Book Title: Gadyasangraha
Author(s): Badrinath Shukla, Jayant Mishra
Publisher: Sahitya Academy
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________________ xii गद्यसंग्रहः 15-16 16-17 18-19 7. भामतीग्रन्थात् असत् ख्यातिनिरासः ब्रह्मैवैकं सत्। तदन्यत् सर्वम् अनिर्वचनीयं सत्त्वासत्त्वाभ्याम् / 8. श्रीमद् भगवद्गीता-शांकरभाष्यात् वैदिकधर्मस्य द्वैविध्यम् प्रवृत्ति-निवृत्ति-लक्षणाभ्याम् / 9. श्रीरामानुजाचार्य कृत-वेदार्थ संग्रहात् सर्वं वेदान्तवाक्यजातं ब्रह्मानुभवज्ञापने प्रवृत्तम् / ज्ञानानन्दैकगुणो जीवः सर्वेषां समानः। अनन्तगुणगणागारो ....... भगवान् / पुरुषोत्तमो नारायणो भक्त्येकलभ्यः / 10. श्रीभाष्यात् अविद्या जगन्मूलम्, तन्निर्वहणाय निर्विशेषब्रह्मात्मैकत्वविद्या-प्रतिपत्तये सर्वे वेदान्ताः प्रवृत्ताः इत्यद्वैतवादिनां पूर्वपक्षः। अद्वैतवादिनां मायावादोपजीविनः पूर्वपक्षस्य खण्डनम्।प्रमाणाभावाद्वस्तुन निर्विशेषं किन्तु सविशेषमेव। अतो निर्विशेषं ब्रह्म नास्ति / निर्विकल्पक प्रत्यक्षमपि निर्विशेषं- नावगाहते। 11. तत्त्वप्रदीपिका चित्सुखीतः लक्षणप्रमाणाभ्यां भावाभावविलक्षणस्य अज्ञानस्य सिद्धिः। खण्डनखण्डखाद्यात् प्रमाणादीनां सत्त्वं स्वीकृत्यैव वादिभिः कथा प्रवर्तयितुं शक्येत्येतस्य खण्डनम्।अद्वैतं पारमार्थिकतया आविद्यकैस्तकैर्बाधितुमशक्यम् / अनुभवत्वस्य जातित्वनिरासः। अद्वैतसिद्धितः कथाप्रवृत्तये मध्यस्थेन विप्रतिपत्तिप्रदर्शनस्यावश्य- कर्तव्यतासाधनम् / दृष्टि सृष्टयुपपत्ति:- जगन्मिथ्यात्वसिद्ध्यनुगुणायाः दृष्टिसृष्टेः स्वरूपम् / 20-21 21-24 13. 25-26 .

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