Book Title: Ek Prasiddh Vakta Ki Taskar Vrutti Ka Namuna Author(s): Gunsundarsuri Publisher: View full book textPage 6
________________ उत्सूत्र रूप मिथ्या प्रयत्नकि तरफ घृणाकी दृष्टि से देखे वगर न रहेगा फिरभी किसीके नैत्रोंमे अज्ञान छा गया हो उनके लिये हम यहाँ पर यह बतला देना चाहते है कि ढूँढक चौथमलजी ने किनकिन स्थानोंसे मूल पाठ उडा दिये है देखो श्रीपाल चरित्रप्राकृत-'मयणाए वयणेणं सोउंबरराणओ पभायंमि / ' .. तीए समं तुरंतो पत्तो सिरि रिसह भवणंमि / 171 संस्कृत-ततो मदन सुन्दर्या वचनेन स उम्बरराजः प्रभाते-प्रातःकाले तया स्वस्त्रिया समं सह त्वरमाणः उत्ताल सन् श्री ऋषभदेवस्य-जिनराजस्य भवने-मन्दिरे प्राप्ताः रास-श्रावो देव जुहारियेरे लो / ऋषभदेव प्रासाद रे वाले० / आदीसर मुख देखतारेलो / नासे दुःख विषवादरे वाले० / मयणा वयणे आवियारेलो / ऊंबर जिन प्रासादरे वाले० / श्रादीश्वर अवलोकतोरेलो / उपनो मन आल्हादरे वाले० / जिनमन्दिरमें भगवान्की शान्तमुद्राके सन्मुख चैत्यवन्दन स्तुतिकर गुरु महाराजके पास मयणा और श्रीपाल ( उम्बरराणा) जाते है प्राकृत-ततो मयणा पइणा सहिआ / मुणिचंद गुरु समीयमि / पत्ता पमुइअ चित / भत्तीए नमइ तस्सपाए / 182 / संस्कृत-ततस्तदनन्तर मदनसुन्दरी पत्य स्व भ; सहित मुनि 1 प्राचीन प्राकृतमें श्रीपाल प्रबन्ध 2 संस्कृतावचूरी 3 श्रीमान् उपाध्यायश्रीका बनाया श्रीपालरास--Page Navigation
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