Book Title: Dharmopadeshmala Vivaran
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 10
________________ * - PariyardPRAPHAA समर्पण पूज्य माताने जेमना उपकारोने दुष्प्रतीकार तरीके शास्त्रकारोए जणाव्या छे, तेमां मातानुं स्थान महत्त्वनुं छे । ७ वर्षनी वयमां पितृ-सुखथी वंचित थयेला, शिक्षक पिताना पुत्र आ बालकने, वात्सल्यभरी भली भोळी जे माताए विद्यावान् सुशिक्षित संस्कारी बनाववा प्रोत्साहित कर्यो, विशेष 1 विद्याभ्यास माटे १३ वर्षनी बयना पोताना बालकने दाठा ( सौराष्ट्र )थी काशी जेवा विद्याधाम तरफ मोकलवा अनुपम उत्साह दर्शाव्यो, संवत् १९६४ थी १९७२ सुधीनां ८ वर्षों सुवी सतत पुत्रवियोग सहन कर्यो, ममताभरी मायालु जे माता ( नन्दु ) सं. २००० नी विजयादशमीए ३ वडोदराथी खर्गे संचाँ, तेमनी पवित्र स्मृतिमा प्रयत्न संपादित धर्मोपदेशमय आ प्राचीन कृति सम्पादक समर्पण करे छे-- ला. भ. गान्धी है सं. २००५ वै. शु. ११ - ------- -- . - - Br-trimur-marrrrrrrrrr-*----------- rrrrrrrrrr पं. लालचन्द्र भगवान गान्धी +2 . लिंबडा पोल, बडोदय. 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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