Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ बहु उबरंगें जश् पियुसंगें, सघली वात सुणावे रे ॥ सुनगे लान पुत्रनो होशे, पियुनां वचन वधावे ॥ एह ने ॥ ७॥ स्वपना फल पूड़ी पाठकने, गर्न वहे नृप राणी रे ॥ दीप कहे श्म प्रथम वधावो, गावे सुरई प्राणी ॥ एहने ॥ ॥ इति ॥१॥ ॥वधावो बोजो ॥ ॥श्रावण वरसे रे सुजनी ॥ ए देशी ॥ बीजे वधावे रे सुजनी, चैतर शुदि तेरशनी रजनी॥ जन्म्या जिनवर जग उपकारी, हुं जावं तेहनी बलि हारी ॥ बीजे वधावे रे सुजनी ॥ १॥ उप्पन दिशि कुमरी तिहां श्रावे, पूजी शुचिजलशुं न्हरावे॥ जीवो महीधर लगें जिनराया, अविचल रहेजो त्रशलाना जाया ॥ बी० ॥२॥ गिरुथा प्रजुनुं वदन निहाली, चाली चोंयें चतुरा बाली॥ हरख्यो सुरपति सोहम स्वामी, जाणी जन्म्या जगविश्रामी॥ बी॥३॥ घो था घंटा तव वजडावे, ततदण देव सह तिहां आवे ।। प्रजु ग्रही कंचनगिरि पर गवे, स्नान करी जिननें न्हवरावे ॥ बी०॥४॥ एक कोड वली ऊपर जाणो, शाउ लाख संख्या परमाणो ॥ सहु कलशा शुचि ज सशुं जरिया, ततरण सोहम संशय धरिया ।। बी॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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