Book Title: Dhyan Kalptaru
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Kundanmal Ghummarmal Seth

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Page 10
________________ "आवश्यकीय सुचना" ध्यान नाम विचार का है, विचार अनेक तरह के होते हैं उन सब विचारों का संग्रह कर श्री सर्वज्ञने चार के हिस्से किये है, उसके बाहिर एकभी विचार नहीं है. येही युक्ती शास्त्रानुसार व कुछ प्रज्ञानुसार इस "ध्यान कल्पतरु” ग्रन्थमें वापरी है. अधमसे अधम विचरनिगोदमे ले जाने वाला और उच्चसे उच्च ध्यानमोक्षमें ले जानेवाला सर्वका संग्रह इसमें आगयाहै, सं सारमे ऐसा कोइभी कार्य नहीं है किजो बीन विचार (बिन ध्यान) होवे अर्थात् सर्व कार्यके अब्बल विचारही है,बिन विचार किसीभी कार्यका होना असंभव है. कोइक अकस्मात् होजाय उसकी बात अलग. संसारके शुभा शुभ सर्व विचार का चित्र दर्श ना येही इस ग्रन्थ का मुख्य प्रयोजन है, इस लिये आर्त और रौद्र ध्यान के पेटेभसंसारसे वर्तमान वरती हुई बहूतसी बातों का समावेश हुवाहै, जिसे पढ़ कर पाठक गणों को ऐसा विचार नहीं करना कि ग्रन्थक र्ता ने सर्व संसार कार्य की उथापना करदी. मेरेउा पन करने से कुछ संसार कार्य बन्ध पडता नहीं है. यह तो अनादी सिलसिला महान सर्वज्ञ उपदेश जो उप शाखा मे शुभ और शुद्ध ध्यान चार ध्यानसे अलग लिये हैं, परन्तु उनका भी धर्म और सुक्ल ध्यान में समवेश होजाता हैं.

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