Book Title: Ek Prasiddh Vakta Ki Taskar Vrutti Ka Namuna
Author(s): Gunsundarsuri
Publisher: 

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Page 5
________________ दक्षोवाच समस्या दक्षा की ओरसे . तस तिहुअण जणदास तब सब जगजनदास शृंगारसुन्दयूँवाच समस्या शृंगरसुन्दरी की ओरसे रवि पहला ऊगंत | रवि पहला उगंत ' जो समस्या श्रीमान् उपाध्यायजी के रासमें थी वह वैसी कि तैसी ढूँढकजीने अपने बनाये चरित्रमें उतार लि है इससे यह सिद्ध होता है कि ढूँढक चौथमलजीने जो श्रीपाल चरित्र बनाया है वह श्रीमान् उपाध्यायजी के रासपरसेही बनाया है जिस ग्रन्थकों नहीं मानना उस ग्रन्थका आधारसे अलग खिचडी पकाना उस्मेंभी मूल प्रन्थकर्ताके मूल पाठ के पाठको उडा देना ढूंढकोंको क्या अधिकार है ! याद रखिये ढूंढको ? वैपारी लोग अपने वही चोपड़ोसे कलमें निकाल देनेपर उनको कैदकी सजा होती है राजके दफतरोंसे बयान निकाल देनेसे फांसीकि सजा भुक्तनी पडती है परधर्म शास्त्रोंसे पाठ उडा देनेसे सिवाय नरक के दूसरी कोइ सजा नहीं है अरे ! चोथमलजी वगरह भाव तस्करों ! तुमारे तो महामिथ्या मोहनियकर्मका प्रवलोदय है वास्ते तुमने यह अनंत संसार बढानेका प्रयत्न किया मगर बिचारे भोले भद्रिक जीवोंकों इस उत्सूत्र के अनुमोदक बनाके क्यो इबाते हो ? क्या चोथमल का बनाया श्रीपाल चरित्र विगर ढूंढकोंका काम नहीं चलता था ? अगर एसाही था तो जैसा प्राचीन शास्त्रमें था वह ही भाव अपना चरित्रमें लाना था ढूँढकजी याद रखिये अब जनताके हृदयकमलमें दीनकर प्रकाशित हो गया है दूसरेतों क्या ? पर आज ढूंढक समाजमें अगर कुच्छ लिखा पढा है वह आपका

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