Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 6
________________ __ (५) ॥१०॥ सिंह समोवड पुर्जर थईनें, कविन कर्म सहु टाले ॥ जगजयवंतो शासननायक, इणिपरें दी' दा पाले ॥ स० ॥ ११॥ दीदाकल्याणक ए त्री: जु, सहि तुमें दिलमा लावो ॥ एम वधावो त्रीजो सुंदर, दीप कहे सहु गावो॥स॥१५॥ इति त्रीजो वधावो संपूर्ण ॥ ॥वधावो चोथो॥ ॥अविनाशीनी सेजडीयें, रंग लागो मोरी सुजनी जी॥ ए देशी॥ ॥ चोथु कल्याणक केवलजें, कहुंचुअवसर पामीजी ॥जग उपकारी जगबंधवने, हुँप्रणमुं शिर नामी ॥सां नल सुजनी जी ॥२॥ वैशाख शुदि दशमीने दिवसें, पाम्या केवल ज्ञान जी ॥ बार जोयण एक रातें चा: स्या, जाणी लान निधान ॥ सांग ॥२॥ अप्पापा न यरीये आव्या, महसेन वन विकसंत जी ॥ गणध रने वली तीरथ थापन, करवाने गुणवंत ॥ सां०॥ ॥३॥ नुवनपति व्यंतर वैमानिक, ज्योतिषी हरि समुदायजी ॥ वीश बत्रीश दश दोय मलीने, ए चोशन कहेवाय ॥ सांग ॥ ४ ॥ त्रिगडानी रचना करि सारी, त्रिदशपति अति जारी जी ॥ मध्य पीठ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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