Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 5
________________ ( ५ ) तमनें हितकारी॥१॥ लोकांतिक सुर अमृतवयणे, प्रजुनें एम सुणावे ॥ बूऊ बृज जगनायक लायक, एम कहीने समजावे ॥ स॥२॥ एक क्रोड ने आठ लाखनु, दिनप्रत्यें दीये दान ॥ शणिपरें संवत्सर लगें सईने, दीन वधारे वान ॥ स ॥३॥ नंदिवर्डन नी अनुमती लेख्ने, वीर थया उजमाल ॥प्रनु दीदा नो अवसर जाणी, आव्यो हरि ततकाल ॥ स ॥४॥ थापी दिशि पूरवनी साहामा, दीक्षा महोत्सव की धो॥ पालखीयें पधरावी प्रजुनें, लाज अनंतो लीधो ॥स० ॥५॥ सुरगण नरगणने समुदायें, दीदायें संचरिया ॥ माता धाव कहे शिखामण, सुण त्रिशला नानडिया ॥ स॥६॥ मोह मल्हनें जेर करीने, धर जो उज्ज्वल ध्यान ॥ केवल कमला वहेली वरजो, दे जो सुकृत दान ॥ स॥७॥ एम शिखामण सुणते सु णते, थुणते बहु नर नारी ॥ पंच मुष्टिनो लोच करी ने, आप थया व्रतधारी॥स०॥॥ धन्य धन्य श्री सिझारथनंदन, धन्य त्रिशलाना जाया ॥ धन्य धन्य नंदीवर्डन बंधव, एम बोले सुरराया ॥ स ॥ए॥ अनुमति लेई निज बंधवनी, विचरे जगदाधार ॥स मितिये समिता गुप्तियें गुप्ता, जीवदया लंमार ॥सण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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