Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 19
________________ सिंघी जैन ग्रन्थमाला $ खूब ज वधार्यो हतो अने तेथी तेओ इंग्रेजी उपरांत, बंगाली, हिंदी, गुजराती भाषाओ पण खूब सरस जाणता ह्ता अने ए भाषाओम लखाएलां विविध पुस्तकोना वाचनमां सतत निमग्न रहेता हता. नानपणी ज तेमने प्राचीन वस्तुओना संग्रहनो भारे शोख लागी गयो हतो अने तेथी तेओ जूना सिक्काओ, चित्रो, मूर्तिओ अने तेवी बीजी बीजी चीजोनो संग्रह करवाना अत्यंत रसिक थई गया हता. झवेरातनो पण ते साधे तेमनो शोख खूब वयो हतो अने तेथी तेओ ए विषयमां पण खूब ज निष्णात थई गया हता. एना परिणामे तेमणे पोतानी पासे सिक्काओ, चित्रो, हस्तलिखित बहुमूल्य पुस्तको विगेरेनो जे अमूल्य संग्रह भेगो कर्यो हतो ते आजे हिंदुस्थानना गण्यागांच्या एवा संग्रहोमां एक महत्त्वनुं स्थान प्राप्त करे तेवो छे. तेमनो प्राचीन सिक्काओनो संग्रह तो एटलो बधो विशिष्ट प्रकारनो छे के जेथी आखी दुनियामां तेनुं त्रीजुं के चोथुं स्थान आवे तेम छे. तेओ ए विषयमां एटला निपुण थई गया हता के महोटा म्होटा म्युजियमोना क्युरेटरो पण वारंवार तेमनी सलाह अने अभिप्राय मेळववा अर्थे तेमनी पासे आवता जता. तेओ पोताना एवा उच्च सांस्कृतिक शोखने लईने देश- विदेशनी आवी सांस्कारिक प्रवृत्तियो माटे कार्य करती अनेक संस्थाओना सदस्य विगेरे बन्या हता. दाखला तरीके - रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल, अमेरिकन ज्यॉग्राफिकल सोसायटी न्यूयॉर्क, बंगीय साहित्य परिषद् कलकत्ता, न्यूमिस्मेटिक सोसायटी ऑफ इन्डिया विगेरे अनेक प्रसिद्ध संस्थाओना तेओ उत्साही सभासद हता. साहित्य अने शिक्षण विषयक प्रवृत्ति करनारी जैन तेम ज जैनेतर अनेक संस्थाओने तेमणे मुक्त मने दान आपी ए विषयोना प्रसारमां पोतानी उत्कट अभिरुचिनो उत्तम परिचय आप्यो हतो. तेमणे आवी रीते केट केटली संस्थाओने आर्थिक सहायता आपी इती तेनी संपूर्ण यादी मळी शकी नथी. तेमनो स्वभाव आवां कार्योंमां पोताना पिताना जेवो ज प्रायः मौन धारण करवानो हतो अने ए माटे पोतानी प्रसिद्धि करवानी तेओ आकांक्षा होता राखता. तेमनी साथे कोई कोई वखते प्रसंगोचित वार्तालाप थतां आवी बाबतनी जे आउकतरी माहिती मळी शकी तेना आधारे तेमनी पाखेथी आर्थिक सहायता मेळवनारी केटलीक संस्थाओनां नामो विगेरे आ प्रमाणे जाणी शकायां छेः हिंदु एकेडेमी, दोलतपुर (बंगाल), रु० १५०००) तरक्की उर्दू बंगाला, ५०००) हिंदी साहित्य परिषद् भवन ( इलाहाबाद ), १२५००) विशुद्धानंद सरखती मारवाडी हॉस्पीटल, कलकत्ता, १००००) एक मेटर्निटीहोम, कलकत्ता, २५००) बनारस हिंदू युनिवर्सिटी, २५००) जीयागंज हायस्कूल, ५००० जीयागंज लंडन मिशन हॉस्पीटल, ६०००) कलकत्ता - मुर्शिदाबादना जैन मन्दिरो, ११०००) जैनधर्म प्रचारक सभा, मानभूम, ५०००) ए उपरांत हजार हजार पांचसो पांचसोनी नानी रकमो तो तेमणे सेंकडोनी संख्यामां आपी छे जेनो सरवाळो दोढ बे लाख जेटलो थवा जाय. - जैन भवन, कलकत्ता, १९०००) जैन पुस्तक प्रचारक मंडल, आगरा, ७५००) जैन मन्दिर, आगरा, ३५००) जैन हाइस्कूल, अंबाला, २१००) जैन गुरुकुल, पालीताणा, ११०००) जैन प्राकृत कोश माटे, २५००) Jain Education International साहित्य अने शिक्षणनी प्रगति माटे सिंघीजीनो जेटलो उत्साह अने उद्योग हतो तेटलो ज सामाजिक प्रगति माटे पण ते हतो. अनेकवार तेमणे आवी सामाजिक सभाओ विगेरेमां प्रमुख तरीके भाग लईने पोतानो ए विषेनो आन्तरिक उत्साह अने सहकारभाव प्रदर्शित कर्यो हतो. जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्सना सन् १९२६ मां मुंबईमां भराएला खास अधिवेशनना ओ प्रमुख बन्या हता. उदयपुर राज्यमां आवेला केसरीयाजी तीर्थना वहीवटना विषयमां स्टेट साथे जे झघडो उभो थयो हतो तेमां तेमणे सौथी वधारे तन, मन अने धननो भोग आप्यो हतो. आ रीते तेओ जैन समाजना हितनी प्रवृ तियोमां यथायोग्य संपूर्ण सहयोग आपता हता परंतु ते साथे तेओ सामाजिक मूढता अने सांप्रदायिक कट्टरताना पण पूर्ण विरोधी हता. बीजा बीजा धनवानो के आगेयानो गणाता रुढीभक्त जैनोनी माफक, तेओ संकीर्ण मनोवृति के अन्धश्रद्धापोषक विकृत भक्तिथी सर्वथा पर हता. आचार, विचार के व्यवहारमां तेओ बहु ज उदार अने विवेकशील हता. तेमनुं गृहस्थ तरीकेनुं जीवन पण बहु ज सादु अने सात्त्विक हतुं. बंगालना जे जातना नवाबी गणाता वातावरणमां तेओ जन्म्या हता अने उछर्या हता ते वातावरणनी तेमना जीवन उपर कशी ज खराब असर थई न हती अने तेओ लगभग ए वातावरणथी तद्दन अलिप्त जेवा हता. आटला म्होटा श्रीमान् होवा छतां, श्रीमंताईना खोटा विलास के मिथ्या आडंबरथी तेओ सदा दूर रहेता हता. दुर्व्यय अने दुर्व्यसन प्रत्ये तेमनो भारे तिरस्कार हतो. तेमनी स्थिविना धनवानो ज्यारे पोताम मोज-शोख, आनन्द-प्रमोद, विलास-प्रवास, समारंभ - महोत्सव इत्यादिमां लाखो रूपिया उडावता होय छे त्यारे सेंधीजी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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