Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 4
________________ ॥५॥चिंते लघुवय ले प्रनु वीर, केम सहेशे जल धारा नीर॥वीरें तस मन संशय जाणी, करवा चित्रिी त अतिशय नाणी ॥बी०॥६॥ माहावीर निज अंगु वे चंप्यो, ततदण मेरु थर हर कंप्यो ॥ मार्नु नृत्य करे रसियो, प्रजुपद फरसें थ उल्लसियो ॥ बी० ॥७॥ जाएयुंछे सहु विरतंत, बोले कर जोडी नग वंत ।। गुनहो सेवकनो ए सहेजो, मिथ्या पुःकृत एह नु होजो । बी० ॥ ॥ स्नात्र करी माताने समर्प, उवि पहोता नंदीश्वर छीपे ॥ पूरण लाहो रे लेवा, अहा महोत्सव तिहां करेवा ॥ बी०॥ ए॥ पुत्र व धाई निसुणी राजा, पंच शब्द वजडावे वाजां ॥ निज परिकर संतोषी वारू, वर्षमान नाम ग्वे उदारु ।। बी० ॥ १० अनुक्रमें जोबन वय जव थावे, नृपति रा जपुत्री परणावे ॥ जोगवी प्रजु संसारिक जोग, दीप कहे मन प्रगट्यो जोग॥ बी॥११॥इति ।। ॥वधावो त्रीजो॥ ॥जवि तुमें वंदो रे सूरीश्वर गहराया॥ ए देशी॥ हवे कल्याणक त्रीबोवू, जगगुरु दीका केरुं॥ हर्षित चिने नावें गावे, तेहy नाग्य जलेलं ॥ सहि तुमें से वो रे, कल्याणक उपकारी ॥ संयम मेवो रे, श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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