________________
प्रकाशकीय
हमें प्रसन्नता कि भारत की इस पुरातन धरोहर को आपके हाथों तक पहुँचाने के प्रयास में विपश्यना विशोधन विन्यास सफल हुआ है ।
विपश्यना साधना विधि की मूल उद्गम सामग्री पालि साहित्य में उपलब्ध बुद्धवाणी में ही मिलती है जो कि भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म- ज्ञान की एक अमूल्य विरासत है । पालि साहित्य के अंतर्गत पालि तिपिटक तथा उसकी अट्ठकथाओं, टीकाओं आदि में इस विधि का विशद विश्लेषणात्मक विवरण मिलता है। दुर्भाग्य से यह संपूर्ण साहित्य इस समय देवनागरी लिपि में उपलब्ध नहीं है । इसीलिए विशोधन विन्यास, सन १९५४-५६ में ब्रह्मदेश में आयोजित छट्ट संगायन द्वारा प्रमाणित सामग्री को प्रामाणिक मानते हुए, प्रंम लिपि में उपलब्ध सभी ग्रंथों को आधार मान कर तिपिटक तथा उसकी अट्ठकथाओं, टीकाओं आदि के प्रकाशन का महत्वपूर्ण कार्य संपादन कर रहा है।
प्रस्तुत साहित्य के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य विपश्यना साधना विधि पर अनुसंधान करना तथा साधकों और विद्वानों के लिए पालि साहित्य के अध्ययन के साथ-साथ विपश्यना विधि के व्यावहारिक पहलू का कल्याणकारी समन्वय करना है । तिपिटक ग्रंथों में विपश्यना, प्रज्ञा, निरोध आदि से संबंध रखने वाले प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संदर्भों को विशिष्ट रूप से दर्शाया गया है जो इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होगा।
विशोधन विन्यास भारत सरकार के उन सभी अधिकारियों के प्रति आभार प्रकट करता है, जिन्होंने इस ऐतिहासिक कार्य के प्रति अपना योगदान दिया है और दे रहे हैं । ब्रह्मदेश, भारत, नेपाल और श्रीलंका के सहयोगी विद्वानों के प्रति तथा इस कार्य में निष्ठाभाव से सेवारत रहने वाले समस्त साधक, साधिकाओं के प्रति भी विशोधन विन्यास हार्दिक आभार प्रकट करता है ।
साधकों ने विभिन्न प्रकार से योगदान दिया । बीसियों ने प्रेम लिपि सीख कर इस विशाल साहित्य को नागरी में लिप्यंतरित करने में हाथ बटाया है । बहुतों ने इसे जांचने का काम किया है ।
Jain Education International
29
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org