Book Title: Ek Prasiddh Vakta Ki Taskar Vrutti Ka Namuna Author(s): Gunsundarsuri Publisher: View full book textPage 3
________________ मूर्तिपूजा का विरोधि लुका बनाया को आज करीबन 450 वर्ष और मुहबन्धे ढूंढकों को 275 वर्ष हो चुके है जिसमें धर्मदास व जेठा जैसे मूर्ति पूजा के कहर शत्रु पैदा हो के मर भी गये पर उन निंदकोंने भी, पवित्र श्रीपालचरित्र कि तरफ हस्तक्षेप करनेका साहस नहीं किया इतना ही नहीं पर कितनेक ढूंढक ढूंढणीयां सिद्धचक्र कि भक्ति सेवा पूजा पूर्वक ओलियां करते थे उनको मना तक भी नहीं किया था तब आजकल कर्त्तव्य ऐक्यता की पुकार करनेवाला ढूंढक साधु चोथमलजीने एक श्रीपाल चरित्र के नामसे बिल्कूल अशुद्ध कविता रची जिसको सादडी ढूंढक समाजने वि. स. 1981 में मुद्रित करवाई है जिस किताब के पृष्ट 69 गाथा 720 में ढूँढक चोथमलजी लिखते है कि श्रीपालका चरित्र बनाया / लेइ ग्रन्थ आधार। विपरीतका मिथ्यादुष्कृत / हो जो वारम्वार // 720 // इस गाथासे यह पाया जाता है कि ढूँढकजीने किसी ग्रन्थ का आधार ले यह श्रीपाल चरित्र बनाया है पर ग्रन्थ का नाम लिखने में ढूँढकजीको जहार गर्भ कि माफिक सरम आई हो ? आगे विपरीतका मिथ्यादुष्कृत दे उत्सूत्र के बन पापसे छूटनेका जनताको धोखा दीया है पर जानबुज इरादापूर्वक चौरी कर चौरीका माल न दे कर केवल मिथ्यादुष्कृत दे छुटना चाहाता हो वह छुट नहीं सक्ता है पर एसा धोखाबाजीसे डबल गुन्हगार समजा जाता है / चौरों कि निष्पत् पागी लोगोंमें ताक्त अधिक हुवा करती है कि वह चोरों के कितने ही प्रयत्न करने पर भी उसके पग खोजPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16