Book Title: Ek Prasiddh Vakta Ki Taskar Vrutti Ka Namuna
Author(s): Gunsundarsuri
Publisher: 

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Page 2
________________ उदयपुर कि पब्लिक सभा मे चोथमलजीने कहा कि जैनधर्म सब धर्मों से प्राचीन है ? इसके उत्तर मे एक वेदान्तिकने कहा कि जैनधर्म वेदधर्म से निकला हुवा नूतन धर्म है ? इसका जवाब में ढूँढकजीने एक शब्दतक भी नहीं निकाला. एसे ही आप के जीवन में कपोलकल्पित बातें लिख एक ढांचा खडा किया है उसकि समालोचना एक ढुंढकभाइ लिख ही रहा है यह तो आपकी विद्वत्ता का एक नमूना है। कारण कुँजडे विचारे रत्नोंका व्यापार कब किया था. एसे अज्ञ-अपठित लोग अपनी आत्मा को तो क्या पर अनेक भद्रिक जीवों को दीर्घ संसार के पात्र बना दे इस्में आश्चर्य ही क्या है। चोथमलजी में मायावृत्ति व कायरताके साथ तस्कर वृत्ति का भी दुर्गुण पाया जाता है कारण अनेक कवियों कि कविताओं को तोडफोड के उसके साथ अपना नाम लिख के भद्रिक ढूंढक ढूँढणियों से अपने गुणानुगीत गवाया करता है उन कि समालोचना लिखी जावे तो इसके जीवन पोथीसे पचास गुणा पूराण बन जाये ! पर इस समय हम चोथमल कि तस्करवृत्ति का एक नमूना जनता के सन्मुख रख देना चहाते है नमूना से वस्तु कि परिक्षा विद्वान स्वयं कर सक्ते है। जैन सिद्धान्तों में श्रीपाल राजा इतना तो प्रख्यात है कि जिसके पवित्र गुणों से जैन व जैनेतर जनता स्यात् ही अपरिचित हो / जैनशास्त्रोमें श्रीपाल नरेशने श्री सिद्धचक्रजीमहाराज कि भक्ति-महोत्सव नौ दिन तक आबिल कि तपश्चर्या और त्रिकाल पूजा करी है जिस्का अनुकरण आज भी जैन संसार कर रहा है ओर उसका फल भी शास्त्रकारोंने अक्षयसुख बतलाया है।

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