Book Title: Gaudi Parshwanath Tirth
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ प्रत्येक धर्म में अपने महापुरुषों के जीवन से संबंधित स्थानों एवं जीवन-प्रसंग की तिथियों को महत्वपूर्ण माना जाता है । जैन-धर्म में भी तीर्थकरों के जन्म, दीक्षा, निर्वाण आदि पंच-कल्याणकतिथियों का बड़ा महत्व है और जहां जहां तीर्थकरों का जन्म, निर्वाण आदि हया उन स्थानों को तीर्थभूमि माना जाता है। उसके पश्चात् कई चमत्कारी मूर्तियां जहां जहां स्थापित हईं उन स्थानों को भी तीर्थों सम्मिलित कर लिया गया। श्री गौड़ीपार्श्वनाथ का तीर्थ भी इसी प्रकार है। गत पांच सौ वर्षों में इस तीर्थ की महिमा दिनोंदिन बढती गई। अनेक ग्राम नगरों में गौड़ी पार्श्वनाथ के मन्दिरों एवं मूर्तियों की स्थापना हुई क्योंकि मूल प्रतिमा जिस स्थान पर थी उसका मार्ग बड़ा विषम था और सबके लिए वहां पहुंचना सम्भव न था। पर इस मूर्ति के चमत्कारों की बड़ी प्रसिद्धि हुई फलतः लोगों की श्रद्धा गौड़ी. पार्श्वनाथ के नाम से बड़ी दृढ़ हो गई। १७ वीं शताब्दि से २० वीं शताब्दि के प्रारम्भ तक कई यात्रीसंघ मूल पार्श्वनाथ की प्रतिमा जहां थी उस पारकर देश में बड़े कष्ट उठाकर के भी पहंचते रहे हैं। पर अब वह तीर्थ लुप्त प्रायः सा हो गया है । इस तीर्थ की सबसे अधिक प्रसिद्धि प्रीतिविमल रचित "गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवन" के कारण हुई, जिसकी रचना संवत् १६५० के आस पास हुई । इस स्तवन का प्रारम्भ “वाणी-ब्रह्मा-वादिनी वाक्य से होता है। इसलिए इस स्तवन का नाम "वाणी ब्रह्मा" के पाद्यपद से खूब प्रसिद्ध हो गया और इसे एक चमत्कारी स्तोत्र के रूप में बहत से लोग नित्य पाठ करने लगे। कई लोग बड़ी श्रद्धा-भक्ति से संध्या समय धूप दीप करके इस स्तवन का पाठ करने लगे। उनका यही विश्वास है कि इसके पाठ से समस्त उपद्रव शान्त होते हैं और मंगला-माला या लीला लहर प्राप्त होती है। इस स्तवन में गौड़ी पार्श्वनाथ की प्रतिमा के प्रगट होने का चमत्कारिक वृत्तान्त है । यद्यपि ऐसे और भी कई स्तवन समय समय पर रचे गये पर उनकी इतनी प्रसिद्धि नहीं हो सकी। प्रस्तुत लेख में नेम विजय रचित गौडी स्तवन के आधार से इस तीर्थ की स्थापना का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। मुनिश्री दर्शन विजयजी आद्रि त्रिपुटी लिखित “जैन परम्परानु इतिहास" के द्वितीय भाग में गौड़ी तीर्थ का वर्णन भी प्रकाशित हुआ है उसके अनुसार इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा १२२८ में पाटन में कलिकाल-सर्वज्ञ प्राचार्य हेमचन्द्र सूरिजी द्वारा हुई थी। पता नहीं इसका प्राचीन आधार क्या है ? त्रिपुटी के मतानुसार झिवाड़े के सेठ गौड़ी दास और सोढाजी भाला अपने यहां दुष्काल पड़ने से मालवे गये और वहां से वापिस आते समय रास्ते में सिंह नाम के कोली ने अचानक सेठ को मार डाला । सेठ मरकर व्यन्तरदेव हया और अपने घर में स्थित पार्श्वनाथ प्रतिमा का महात्म्य बढाने लगा। अधिष्टायक के रूप में इस प्रतिमा द्वारा कई चमत्कार प्रकट किये अतः सेठ गौडी दास के कारण इस पार्श्वनाथ प्रतिमा Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ 1 श्री गौड़ी पाश्वनाथ तीर्थ का नाम गौड़ी पार्श्वनाथ हो गया । फिर यह प्रतिमा पाटन में लाई गई और मुसलमानी आक्रमणों के समय सुरक्षा के लिए जमीन में गाड़ दी गई । सम्वत् १४३२ में पाटन के सूबेदार हसनखां की की घुड़शाला में यह प्रतिमा प्रगट हुई और उसकी बीबी उसकी पूजा करने लगी। एक दिन स्वप्न में उसे ऐसी अावाज सूनाई दी कि नगर "पारकर" का सेठ मेधा यहाँ आयेगा. उसे उस प्रतिमा को दे देना । उसके आगे का वृत्तान्त उपरोक्त स्तवन के आधार से आगे दिया जा रहा है । सम्वत् १४३२ में पाटन से राधनपुर होते हए यह प्रतिमा नगर “पारकर" में मेधाशाह द्वारा पहुंची और १२ वर्ष बाद मेघाशाह को स्वप्न हुआ और उसके अनुसार जिस निर्जन स्थान में यह स्थापित की गई वह गौड़ीपुर नाम से विख्यात हुआ । इसी तरह सं० १४४४ में गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ स्थापित हया । उसकी प्रसिद्धि १७ वीं शताब्दी से ही अधिक हुई मालूम देती है। - नगर “पारकर" मारवाड़ से सिंध जाते हुए मार्ग में पड़ता है । जंगल या छोटे से गांव में गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ था। पाकिस्तान होने के पहले तक वहां के सम्बन्ध में जानकारी मिलती राष्ट्रभाषा प्रचार सभा के सिंध एवं राजस्थान में प्रचारक श्री दौलतरामजी कुछ वर्ष पूर्व बीकानेर पाये थे तो उन्होंने बतलाया था कि वे भी कुछ वर्ष पूर्व वहां गये थे। आस पास में जैनों की बस्ती विशेष रूप न होने के कारण उधर कई वर्षों से उस तीर्थ के सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं हो रही है अतः गौड़ी पार्श्वनाथ की प्रतिमा और मन्दिर की अब क्या स्थिति है उसकी जानकारी, जिस किसी भी व्यक्ति को हो, प्रकाश में लाने का अनुरोध किया जाता है। ५०० वर्षों तक जो इतना प्रसिद्ध तीर्थ रहा है उसके विषय में कुछ भी खोज नहीं किया जाना बहुत ही अखरता है । गौड़ी-पार्श्वनाथ-उत्पत्ति सर्वप्रथम सरस्वती को नमस्कार कर कवि गौड़ी पार्श्वनाथजी की स्तवना उत्पत्ति कहने का संकल्प करता है। पार्श्व प्रभु की जीवनी का संक्षिप्त उल्लेख कर कवि बताता है कि पाटण में गौड़ीपार्श्वनाथजी की तीन प्रतिमाएं निर्माण कर भूमि-गृह में रखी गई थी। तुर्क ने एक प्रतिमा लेकर अपने कमरे में जमीन के अन्दर गाड़ दी और स्वयं उस पर शय्या बिछाकर शयन करने लगा। एक दिन स्वप्न में यक्षराज ने कहा कि प्रतिमा को घर से निकालो अन्यथा मैं तुम्हें मारुगा । देखो 'पारकर' नगर से मेघाशाह यहां आवेगा और तुम्हें ५०० टके दे देगा। तुम उसे प्रतिमा दे देना। किसी के सामने यह बात न कहना तो तुम्हारी उन्नति होगी। " 'पारकर' देश में भूदेसर नामक नगर था । वहां परमारवंशीय राजा "खंगार" राज्य करता था। वहां १४५२ बड़े व्यापारी निवास करते थे। उन व्यापारियों में प्रधान काजलशाह था जिसका दरबार में भी अच्छा मान था । काजलशाह की बहिन का विवाह मेघाशाह से हुआ था । एक दिन दोनों साले बहनोई ने विचार किया कि व्यापार के निमित्त द्रव्य लेकर गुजरात जाना चाहिये। मेघाशाह ने गुजरात जाने के लिये अच्छे शकुन लेकर प्रस्थान किया। ऊंटों की कतार लेकर बाजार में आया तो कन्या, फल, छाब लेकर पाती हुई मालिन वेदपाठी व्यास, वृषभ-सांड, दधि, नीलकंठ इत्यादि अनेक शुभ शकुन मिले । अनुक्रम से पाटण में पहुंचकर कतार को उतारा । रात को सोये हुए मेघा सेठ को यक्ष राज ने स्वप्न में कहा-तुम्हें एक तुर्क पार्श्वनाथ-भगवान की प्रतिमा देगा। तुम ५००) टका नगद देकर प्रतिमा को ले लेना। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंवरलाल नाहटा, २६५] ____ मेघासेठ ने प्रातःकाल तुर्क को सहर्ष ५००) टका देकर पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा ले ली। २० ऊंट रूई (कपास) खरीदकर उसके बीच प्रभु को विराजमान कर 'पारकर' नगर की ओर रवाना हुमा । जब वे राधनपुर आये तो कस्टम-आफिसर ने ऊंटों की गिनती में कमीबेशी की भूल होते देख पाश्चर्यपूर्वक पूछा । मेघा सेठ से पार्श्व प्रतिमा का स्वरूप ज्ञातकर दाणी लोग लौट गए। संघ प्रभु के दर्शन कर आनन्दित हुआ । अनुक्रम से पारकर पहुंचने पर श्री संघ ने भारी स्वागत किया । फिर सं० १४३२ मि० फाल्गुण सुदी २ शनिवार के दिन पार्श्वनाथ भगवान की स्थापना की गई। एक दिन काजलशाह ने मेघाशाह को पूछा कि आप मेरा द्रव्य लेकर गुजरात गये थे उसका हिसाब कीजिये। मेघा सेठ ने कहा ५००) टका तो भगवान के लिये दिये गये हैं। काजल सेठ ने कहा-इस पत्थर के लिए क्यों खर्च किया ? मेघा ने कहा :-हिसाब करें तब ५००) टका को मेरे हिसाब में भर लीजियेगा। ___ मेघाशाह की धर्मपत्नी का नाम मृगावती था । महिनो और मेहरा नामक दो पुत्र थे । मेघा नै धनराज को भी प्रतिदिन प्रभु की पूजा की प्रेरणा दी। इसके बाद एक दिन स्वप्न में यक्षराज ने मेघाशाह से कहा-कल प्रातःकाल यहां से चलना है। भावल चारण की बहली (रथ) और रायका देवानन्द के दो बैल मंगाकर प्रभु को विराजमान कर तुम स्वयं बहली हांकते हुए अकेले चलना । बांडा थल की ओर बहली हांकना। प्रातःकाल मेघाशाह ने यक्षराज के निर्देशानुसार बांडाथल की ओर प्रयाण किया । बांडाथल · को भयानक अटवी में मेघाशाह भूत-प्रेतादि से जब भयभीत हुआ तो यक्षराज ने उसे कहा निश्चिन्त रहो। __ जब बहली गौड़ीपुर गांव के पास आई तो एकाएक रुक गई। निर्जल और निर्जन स्थान में सेठ अकेला चिन्तातुर होकर सो गया । यक्षराज ने कहा-दक्षिण दिशा में जहां नीला छाण पड़ा हो वहां प्रखूट जल प्रवाही कुत्रा निकलेगा । पाषाण की खान निकलेगी। चावल के स्वस्तिक के स्थान में कुमा खुदवानो एवं सफेद आक के नीचे द्रव्य भंडार मिलेगा। सिरोही में शिल्पी मिलावरा रहता है जिसका शरीर रोगाकान्त है । तुम उसे यहां लाना और प्रभु के न्हवण जल से वह निरोग हो जायना । सेठ ने शुभ मुहूर्त में मन्दिर का काम प्रारम्भ किया। यक्ष के निर्देशानुसार जमीन खुदवाकर द्रव्य प्राप्त किया । गौड़ीपुर गांव बसाकर अपने सगे सम्बन्धियों को वहां बुला लिया। एक दिन काजल सेठ ने वहां आकर मेघा से कहा कि इस कार्य में आधा भाग हमारा है । मेघा ने कहा कि हमें आपके द्रव्य की आवश्यकता नहीं है । प्रभु कृपा से हमें द्रव्य की कोई कमी नहीं है। आप तो कहते थे कि पत्थर क्या काम का है ! काजल सेठ की दाल न गलने से वह ऋद्ध होकर लौट गया और मन में वह मेघा की घात सोचने लगा। उसने मन में सोचा कि पुत्री के व्याहोपलक्ष में सब न्यात को जिमाऊंगा और फिर अवसर पाकर मेघा का प्राण हरण कर स्वयं शक्तिशाली हो जाऊंगा। और फिर मन्दिर बनवाने का पूर्ण यश मुझे मिल जायगा । उसने पुत्री मांडा और मेघाशाह को भी निमंत्रित किया । मेघा के जिनालय बनवाने का काम जोर शोर से चल रहा था अतः उसने स्वयं न जाकर अपने परिवार को भेज दिया । मेघा के न आने पर काजल ने कहा कि मेघाशाह के बिना पाये कैसे काम च स्वयं गौड़ीपुर जाकर मेघा को लाने का निश्चय किया। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ : यक्ष ने मेघा से कहा कि काजलशाह तुम्हें ले जाने के लिए पा रहा है । उसके मन में तुम्हारी घात है । तुम वहां मत जाना । वह तुम्हें दूध में जहर पिलाकर मारने का षडयंत्र कर रहा है। यक्ष के जाने के बाद काजलशाह मेघा के पास आया और नाना प्रकार से प्रेम प्रदर्शित कर हठ करके अपने गांव मुदेसर ले गया । विवाह और जातिभोज का काम निपट जाने पर काजल ने अपनी स्त्री को संकेत कर दिया कि जब हम दोनों एक साथ जीमेंगे, तुम दूध में विष मिलाकर दे देना। स्त्री ने कहा-मेघा को मत मारिये, अपने कुल में कलंक लगेगा । स्त्री ने लाख समझाया पर मन और मोती टूटने पर नहीं मिलता । काजल और मेघा दोनों साथ जीमने बैठे । स्त्री ने दूध लाकर दिया। काजल ने कहा मुझे दूध पीने की सौगन्ध है । मेघा ने दूध पिया और पीते ही शरीर में विष फैल गया और उसका देहान्त हो गया। सर्वत्र काजल की अपकीर्ति हुई । मिरणादे और महियो, मेहरा विलाप करने लगे। मेघा की अंत्येष्टि करके काजल ने अपनी बहिन को समझा बुझाकर शान्त किया। काजलशाह ने जिनालय को पूरा कराया । जब शिखर स्थिर न हया तो काजलशाह चिन्तित हो गया। दूसरी बार भी शिखर गिर गया तो यक्षराज ने महिनो को स्वप्न में कहा कि तुम शिखर चढ़ाना, स्थिर रहेगा। मेघा के हत्यारे काजल को यश कैसे मिलेगा? यक्षराज की आज्ञानुसार महियो ने शिखर चढ़ाया संघ पाया, 'प्रतिष्ठा हई, चमत्कारी तीर्थ की सर्वत्र मान्यता हुई। गौड़ी पार्श्वनाथ के प्रगटन व सवारी का चित्र लगा हुआ है । परिचय प्रस्तुत है- . गौड़ी पार्श्वनाथजी-यह चित्र ३१४३० इन्च माप का है । इसके मध्य में सात सूड वाले हौदा युक्त श्वेत गजराज पर भगवान की प्रतिमाजी विराजमान है । पास में प्रकट होने का उल्लेख है। उभय पक्ष में नरनारी वृन्द अपने हाथ में कलश व पूजन सामग्री लिए उपस्थित है। चित्र के ऊपरी भाग में मेघ घटाओं से ऊपर छः विमान हैं जो अश्वमुखी, गजमुखी हंसमुखी आदि विभिन्न रूपों मेंहैं और २-२ देव उनमें बैठे हुए पुष्प वर्षा कर रहे हैं । चित्र के निम्न भाग में तम्बूडेरा-कनातें लगी हुई हैं। इस चित्र के परिचय स्वरूप बोर्ड में निम्नांकित अभिलेख है। "गौडी पार्श्वनाथ स्वामी प्रगट हा तिसका भाव" "कलम गणेश मुसवर की मुकाम जयपुर शहर कलकत्ता में बनी।" "सम्वत १९२५ मिति कार्तिक सूदि १५ वार शनि श्रीमाल ज्ञाती फोफलिया रीघुलाल तत् पुत्र शिखरचन्द्रन कारापितम" श्री नेमविजय कृत श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवन भाव धरी भजना करु, आपे अविचल मत । लघुता थी गुरुता कर, तू सारद सरसत्ति ॥ १॥ मुझ ऊपर माया धरो, देजो दोलत दान । गुण गावु गोड़ी तणा, भवे भवे भगवान् ॥२॥ धवल धींग गौड़ी धरणी, सह को आवै संग ।। महिमदा वादें मोटको, नारंगो नवरंग ॥ ३ ॥ प्रतिमा त्रणे पास नी, प्रगटी पाटण मांहि । भगत करे जे भविजनां, कूरण ते कहिवाय ॥४॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंवरलाल नाहटा, :. २६७] उतपत तेहनी उचरू, शास्त्र तरणी करू साख । मोटा गुण मोटा तणा, भाखै कविजन भाख ॥५।। ढाल-१ नदी यमुना के तीर उडै दोय पंखिया-ए देशी कासी देश मझार के नगरी वणारसी । तेह समोवड़ कोय नहीं लंका जसी ॥ राज करे तिहां राज के अश्वसेन नरपती । राणी वामा नाम के तेहनें दीपती ॥१॥ जनम्या पास कुमार के तेहनी राणीइ । उच्छव कीधो देव के इन्द्र इन्द्राणी ॥ जोवन परण्या प्रेम कन्या प्रभावती । नित नित नव नवा वेस करी नि देखावती ॥२॥ दीक्षा लेई वनवास रहना काउसग तिहां । ... उपसर्ग करवा मेघमाली आव्यो तिहाँ ॥ कष्ट देई नि तेह गयो ते देवता ।। पाम्यो केवलग्यान आवी सूरनर सेवता ॥ ३ ॥ वरस ते सो नो पा उषू भोगवि ऊपना । । जोत मांहि मली ज्योत इहां कांइ क रूपना ।। पाटण मांहि मूरत त्रणे पासनी । भरावी मइरा मांहि राखी कई मासनी ॥ ४ ॥ एक दिन प्रतिमा तेह गोडी नी लेई करी । पोताना प्रावास मितर के लेई धरी ।। खाड खणीने मांह घाली तुरके जिहां । सुई नित प्रति तेह सज्या वाली तिहां ।। ५ ।। एक दिन सूहणा मांहि आवीने इम कहै । तेण अवसर तुरक हीया मांहि सरदहै ।। नहीं तर मारीस मरडीस : हवि हूं तुझ नै । ते माटें, घर मांह थी काढ तू मूझ नै ॥६॥ पारकर : मांह थी मेघो सा इहां आवस्यै । ते - तुझ · देस्यै टका पांचस्यै साथे लावस्यै ।। देजे मूरति एह काढी नै तेह्न । मत कहिजें कोई आगल वात तू केहन ।।७।। थास्ये कोड़ कल्याण के ताहरें आज · थी वाघस्य पाचां मांहि के नामि लाज थी Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] श्री गौड़ी पाश्वनाथ तीर्थ मनसू बीहनो तूरकडो थाये आकलो आगल जे थाइ वात भवि जन सांभलो ॥ ८ ॥ ढाल-२ देशी १ मांहरा धणुसवाई ढोला। २खंभाईत देशे जाजो, खंभाईति चुडला लाइजोरे माहरां सगबरू लाख जोयण जब परमाण, तेमां भरत खेत्र परधान रे। माहरा सुगण सनेही सुणज्यो । पारकर देस छै रूडो, जिम नारि नै शोभे चूडो रे मां०॥१॥ शास्त्र मांहि जिम गीता, तिम सतीयां मांहि जिम सीता रे मां०।। वाजिन मांहि जिम भेर, तिम परबत मांहि मोटो मेर रे ॥मां०॥२॥ देव मांहि जिम इद, ग्रहगरण माहे जिम चंद रे ॥मां०॥ बत्रीस सहिस तिहां देस (भूछे) तेमां पारकर देस विसेस रे ।।मां।।२।। भूधेसर नांमि नयरी, तिहां रहिता नथि कोइ बेरी रे मा०।। तिहां राज करे खंगार, तेतो जात तणो परमार रे ॥मां०॥४।। तिहां वणज करै रे व्यापारी, तसु अपछर सिरखी नारी रै॥मां०।। मोटा मंदिर परधाम, तेतो चवदैसे बावन रे ।मां०॥५।। तिहां काजल सा व्यवहारी, सहु संघ में छे अधिकारी रे ।।मां०॥ ते पुत्र कलित्र परिवार, तसु मानत छै दरबार रे ॥मां०॥६॥ ते काजल सा नी रे बाई, सा मेघो कीधो जमाई रे ।।मां०।। एक दिन सालो बिनोइ, बैठा बात करंता एहवी रे मां०।७।। इहां थी धन धणो लेइ, जइ ल्यावो वस्तु केइ रे ॥मां०।। गुजरात मांहे तुम जाज्यो, जिम लाभ आवै ते लाज्यो रे ॥मां०।।८।। ढाल-३ पांचम तप भणु रे--ए देशी सा काजल कहै वात, मेघा भरिण दिन रात, सांभली सद्द है ए, वलतु इम कहै ए जाइस हूं परभात, साथ करी गुजरात, सुकन भला सही ए, तो चालु वही ए ।।१।। धन घणो लेई हाथ, परिवारी करि साथ, कंकु तिलक कीयो ए. श्रीफल हाथ दीयो ए। लेई ऊंट कतार, आव्यो चोहटा मझार, कन्या सनमुख मलीए, करती रंगरूली ए ॥२॥ मालण आवी जाम, छाब भरी छै दाम, वधावै सेठ भणी ए, पासीस आपे धणी ए। मच्छ जुगल मल्यो खास, वेद बोलतो व्यास, पत्र भरी जोगणी ए, वृषभ हाथे धणी ए ॥३॥ डावो बोले सांड, दधि नु भरीउ भांड, खर डावौ खरोए,. .....................। पागल पाव्या जाम, मारग बूठा ताम, भेरव जिमणी भली ए, देव डावी वली ए ॥४:। जिमणी रूपा रेल, तार वधी तेहनी वेल, नीलकंठ तोरण कीयो ए, उलस्या अती हीयो ए। हनुमंत दीधी हाक, मधुरो बोले काग; लोक कहै सहु ए, काम होस्यै बहु ए ॥५॥ अनुक्रम चाल्या जाय, आव्या पाटण मांहि, उतारा भला किया ए, सेठजी पाविया ए। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंवरलाल नाहटा मन निसि. भर सूता जाँह, जक्ष प्रावी ने त्यांह, सुहणे इम कहै ए, सघलु सरदहै ए :।६।। तरक तण छे धाम, तेह नै धर जइ ताम, पांचसै रोकड़ा ए, देजे दोकड़ा ए। देसे प्रतिमा एक, पास तरणी सुविवेक, तेह थी तुझ थास्ये ए, चिंता दूर जास्य ए ॥७॥ संभलावी जक्ष्यराज, तुरक भरणी कहै साज, प्रतिमा तु देजे ए, पांच से धन लेजे ए। इम करतां परभात, तुरक भणी कहै वात, मन मां गहगह्या ए, अचरज कुण लहै ए ।।८।। ढाल-४ आसरा रा रे जोगी, ए देशी तरक भणी दियै पांच से दांम, प्रतिमा प्राणी ठाम रे । पास ने तूठा पुजे प्रतिमा हरख भरागो, भाव प्राणी ने खरचो नाणो रे । पासजी मुने तूठा ॥१॥ मुझ वखते ए मूरत प्रावी, मूने आपस्यै दाम उपावी रे ।पा। दाम देई निरू तिहां लीधु, मन मान्यु कारज कीधु रे ।पा०॥२।। रूना भरीया ऊंटज वीस, ते मांहि बैसारचा जगदीस रे ॥पा०॥ अनुक्रमे चाल्या पाटण मांहि थी, साथै मूरत लेइ नै तिहाँ थी रे ।।पा०।।३।। मली सह दाणी विचारै मन में, एतो कोतक दीस इण में रे ।।पा०।। मेघा सा नै दाणी पूछ, कहो सेठ जी कारण स्यूछ रे ॥पा०॥४॥ आगल राधरणपुर सह पाव्या, दारण लेवा दागी मिली पाव्या रे ।।पा।। गणे गणे उंट नै भूल भूलै लेखू, एक प्रोछो अंक अधिको देखू रे ।।पा०॥५॥ सा मेघो कहै सांभल दांगी, अमे मुरत गोडीजीनी प्राणी रे ॥पा०॥ ते मूरत ए बरकी मांहे, किम जालवीए बीजे ठामी रे ॥पा०।।६।। पारसनाथ तणं सुपसाई, दाण मेली दाणी घर जाये रे पा०॥ जात्रा करीनि सह घर आवै, जिन पूजी नै पाणंद पावै रे ॥पा०॥७॥ तिहां थी पाव्या पारकर मांहे, भूधेसर नगर छै ज्याँही रे ।।पा०।। वधामणी दीधी जिण पुरषै, थया रूलियाइत घणु हरखै रे ।।पा०॥।। __ ढाल-५ राणपुरो रलयामणो रे लाल संघ पावै मली सामठा रे लाल, दरसरण करवा काज; भवि प्राणी रे । ढोल नगारा ढल ढलै रे लाल, नादे अंबर गाज ।भ०॥१॥ सुगजो बात सुहामणी रे लाल । उछव महोछव करे धरणा रे लाल, भेट्या श्री पारसनाथ भ०। पूजा प्रभावना करे घणा रे लाल, हर्ष पाम्या सहु साथ भासु०॥ संवद चउदै बत्रीस में रे लाल, कात्तिक सुद नी बीज ।भ०। थावर वारे थापीया रे लाल, नरपति पाम्या रीझ भ०॥३॥सु०।। एक दिन काजलसा कहै रे लाल, मेघासा नै वात भ०। नारण अमारू लेई करी रे लाल, गया हुंता गूजरात-भ०॥४॥सु। ते धन तुमे किहां वावरच रे लाल, ते दयो लेखो आज ।भ०। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० ] श्री गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ तब मेघो कहै सेठजी रे लाल, खरच्या धर्म नै सांमीजी माटै सूपीया रे लाल, पांच से दीधा काजल है तुमे स्यू कर्यु रे लाल, ए पथर कुणं 'काजल भरणी मेघो कहै रे लाल, ए व्यापार अम भाग भ० ते पांच से सर माह रे लाल, तेमां नहीं तुम लाग ॥ भ० ॥७॥सु०॥ काज | ० ||५|| सु०॥ दाम भि० काम | भ० ॥ ६ ॥ सु०॥ मेघासानी भार्या रे लाल, महीयो नै मेरो ए बे सारिखा रे लाल, बहु सुत रतिप्रति काम सु०॥ मृषा दे छे नाम ॥ भ० । ढाल - ६ कंत तमाखू परहरो, ए देशी . सा काजल मेघा भरणी, बेहुं जग मि संवाद । मोरा लाल तिहां मेघो धनराज नै, एक दिन दीघो साद । मोरा लाल सुगजोबात सुहामणी ॥ १॥ श्री प्रतिमा पूजो तुमे भाव आणी निं चित्त । मो० : बार वरस मेघे तेहन, पूजी प्रतिमा नित्य । मो० । एक दिन सुहाँ इम कहै, मेघा सा नै वात मो तुम साथै आवजे, परवारी परभात | मो० || ३ ||०|| वहिल लेजे भावल तरणी, चारण जात छे जेह । मो० | देवारणंद रायका तरणी, दोय वृषभ छै तेह । मो० ॥४॥०॥ वहिल खेड़े तु एकलो, मत लेजे कोई साथ | मो० | बांडा थल भणी हाकजे, मुझ नै राखजे हाथ । मो० ||५||०|| इम मेघा ने प्रीछवी, यक्ष गयो निज ठाम । मो० रवि ऊग्यो मेघो तिहां, करवा मांड्यो काम । मो० ॥ ५ ॥ ० ॥ 1 वहिल लीधो भाव तरणी, वृषभ प्राण्या दोय । मो० । जोतरी हिल स्वामी तरणी, जार छँ सब कोय । मो० ॥७॥ ० ॥ तब मेघो ते वहिलनि, खेड़ी चाल्यो जाय । मो० | अनुक्रमे मारग चालतां श्राव्या थलवट मांह । मो०||८||सु०॥ ढाल - ७ श्रमली लाल रंगावो वर ना मोलियां, ए देशी तिहां छोटा नै मोटा थल घरणा, तिहां रूख तो नहीं पार रे । तिहां भूत नै प्रेत व्यंतर घरणा देखी सेठ करै विचार रे । सा मेघो रे मन में चितर्व, कुरण करसँ मोरी सार रे । तब जक्ष प्रावी ने इम कहै, तुम कर फिकर लगार रे || २ || तब हल हाकी नै चालीयो, श्राव्यो ऊभड़ गौड़ीपुर गाम रे । तिहां वाव कुबा सरोवर नहीं, नहीं मोहल मंदिर सुठाम रे || सा० ॥३॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंवरलाल नाहटा - तिहां वहिल थंभाणी चाल नहीं, हवं सेठ हुयो दिलगीर रे ।सा। मुझ पास नयी कोई दोकड़ा, कुण जाणे पराई पीड़ रे ।सा०।।४।। तिहां रात पड़ी रवी प्राथम्यो, चिंतातुर थइनि सूतो रे ।सा०। तव जख्य प्रावी ने इम कहै, सोहणा मांहि एकंतो रे ।सा०।।५।। हवे सांभल मेघा हुं कहुँ, इहा वास जे गोड़ीपुर गाम रे ।सा। माहरो देरासर करजे इहां, उत्तम जोइ कोइ ठाम रे ।सा०॥६॥ तु जाजे रे दक्षण दस भणी, तिहां पङ्य छै नील छांण रे ।सा। तिहां कुप्रो उमटसी पाणी तरणो, परगटसै पाहाणरी खाण रे ।सा०॥७॥ पासै ऋग्यो छ उज्वल आकडो ते हेठल छै धन बहलो रे ।सा। तिहां पूरयो छै चोखा तणो साथीयो, वली पाणी तणो कुयो पहोलो रे ।सा ।।८।। । ढाल-८ सीता तो रूपे रूड़ी, एहनी देशी सीलावट सीरोही गामैं तिहां रहै छै चतुर छै कामै हो ।सेठजी सामलो। रोग छ तेह नै शरीरे, नमणु करी ने छांटो नीरे हो ।से०।।१।। रोग जास्यै नै सुख थास्यै, बैठो इहां काम कमास्यै हो ।से। जोतिक निमत्त जोराव, देरासर पायो मंडावै हो ।से०।।२।। जख्य गयो इम कही नै, करो उद्यम सेठ जी वही ने ।से। सिलावट्ट नै तेड़ाव, वली धन नी खाण खणावै हो ।से०।।३।। गोड़ीपुर गाम वसावै, सगा साजन नै तेड़ावै हो ।से।" इम करतां बहु वीता, थया मेघो जगत्र वदीता हो ।से०।।४।। एक दन काजलसा प्रावी, कहै मेघा नै वात बनावी हो ।से। ए कामैं भाग अमारो, अर्ध मारों अर्ध तमारो हो ।से०॥५॥ ईम करी देरासर करीय, जिम जग में जस वरीय हो ।से। तब मेघो कहै तेहन, दाम जोइ छै केहनै हो ।से०॥६॥ सांमीजी सुपसाय, घणा दाम छै वली इहाइहो ।से। एक दिन कहिता तुमे प्रांम, ए पथर छै कुरण काम हो ।से०॥७॥ क्रोध वसे पाछो वलीयो, आपण मांदर मां भलीयो हो ।से। सा काजल मनचित, मारू मेघो तो थाऊ नचितौ हो ।से०॥८॥ ढाल कोइलो परबत धूधलो रे लाल परणावु पुत्री माहरी रे लाल, खरचू द्रव्य अपार रे ।चतुरनर। न्यात जीमाडु पापणी रे लाल, तेडी मेघो तिणवार रे ।च०।।१।। सांभलजो श्रोता जनां रे लाल मांकरणी॥ जो मेघो मारु सही रे लाल, तो मुझ उपजै करार रे ।च०। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ श्री गौड़ी पाश्र्वनाथ तीर्थ देवन करावु हुँ उली रे लाल, तो नाम रहै निरवार रे ।च०॥२॥सां।। इम चितवी वीवाह नुरे लाल, करै कारिज ततकाल रे ।च०। सांजन नै तेड़ाव नै रे लाल, गोरीमो गावै धमाल रे।च०। सा मेघा भणी नुतरु रे लाल, मोकलै काजल साह रे ।च०। वीवाह उपर पावज्यो रे लाल, अवस करी नै इहांप रे ।च०॥४॥सा।। सांभली मेघो चीतवै रे लाल, किमकरी जइये त्यांह रे ।च०। काम अमारे छै घणु रे लाल, देहरासर नो इहांह रे ।च०॥शासा ।। तब मेघो कहै तेहनै रे लाल, तेड़ो जानो परवार रे ।च०। काम मेली ने किम आवीय रे लाल, जाणो तुमे निरधार रे ।च०॥६।।सा०।। मरघादे नै तेडनै रे लाल, पुत्र कलत्र परवार रे ।च०। मेघा ना सहु साथ ने रे लाल, तेड़ी आव्या तिणवार रे ।च०॥७॥सा०।। कहै काजल मेघो किहां रे लाल, इहां नाव्या सा माट रे ।च०। मेघा विना कहो किम सरै रे लाल, न्यात तणी ए बात रे ।च०॥८॥सा।। ढाल १० नंद सलूणा नंदजी रे लो-ए देशी जक्ष गयोइ मेघा भणी रे लो, हवै ताहरी प्रावी बनी रे लो। काजल आवस्यै तेड़वा रे लो, कूड़ करी तुझ बेडवा रे लो ॥१॥ तु मत जाजे तिहां कणे रे लो, झेर देई तुझ नै हणे रे लो। तेड़े पिण जइसे नहीं रे लो, नमण करी ले इजे सही रे लो ॥२ः। दूध मांहि देस्ये खरू रे लो, नमणु पीधे जास्यै परू रे लो। ते माटे तुझ नै धणु रे लो, मान वचन सोहामणु रे लो ॥३॥ जक्ष गयो कही तेहव रे लो, काजल आव्यो एहवं रे लो। कहै मेघा निसांभलो रे लो, आवी मेलो मन आवलो रे लो ।।४।। तुम पाव्यां बिना किम सरै रे लो,, न्यात में सोभीय किरण परै रे लो। तुम सरीखा आवै सगा रे लो, तो अमनै थायै उमगा रे लो ॥५॥ हूं आव्यो धरती भरी रे लो, तो किम जाऊं पाछो फरी रेल । जो अमनि कांइ लेखवो रे लो, आडो अवलो मत देखवो रे लो ।।६।। हठ लेई बैठा तुम रे लो, खोटी थइयै छै हवे अमे रे लो। सा मेघो मन चीतवै रै लो, अति ताण्यो किम पूरव रे लो ।।७।। काजल साथ चालियो रे लो, भूधेसर माहे प्रावीया रे लो। नमणु विसारयु तिहां कण रे लो, भविस पूरण अखी बण्यी रे लो ।।८।। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंवरलाल नाहटा २७३ } ढाल-११ काधल मत चालो, ए देशी । न्यात जीमाड़ी पापणी, देई ने बहुमान । वर कन्या परगाविया, दीधा बहुला दान ।।१।। काजल कहै नारी भरणी, मेघो अमे भेला । जिमण देज्यो विष भेलन, दूध में तिरण वेला ॥२॥ दूध तणी छै आखड़ी, तुमनै कहिस हुँ रीस । मेघा नै मेलवु नहीं, प्रीसु जिमण जिमेस ।।३।। तब नारी कहै प्रिउजी, मेघो मत मारो । कुल में लंछण लागसी, जास्य पांच मि कारो॥४॥ काजल तो मान नहीं, नारी कही नै हारी। मन भांगो मोती बड्य, तेहनै न लागै कारी ॥५॥ इम सीखवी निज नारि नै, जमवा बिहँ बैठा । भेला एकरण थाल में, हीयो हरखी नै हेठा ॥६॥ दुध पाण्यो तिण नारीय, प्रीस्यो थाली मांहि । काजल कहै मुझ पाखड़ी, पीधो मेघा साहि ॥७॥ मेघा नै हवै तत खरणे, विष व्याप्यो अंग । सासो सास रमी गयो, पाम्यो गति सुरंग ।।८।। ढाल-१२ किहां रे गुरगवंती माहरी जोगणी रे-ए देशी आवी मरघादे प्रीउनै देखनै रे, रीति कहै तिणवार रे । महियो नै मेरो ते पिण बिहुँ जणारे, अति घणु करै पोकार रे ।।१।। फिट फिट रे कुलहीणा पापी स्यु कयु रे, नवि लाज्यो तु लगार रे। मुह किम देखाडिस लोक में रे, धिग धिग तुझ अवतार रे ।।२।।फि०।। वीरा तें नवि जाण्युमन में एहवुरे, ताहरी भगनी नो कुण सलूक रे । माहरे तो क्रम ए छाज्यु नहीं रे, पड़ी दीसै छै मुझमि चूक रे ।।३।।फि०।। एहवा किम लखीया छठी प्रौ अखरारे, तो हवै दीजै किण में दोस रे । निरधारी मेली गयो नाहलो रे, मुझ नै किणही न कीधो रोस रे ॥४। फि०।। इम विलवंती मरधा दे कहै रे, वीर तें तोड़ी माहरी ग्रास रे। तुझ नै कांइ उकल्यु एह रे, जीवीस तीन पांचास रे ।।५।फि०।। कुड करी नै तुझ में चेतरी रे, कीधो तें मोटो अन्याय रे । माहरा नानकड़ा हुँ बालुड़ा रे, केनै मिलस्यै जइनै धाय रे ।।६।।फि०।। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २७४ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ अधविच रह्या देहरा आज थी रे, जग मां नाम रह्यो निरधार रे । नगरी में बात घर घरविस्तरी रे, सह को ना दिल मि आव्यो खार रे ॥७॥फि०।। द्वष राखी ने मेघो मारीयो रे, ए तो काजल कपट भंडार रे। मन नो मैलो दीठो एहवो रे, इम बोलै छै नर नै नार रे ॥८॥फि०॥ ढाल-१३ पूरब पुण्ये पामिय-ए देशी बेहनी अगनि दाह देइ करी, आव्या सहु निज ठाम हे । बैहनी काजल कहै तु मत रोए, न करु एहQ काम हे ।ब०॥१॥ लेख लख्यो ते लाभीय, दीजै किण नै दास हे बै० जनम मरण हाथे नथी, खोटी माया जाल हे वै ॥२॥ले०॥ एह संसार छै कारमो, खोटी माया जाल हे बै० एक आवे ठाली भरी, जेहवी अरट नी माल हे बै० ॥३॥ले०।। सुख दुख सरज्यां पामिय, नहिं छै कोई नै हाथ हे बै० म कर फिकर तु आज थी, बहुली आपने अाथ हे बै० ॥४॥ले०।। खायो पीयो सुख भोगवो, न करो चिंत लगार हे बै० जे जोइ इ ते मुझनै कहो, न करो दिल में विचार हे बै० ॥शाले०।। जिन नो प्रसाद कराविसुमितस राखीसु माम हे बै० इजत आपण कर तणी, खोसु किम करि नाम हे बै० ॥६।।ले०।। सोढां में हाथे सुपीसु, गौड़ीपुर ए गाम हे बै० चालो आपण सहु तिहां, हुं लेई प्रावू नाम हे बै० ॥७॥ले०॥ अनुक्रम पाव्या सहु मली, गौड़ीपुर गाम मझार हे बै० जिन नो प्रसाद करावियौ, काजल सा तिण वार हे बै० ॥॥ले०॥ ढाल-१४ करेलडां घड़ दे रे-ए देशी देहरै सखर भढावीयो, थर न रहै तिण वार । काजल मन मां चिंतवै, हवै कुरण करवो प्रकार ।।१।। भविक जन सांभलो रे, मुकी मन नो अमलोरे ।भांकणी।। बीजी वार चढावीयो, प. हेठो ततकाल । सोहणा मां जक्ष प्राविनै, कहै मेरा नै सुविसाल ।।भ०॥१॥ तु चढावे जाय नै थिर रहस्यै सर तेह । काजल ने जस किम होवै मेघो मार्यो तेह ।।भ०॥३॥ मेरें सखर चढावियौ, नाम राख्यो जग मांहे। मुरत थापी पासनी, संघ पावै उच्छाह ।।भ०।।४।। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंवरलाल नाहटा, 275 ] संवत चवद चौमाल मां, देहरै प्रतिष्ठा कीध / महियो मेरो मेघा तणा, तिण जग माहे जस लीध भ०॥४॥ देसी प्रदेसी घणा, आवै लोक अनेक / भाव धरी भगवंत ने, वांदे अधिक विवेक ॥भ०॥६॥ खरच द्रव्य घणा विहां, राउ राणा तिरण वार / मानत मानै लाखनी, टालै कष्ट अपार भ०॥७॥ निरधणीमानै धन दियै, अपुत्रियां नै पुत्र / रोग निवारै रोगीमा, टाल दालिद्र दुख ।।भ०।।८।। ढाल-१५ घर आवोजी प्रांबो मोरीयो-ए देशी आज अम घर रंग व धामणा, आज तूठा श्री गौड़ी पासो / आज चिंतामण प्रावी चढ्यो, आज सफल फली मन आसो // 0 // 1 // आज सुरतरु फल्यो प्रांगणे, आज प्रगटी मोहन वेलो। आज विछडीया वाहला मिल्या, आज अम घर हई रंग रेलो।।प्रा०॥२॥ आज अम घर प्रांबो मोरीयो, आज बूठो सोवन धार / आज दूधे बूठा मेहला, आज गंगा प्रावी घर बार ॥प्रा०॥३॥ श्रीहीर विजय सूरीश्वरू, तस शुभ विजय कवि सीस / तेहना भाव विजै कवि दीपता, तेहना सीध नमु निशदीसो प्रा०॥४॥ तेहना रूप विजै कविराय ना, तेहना कृष्ण नमु करजोड़ि। वली रंग विज रंगे करी, हुतो प्रणपत करु' कर जोड़ि |प्रा०॥शा आज गायो श्री गौड़ीपुर धणी, श्री संघ केरै पसाय / चतुर चौमासू की चुप सु, गामते महियल मांह प्रा०॥६॥ संवत अठारै सतलोत्तरे, भाद्रवा मास उदार / निथ तेरस चन्द्रवास रै इम नेम विजय जै जैकार प्रा०॥७॥ इति श्री गौड़ी पार्श्वनाथजी स्तवनम् संपूर्णम्