीस : हवि हूं तुझ नै । ते माटें, घर मांह थी काढ तू मूझ नै ॥६॥ पारकर : मांह थी मेघो सा इहां आवस्यै । ते - तुझ · देस्यै टका पांचस्यै साथे लावस्यै ।। देजे मूरति एह काढी नै तेह्न । मत कहिजें कोई आगल वात तू केहन ।।७।। थास्ये कोड़ कल्याण के ताहरें आज · थी वाघस्य पाचां मांहि के नामि लाज थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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