Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Yashovijay
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 230. संग्रहणीत्ति. .... 26, , वृत्ति. 92, 221. समयसारसूत्रवृत्ति 35, 123. संस्कृतनवतत्वसूत्र. 39. समवायाङ्ग. .... 104. स्थानांग. 107,167,179,241, ___, वृत्ति. .... 104. 245,254. सिद्धहेम. .... 247, / , वृत्ति. .... 242. सूत्रकृतांग. 73, 92, 93,123, स्याद्वादरत्नाकर (आकर). 12. 124,183,250 ,, चूर्णि. .... 197. हितोपदेशमाला. ग्रन्थकारनामानि. चन्द्रसूरिशिष्यदेवमूरि. .... 33. | संघदासगणि. ... 200. जिनभद्रगणि. ... 33. | सिद्धसेनदिवाकर.८२,८८,१११,१५५. धनपालपंडित. ... : 88. | हरिभद्रमूरि. .... 90,1030 वाचकमुख्य. .... 108. | हेमचन्द्रसूरि. प्रमाणत्वेनोद्धृतानि अनिर्दिष्टग्रन्थप्रतीकानि. अत्थि अणंता जीवा, 29, 35. / नाणं चरित्तहीण. अनधिगमविपर्ययौ मिथ्यात्वम्. 20. परमरहस्समिसीणं. .... 2630 अनुकंपकामणिज्जर. ... पुढवीपमहा. अहः सयलनपावा. .... प्रदानं प्रच्छन्न. उस्सुत्तभासमाणं. फुडपागडमकहतो. कजं इच्छेतेणं.. महन्वय-अणुव्व एहि य. .... गुणठाणगपरिणामे. यत्रोभयोः समो दोषः .... छउमत्थनाणहेत. वणस्सइ कायमइगओ. .... छउमत्थे पुण. वणस्सइ काइआणं पुच्छा. जइ पुग्गलपरिअट्टा. .... ववहारीणं नियमा. णय पच्चुप्पन्न वणस्सइ..... लखूणवि देवत्तं. .... 50. तस्स असंचेययओ. लोइअमिच्छत्तं पुण. .... 23. तेणं मच्छियपमुहा. .... 237. बजेमित्ति परिणओ. दसारसिंहस्सय. ... 130. संथरणंमि असुद्धो. .... दुभासिएण इकेण. 134,138. सिजेति जत्तिा किर. ... 30. 118. सप .... 30 58. For Private and Personal Use Only

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