Book Title: Gaudi Parshwanath Tirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 11
________________ भंवरलाल नाहटा २७३ } ढाल-११ काधल मत चालो, ए देशी । न्यात जीमाड़ी पापणी, देई ने बहुमान । वर कन्या परगाविया, दीधा बहुला दान ।।१।। काजल कहै नारी भरणी, मेघो अमे भेला । जिमण देज्यो विष भेलन, दूध में तिरण वेला ॥२॥ दूध तणी छै आखड़ी, तुमनै कहिस हुँ रीस । मेघा नै मेलवु नहीं, प्रीसु जिमण जिमेस ।।३।। तब नारी कहै प्रिउजी, मेघो मत मारो । कुल में लंछण लागसी, जास्य पांच मि कारो॥४॥ काजल तो मान नहीं, नारी कही नै हारी। मन भांगो मोती बड्य, तेहनै न लागै कारी ॥५॥ इम सीखवी निज नारि नै, जमवा बिहँ बैठा । भेला एकरण थाल में, हीयो हरखी नै हेठा ॥६॥ दुध पाण्यो तिण नारीय, प्रीस्यो थाली मांहि । काजल कहै मुझ पाखड़ी, पीधो मेघा साहि ॥७॥ मेघा नै हवै तत खरणे, विष व्याप्यो अंग । सासो सास रमी गयो, पाम्यो गति सुरंग ।।८।। ढाल-१२ किहां रे गुरगवंती माहरी जोगणी रे-ए देशी आवी मरघादे प्रीउनै देखनै रे, रीति कहै तिणवार रे । महियो नै मेरो ते पिण बिहुँ जणारे, अति घणु करै पोकार रे ।।१।। फिट फिट रे कुलहीणा पापी स्यु कयु रे, नवि लाज्यो तु लगार रे। मुह किम देखाडिस लोक में रे, धिग धिग तुझ अवतार रे ।।२।।फि०।। वीरा तें नवि जाण्युमन में एहवुरे, ताहरी भगनी नो कुण सलूक रे । माहरे तो क्रम ए छाज्यु नहीं रे, पड़ी दीसै छै मुझमि चूक रे ।।३।।फि०।। एहवा किम लखीया छठी प्रौ अखरारे, तो हवै दीजै किण में दोस रे । निरधारी मेली गयो नाहलो रे, मुझ नै किणही न कीधो रोस रे ॥४। फि०।। इम विलवंती मरधा दे कहै रे, वीर तें तोड़ी माहरी ग्रास रे। तुझ नै कांइ उकल्यु एह रे, जीवीस तीन पांचास रे ।।५।फि०।। कुड करी नै तुझ में चेतरी रे, कीधो तें मोटो अन्याय रे । माहरा नानकड़ा हुँ बालुड़ा रे, केनै मिलस्यै जइनै धाय रे ।।६।।फि०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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