Book Title: Gadyasangraha
Author(s): Badrinath Shukla, Jayant Mishra
Publisher: Sahitya Academy

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Page 15
________________ xiii 26-27 15. 27-29 29-31 विषयानुक्रमणिका 14. रामानुजोक्तगीताभाष्यात् परब्रह्मभूतो भगवान् कृष्ण: युद्धाय अर्जुनस्य प्रोत्साहव्याजेन वेदान्तोक्तभक्तियोगमेवा-वतारयामासेति गीतोद्धारः। निम्बार्कवेदान्त-पारिजातसौरभात् अथातो ब्रह्मजिज्ञासा, जन्माद्यस्य यतः, शास्त्रयोनित्वात्, तत्तु समन्वयात् / 16. मध्वदर्शने-सर्वदर्शन-संग्रहात् तत्त्वमसीत्यादिवेदान्त वाक्य विषयकविचारः 17. वल्लभवेदान्ते शुद्धाद्वैत-मार्तण्डात् 32-33 तत्त्वमसीति वाक्यार्थविषयिणी विभिन्ना दृष्टिः। आचार्ये भगवत्त्वबुद्ध्या तद्भजनादेव पुरुषोत्तमो लभ्यः। 18. प्रमेयरत्नार्णवात्। 33-39 जगतो ब्रह्मरूपतैव सत्या, विभिन्नदृशाभानन्तु योग्यताभेदात्। भगवतः प्रतिमा भगवानेव, तत्रान्यथाबुद्धिः न कार्या / जीवस्वरूपम्। जीवो ब्रह्मणोऽभिन्नस्तस्याणुः अंशः, तस्य मोक्षप्राप्तिप्रकारो भेदश्च। मूल-स्वरूपम्। पुष्टिस्वरूपम् भगवतोऽनुग्रह एव पुष्टिः सा चतुर्विधपुरुषार्थसाधिका। पुष्टिमार्गस्थैःलभ्यस्य फलस्य स्वरूपम्। निरोधलीलायाः स्वरूपम् तस्यास्त्रैविध्यं च। 19. गौडीयवैष्णवदर्शने भागवत-षट्सन्दर्भे तत्त्वसन्दर्भात् 40-42 पुराणमपि वेदरूपतया प्रमाणम् ,गायत्रीमधिकृत्य प्रवर्तितं समाधौ वेदव्यासेन लब्धं भागवतमेव मूर्धन्यं प्रमाणम्। 20. प्रत्यभिज्ञादर्शने-ईश्वर-प्रत्यभिज्ञा-विमर्शिनीतः अभिनवगुप्ताचार्यस्य व्यवहारसाधनानांव्यवहर्तव्यविषयकमोहापसारणमात्रफलकत्वम्। भगवानेव ज्ञानस्मृत्यपोहनशक्तिभिः विश्वव्यवहारप्रवर्तकः। अन्यनिरपेक्षताया एव परमार्थत आनन्दरूपता,सा चाजडनिष्ठेवाप्रकाशेअहमाकारः प्रत्यवमर्श एव, नविकल्पः तत्राप्रकाशसम्भावनादेरसम्भवेन व्यपोहनीयाभावात्। परमेश्वर एव प्रमाता न देहादिः विश्वं तदन्तर्गतमेव। 42-47

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