________________ रतन जिसी रलियामणिजी, रतनमाला तस नार / सुरसुन्दर सोहामाणिजी, नंदन छै तस चार // 3 / / ते उपर एक इच्छतांजी, पुत्री हुई गुणधाम / . . रूप कला रति आगली जी, मदनमंजुषा नाम // 4 // परवत सिर सोहामणोजी, तिहाँ एक जिनप्रासाद / रायपिताये करावियोजी, मेरूसे मांडे वाद // 5 // सोवनमय सोहामणांजी, तिहाँ रिसहेसर देव / कनककेतु राजा तिहाँजी, अहिनिश सारे सेव // 6 // भक्ते भलि पूजा करेजी, रायकुंवरी त्रिण काल | अगर उखेवे गुण स्तवेजी, गाये गीत रसाल // 7 // प्राकृत-संस्कृत और रास इन तीनोमें रत्नसंचय पर्वतपर श्री रिषभदेव भगवानका मन्दिर है नागरिक लोग व राजा और राजकन्या त्रिकाल पूजन कर रहे है एसा मूलपाठमें लिखा है आगे उस मन्दिरमें राजकन्या लाखीणि आंगी रची, उसे देख राजा बडी भावनासे अनुमोदन, के पश्चात् कन्याके वर कि चिंता करी, जिसमेंमूल मन्दिर के दरवाजा बन्ध हुवा, राजाने अष्टम तप कीया, चक्रेवरी देवी आई, जिस्के दृष्टिपात हो तें ही कमाड खुल जावेगा, वह ही तुमारी कन्याका वर होगा, बाद जिनदास श्रीपालजी को वहाँ ले गया, उनके दृष्टिपात होते ही कमाड खुल गये भगवान की पूजा करी इत्यादि अधिकार मूलपाठ-टीका व रासमें है उसको उडाके चोधमलजी क्या तस्करवृति करी है उसके लिये चोथमलजी के बनाया श्रीपाल चरित्र पृष्ट 24 पर क्या लिखता है / उसी समय उस रत्नद्विपमे, रत्नगिरी परधान / रत्नसंचय एक नगरी भारी, कनककेतु नृप जान हो // 232 //